Friday, September 28, 2012

" राजनीतिक वायरल " क्या आप भी इसका का शिकार हैं ? .......>>>> संजय कुमार

वायरल फीवर का नाम सुनते ही अच्छे अच्छों के छक्के माफ़ कीजिये पसीने छूट जाते हैं ! पिछले कई दशकों से हमें मलेरिया , डेंगू , चिकुन गुनिया , आई फ्लू  , स्वाइन फ्लू  आदि वायरल बीमारियों ने परेशान कर रखा है , जो भी इनकी गिरफ्त में आता है तो वो अपने साथ कईयों को अपनी चपेट में ले लेता है ! ( हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे ) इन सभी बीमारियों में से एक ना  एक बीमारी हम सभी को कभी ना कभी अवश्य हुई होगी , हो सकता है एक दो को छोड़ दें तो लगभग सभी ने हमें अपनी गिरफ्त में अवश्य लिया होगा ......... इन सभी का कारण हमें पता है ........ वायरल , संक्रमण , मच्छर इत्यादि ( सबसे बड़ा कारण हमारी कमजोरी ) ....इस बीमारी में  एक को वायरल होने पर एक हजार को वायरल होने के पूरे पूरे चांस होते है ....... मैं अपने सभी साथियों से गुजारिश करूंगा कि , आप अपना और अपने परिवार का पूरा ध्यान रखें क्योंकि ये बड़ी ही खतरनाक है ! इस संक्रमण बीमारी ने तो हम सब की नाक में दम कर रखा है ........ खैर हम इससे तो निपट ही  लेंगे ...क्योंकि ये कुछ समय के लिए होती है !  लेकिन मैं जिस वायरल की यहाँ बात कर रहा हूँ और जिससे हम सभी भारतीय दुखी और पीड़ित हैं ...... जिस  वायरल ने हमारे देश के हर एक व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में ले रखा है , हर व्यक्ति आज इस वायरल से दुखी है , किसी भी व्यक्ति के पास इसका इलाज नहीं है ... आज तक इस वायरल को खत्म करने की कोई दवा नहीं बनी है और ना कभी बनेगी , अच्छे अच्छे धुरंधरों ने कोशिश करके देखली किन्तु कोई हल ना निकाल पाए ...... अपितु हल खोजने के चक्कर में अपनी बुरी गत अवश्य करा चुके ....... अब तक आप समझ चुके होंगे कि , मैं किस वायरल की बात कर रहा हूँ ! अरे भई " राजनीतिक वायरल " आम वायरल बुखार की मियाद ज्यादा से ज्यादा तीन - चार दिन या फिर एक हफ्ता बस इससे ज्यादा नहीं ! किन्तु .. परन्तु " राजनीतिक वायरल " ने तो हमें पिछले 100 सालों से अपनी गिरफ्त में ले रखा है और ऐसा की छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा  है ! आम वायरल के कोई ज्यादा साइड इफेक्ट  नहीं है ... एंटीवायटिक का डोज दीजिये बंदा एक हफ्ते में दौड़ने लगेगा ........ किन्तु राजनीतिक वायरल जब फैलता है तो वो अपने साथ अच्छे अच्छों को मार देता है और कई सालों तक ना तो बंदा दिखता है और ना बन्दे की जात ....... " अलमाडी कलमाड़ी " थोड़ा -कोड़ा " राजा का भी बजा बाजा " उदाहरण है आपके सामने ! बड़े बड़े वायरल यानि घोटाले हुये और कितनों को अपनी गिरफ्त में ले चुका है ये ,  कभी राष्ट्रमंडल खेल , 2जी , कोल आवंटन , बोफोर्स , आदर्श , चारा , खाद , यूरिया , सिंचाई और भ्रष्टाचार जैसा वायरल इस देश में इतनी तेजी से फैला जिसने देखते देखते पूरे देश को ( सिर्फ बेईमानों ) को अपनी गिरफ्त में ले  लिया  ! इस वायरल से सबसे अधिक किसी का नुकसान हुआ है तो वो है इस देश का लुटा - पिटा " आम नागरिक "  जिसे साइड इफेक्ट में मंहगाई , भ्रष्टाचार , गरीबी , कुपोषण , बेरोजगारी , आतंकवाद , हिंसा , नक्सलवाद और ना जाने कितनी ऐसी बीमारियाँ दी हैं जिससे आज देश का कोई भी  व्यक्ति  अछूता नहीं है ! आज इस वायरल को खत्म करने के लिए कई लोग प्रयासरत है , किन्तु इसका जोर इतना है कि , कोई भी दवा , इंजेक्शन , एंटीवायटिक काम नहीं कर रहा है !

