Saturday, December 6, 2014

बच्चे मन के सच्चे …… क्या हम भी हैं ? …………… >>> संजय कुमार

मन में बहुत गुस्सा आता है , आत्मग्लानि भी होती है , अपने हाँथों से सजा भी देना चाहते हैं, फिर भी हम कुछ नहीं कर पाते , मूक दर्शक बने खड़े रहते हैं , अंधों की तरह कुछ भी देख नहीं पाते , बहरों की तरह किसी के भी सिसकने , कराहने , दर्द और तकलीफ को सुन भी नहीं पाते। …… ? शायद ये दर्द हमारा नहीं है , शायद हमारे अपनों को चोट नहीं लगी है ! वो तो कोई और है गैर ,दूसरा , फिर चाहे कोई २ माह की मासूम बेटी ही क्यों ना हो , जिसे तंत्र - मंत्र के नाम पर ५० पचास  बार गर्म लोहे के सरिये से दागा  गया हो ,( घटना मध्य-प्रदेश के शिवपुरी जिले से है )  आखिर कौन है वो जो इस तरह की  हैवानियत पर उतर आया है  ? शायद हम इक्कीसवीं सदी के इंसान हैं ! अत्याचार तो सभी के ऊपर होता है , किन्तु हम उसका प्रतिरोध कर सकते हैं किन्तु बच्चे नहीं और वो भी २ माह या ५ साल का बच्चा ! घटना ऐसी है की आपकी रूह काँप जाए , हम अपने घरों में काम करते हुए जब माचिस की तीली या गर्म बर्तन से जल जाते हैं तो सीधा बर्नोल मांगते हैं और तरह तरह के उपयोग करते हैं जलन से बचने के लिए , फिर सोचिये ????? 

" बच्चे मन के सच्चे , सारे जग कीआँखों के तारे , ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे " क्या इस तरह के गानों का आज कोई मूल्य है ? शायद मन को बहलाने के लिए काफी हैं ? बच्चे किसी के भी हों होते बहुत मासूम और बहुत ही प्यारे ,और हर कोई उन्हें बहुत प्यार भी करता है ! यहाँ तक की हम पशु -पक्षियों के बच्चों को भी उतना ही प्यार करते हैं जितना कि अपने बच्चों को , किन्तु आज जो कुछ बच्चों के साथ हो रहा है ,  आज जो उनकी स्थिति है उसे देखकर कभी-कभी इंसान होने की शर्मिंदगी भी अवश्य होती हैं ! हमारे सामने आज ऐसे एक नहीं हजारों उदहारण हैं जो इंसानियत और मानवता के लिए एक बदनुमा दाग हैं ! क्या हम इंसान ही हैं ? जो अपने बच्चों की खुशियों के लिए जीवनभर तकलीफें उठाते हैं , उन्हें एक अच्छी जिंदगी देने के लिए अब अपना सब कुछ दांव पर लगाने से भी कभी नहीं चूकते , तो दूसरी ओर कुछ लोग अपने ही बच्चों के साथ दिल को दहलाने वाली अमानवीय घटनाओं को क्यों अंजाम दे रहे हैं ! ऐसे कार्य जो जघन्य अपराध की श्रेणी में आते हैं , क्यों कर रहे हैं ? हमारे देश में कुछ अजन्मे बच्चों को " माँ " की कोख में ही मार डाला जाता है और इस तरह का कार्य पिता और परिवार के लोगों द्वारा ही किया जाता है ! कहीं दो साल की बच्ची के साथ बलात्कार और यौन शोषण जैसी इंसानियत और मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटनाएँ हो रही हैं ! कहीं पिता , परिवार और सगे रिश्तेदारों के द्वारा मासूम बच्चे -बच्चियों का यौन शोषण हो रहा है ! कहीं माता-पिता अपना पेट भरने के लिए अपने ही मासूम बच्चे का सौदा कर उन्हें बेच रहे हैं ! कहीं बच्चों को माता-पिता के गुस्से का शिकार होना पड़ता है , कहीं माँ तो कहीं पिता बच्चों को मारकर खुदख़ुशी कर लेता है , तो कहीं स्कूल में टीचर का दुर्व्यवहार बच्चों को सहना पड़ता है ! गरीबी से तंग आकर माता -पिता बच्चों के साथ अन्याय कर रहे हैं ! कहीं ट्रेन में कोई ६ महीने का बच्चा ( बेटी ) छोड़ जाता है , तो कोई नवजात को कचरे के ढेर पर फेंक जाता है ! आज बच्चे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं ! चारों तरफ बच्चों का भक्षण करने वाले भेड़िये सिर उठाकर खुलेआम घूम रहे हैं ! " निठारी कांड "जैसी  कई घटनाएँ बच्चों पर हुए निर्मम अत्याचार की गवाह हैं ! बच्चों पर होने वाली इन घटनाओं , उन पर होने वाले अत्याचारों को देखकर लगता है जैसे मासूम बच्चे हम इंसानों की आँख की किरकिरी बन गए हैं ! वर्ना इतना तो शायद ही बच्चों ने कभी सहा हो जितना कि पिछले १५-२०  सालों में हुआ हो ! ऐसा नहीं है इस तरह की घटनाएँ भारत में ही हो रही हैं बल्कि बच्चों के साथ यौन शोषण जैसी घटनाएँ विदेशों में भी कई हुई हैं कई बड़ी हस्तियों के  नाम भी  " बाल यौन शोषण " से जुड़े रहे ! आज जो अत्याचार बच्चों के साथ हो रहे है उसे देखकर तो भगवान भी डरता होगा कि कहीं हमें इस दौर में बच्चे के रूप में जन्म ना लेना पड़ जाये ....... वर्ना पता नहीं इस रूप में हमें और क्या क्या देखना और सहना पड़ेगा !

 हमारा देश तरक्की कर रहा है ? देश में भ्रष्टाचार काम हो गया है ? बच्चों पर अत्याचार का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है ! बच्चे तो मन के सच्चे होते हैं किन्तु हमारा सच ( इंसानियत ) कब जागेगा ?
 
धन्यवाद  
संजय कुमार 

2 comments:

  1. Ham sare ko apne ap sudhar na chahiye.aj ka bacha kl ka bhabisya hai.so hm ko hamara bhabisya ko bachana hai.aur aye tantr mantr pe biswas nehi karna chahiye.." बच्चे मन के सच्चे , सारे जग कीआँखों के तारे , ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे "

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