Wednesday, May 15, 2013

टूटी हुई माला को अब जोड़ना होगा .....( परिवार -दिवस ) .......>>>> संजय कुमार

एक - एक मोती चुनकर , एक ही धागे में कई मोतियों को पिरोकर बनाई जाती है माला ! माला फूलों की होती है ! हीरे - जवाहरात , नग , सोने - चाँदी और भी कई प्रकार की होती है ! जब माला किसी के गले में पहनाई जाती है तो पहनने वाले का महत्त्व और भी ज्यादा बड़ जाता है ! सच तो ये है कि , माला उन्हीं के गले में डाली जाती है जो उसके असली हक़दार होते हैं ! खैर ये तो मालाओं की व्याख्या है ! किन्तु  मैं जिस माला की बात कर रहा हूँ उसका तात्पर्य हम सभी से है और वो मोतियों की माला हमारा संयुक्त परिवार है ! एक माला जिस तरह अपने में सभी मोतियों को पिरोकर रखती है ठीक उसी प्रकार एक संयुक्त परिवार अपने परिवार के सभी सदस्यों को एक माला के रूप में  बाँध कर रखता है ! एक मजबूत माला वही होती है जिसका धागा मजबूत होता है अर्थात माला रुपी परिवार के सभी सदस्य जिनके अन्दर संस्कार , अपनापन , एक-दुसरे के प्रति प्रेम का भाव आदि होते हैं , और ये सब कुछ एक संयुक्त परिवार में ही हो सकता है ! क्योंकि हम एक संयुक्त परिवार में रहकर ही नियंत्रित होते हैं ! एकल परिवार प्रणाली में हमारे ऊपर नियंत्रण का आभाव होता है जिससे कई समस्याएं हमारे सामने उत्पन्न होती रहती हैं ! सभी सदस्यों का आपस में एक - दुसरे के प्रति मान- सम्मान , आदर , संस्कार , एक -दुसरे के प्रति प्रेम का भाव और अपनापन जहाँ ये सभी चीजें एक साथ उपस्थित होती हैं, तो उस जगह को हम एक परिवार कहते हैं , हँसता -खेलता परिवार ! आज के दूषित माहौल में समाज का सर्वश्रेष्ठ परिवार ! सच तो ये है हमारी एकता में जो शक्ति है वो शायद किसी अकेले इंसान में नहीं है ! अकेला इंसान आज के समय में कुछ भी नहीं है और  यह बात बिलकुल सही है ! क्योंकि हम जानते हैं  एकता और संगठन की शक्ति को ! जब हम संगठन की ताकत से भली-भांति परिचित हैं तो फिर क्यों हमारा पारिवारिक संगठन टूट रहा है ! आज के आधुनिक युग ने हमें भले ही बहुत कुछ दिया हो फिर भी हमने आधुनिक बनने की होड़ में बहुत कुछ खोया है ! आप भी इस बात से सहमत होंगे ......

एक समय था जब हम किसी के घर जाते थे तो वहां पर हमारी मुलाकात परिवार के सभी सदस्यों से होती थी तो मन को एक अनूठी सी ख़ुशी मिलती थी मन प्रसन्न हो जाता था ! घर में दादाजी -दादीजी, माता -पिता , चाचा-चाची, भैया-भाभी, और भी कई रिश्ते जिनसे एक घर सम्पूर्ण परिवार बनता है ! ( आज मुमकिन नहीं लगता आज हमारे पास घर हैं किन्तु परिवार नहीं ) पर जैसे जैसे समय बीत रहा है ! जब से इन्सान अपने आप से मतलब रखने लगा है  सिर्फ अपने बारे में सोचने लगा है जबसे उसने परिवार के बारे में सोचना छोड़ दिया है तब ऐसी स्थिति में परिवार के सदस्यों का एक - दुसरे के प्रति अपनेपन का भाव खत्म होने लगता है और शुरुआत हो जाती है एक संयुक्त परिवार रुपी माला के टूटने की ! जब अपनापन खत्म होता है तो पारिवारिक एकता में  विघटन और वदलाव होने लगता है ! कारण एक -दो नहीं कई हैं और सबसे बड़ा कारण हमारा अपने ऊपर नियंत्रण का ना होना , सब्र की कमी , बात - बात पर अपना आपा खो देना जिस कारण से आये दिन घर- परिवार में लड़ाई - झगडे की स्थिति बनी रहती है ! आये दिन होने वाले इन्हीं झगड़ों के कारण अपनों से अपने परिवार से दूर हो रहा है ! इन्हीं बातों को लेकर परिवारों के बीच दीवार खींच जाती है ! ऐसी स्थिति में एक बड़ा सा परिवार बदल जाता है चिड़ियों के घोंसलों जैसा और  जब एक बार अपनों के बीच दीवार खिंच जाती है तो फिर हमारा परिवार , परिवार नहीं कहलाता  ईंटों की चार दीवारी से बना घर कहलाता है और बन जाता है ईंट पत्थर से निर्मित एक मकान ! आज इस विघटन और वदलाव से हमारा कितना अहित हो रहा है , शायद हम ये बात बहुत अच्छे से जानते है  लेकिन जानकर भी अनजान हैं ! इसका असर आज हम देख रहे हैं सुन रहे हैं ! अपने बच्चों से दूर होते संस्कार के रूप में , दूर होती रिश्तों की महक , खत्म होती अपनत्व की भावना और प्रेम , एक-दुसरे का मान-सम्मान करने का भाव और  ये सब कुछ हो रहा है परिवार के बंटने से ! जब से हम वदले तब से वदल गयी हमारे घर- परिवार की कहानी  और ये कहानी आज की है ! आज ये कहानी " घर - घर की कहानी " है !
हम सभी को ईंट - पत्थर से बने मकानों से निकलकर अपने घर - परिवार में वापस आना होगा या फिर हमें फिर से अपने परिवार जो जोड़कर एक सम्पूर्ण परिवार बनाना होगा ! यदि हमारे अन्दर परिवार के किसी सदस्य के प्रति मन में नाराजगी है तो आपस में बैठकर उसे दूर करना होगी अन्यथा ये परिवार विघटन रुपी खाई और गहरी ...... गहरी होती जाएगी ........ क्या हम इस पर विचार कर सकते हैं ......? क्या हम आगे बढ़कर टूटे हुए परिवार को जोड़ सकते हैं ! अब हमें पुनः माला  में मोती पिरोकर  टूटी हुई माला को जोड़ना होगा 

धन्यवाद

20 comments:

  1. sab bamani bate hai, jamane ke sath aadmi ki soch badalti hai , or wahi theek rahta hai,
    jo jamane ke sath nahi chala usne dhoke ke siwa kuch hasil nahi kiya

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  2. Jamane ke saath chalne ke liye sirf soch badalna hi kafi nahin, kuchh cheejen aapke jeevan se judi hoti hain, unhen aap nakaar nahin sakte

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  3. आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    धन्यवाद

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  4. जितना संभव हो सके परिवार और प्यार बने रहें।

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  5. उपयोगी पोस्ट ...परिवार की सुरक्षा और संबल बहुत महत्वपूर्ण होता है

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  6. परिवार में प्यार रहे तो सब कुछ है.बेहतरीन प्रस्तुति.

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  7. प्रकृति परिवर्तनशील है,समाज परिवर्तनशील,रीति रिवाज परिवर्तनशील है तो परिवार में परिवर्तन तो आएगा ही.आजतक कोई रोक नहीं पाया ,भविष्य में भी कोई रोक नहीं पायेगा.यह परिवर्तन इतनी धीमीगति से होता है एक पीढ़ी में यह नजर नहीं आता .दो तीन पीढ़ी के बाद नज़र आता है .तब बहुत देर हो गयी होती है .

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    latest postअनुभूति : क्षणिकाएं

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  8. वाकई संयुक्त परिवारों का टूटना बेहद दुखद रहा है ..जिन्दगी में एक रिक्तता हो गयी है ..आपने बेहद सेम्बेदन शील मुद्दे की तरफ ध्यान दिलाया है ..बेहद अच्छा लगा ..सादर ..मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है .

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  9. अहम् मुद्ददा उठाया आपने .........सामयिक और संवेदन शील

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  10. बेहद सेम्बेदन शील मुद्दे की तरफ ध्यान दिलाया है ..बेहद अच्छा लगा ..सादर ..मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है .

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  11. आज जीवन कि आपाधापी में हमने रिश्तों को भूला दिया है.

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  12. हम आधुनिकता की दौड़ में पारिवारिक मूल्यों को छोड़ रहे हैं.आपने इस ओर ध्यानाकर्षित किया है.

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  13. bahut badiya

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  14. काश ऐसा सभी सोचने लगें.....
    बहुत सार्थक पोस्ट....

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  15. परिवार सिर्फ कहने भर को परिवार रह गए हैं, वो आत्मीयता वो अपनापन आजकल सिर्फ
    किताबों मे सिमट कर रह गया। अच्छा और सार्थक लेख

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  16. प्रेरणा देती है। वाकई सुंदर प्रस्तुति।

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  17. बेहतरीन प्रस्तुति.

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  18. हर परिवार में प्यार और दूसरों के लिये सम्मान बना रहे. परिवार दिवस पर यही कामना.

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  19. pariwar hamesha sabon ki khushal bani rahe.....pyar,wishwas bana rahe..

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