क्या आप भी इस वायरल का शिकार हैं .......? यदि हैं तो क्या आपके पास कोई उपाय है ?......... 

धन्यवाद     

Saturday, September 22, 2012

प्यार में अंधे होकर , इज्जत न लुटवायें .........>>> संजय कुमार

मैं आपको अपने शहर की एक ताजा घटना से अवगत करना चाहता हूँ , अभी दो दिन पहले की बात है , किसी महिला ने जिस बच्चे को अपनी कोख में नौ महीने तक पाला , उसके जन्म लेते ही उस मासूम नवजात बेटे को एक कचरे के ढेर पर मरने के लिए फेंक गयी , वो तो अच्छा हुआ कि समय पर लोगों की नजर उस बच्चे पर पड़ गई वर्ना सुअर और कुत्तों का निवाला बन गया होता ! इस तरह की घटनाएँ सिर्फ मेरे शहर में नहीं हो रही हैं अपितु देश के कौने - कौने में हो रही हैं ! आखिर कारण क्या है ? जो महिला नौ महीने तक बच्चे की रक्षा अपनी कोख में करती है और फिर जन लेने के बाद उसी को मरने के लिए फेंक देती है ! कारण कई हो सकते हैं जैसे नाजायज बच्चा ( बिना शादी के जन्मा हुआ ) हमारा समाज यही कहता है ! ये और कुछ नहीं अंधे प्यार का नतीजा था ! क्या इसी को प्रेम कहते हैं .... या फिर ........ ? कहा जाता  हैं  कि  , प्यार तो अँधा होता है  और ये  बात जिसने भी लिखी १०० टका सही लिखी है ! क्योंकि आप तो जानते हैं  प्यार में  अँधा आदमी ना तो रिश्ते नाते देखता है और ना ही उम्र , ना ऊँच-नीच का का अंतर और ना ही किसी  प्रकार का जाति बंधन ! प्यार करने वाले किसी भी धर्म को नहीं मानते बल्कि प्रेम ही उनके लिए सभी धर्मों से बढ़कर होता है  तभी तो लैला-मंजनू , सोहनी-महिवाल, हीर-राँझा, रोमियो-जूलियट इन सभी ने सिर्फ प्रेम किया वो  भी सच्चा , इसीलिए तो आज हम जब भी सच्चे प्रेम की बात करते हैं तो सबसे पहले इन्हीं  लोगों का नाम जुबान पर आता हैं  प्रेम तो  हमेशा से अमर था और अमर ही रहेगा क्योंकि प्रेम बिना जीवन संभव नहीं है ! हम भी तो कहीं ना कहीं किसी ना किसी को प्रेम करते हैं ! किन्तु जैसे जैसे समय ने अंगड़ाई ली  वक़्त बदला और वदलते वक़्त के साथ प्रेम का स्वरूप भी बदल गया ! आज सच्चे प्रेम की कहानियां देखने सुनने को नहीं मिलती अगर मिलती भी हैं तो वो  आज अपवाद है ! आजकल प्रेम या तो होता ही नहीं अगर होता है तो ज्यादातर एक  तरफ़ा जो अक्सर टूट जाता हैं ! आज की कुछ प्रेम कहानियों में प्रेमियों को झूंठी परम्पराओं के नाम पर मौत दे दी जाती है ! ( ऑनर किलिंग के कई उदाहरण हमारे सामने हैं ) ......  आज के कलियुगी  प्रेम ने अपना एक रूप और बना लिया है जिसे हम झूंठ, धोखा , फरेब , और सेक्स के नाम से जानते हैं और ये दिनों दिन तेजी से फ़ैल रहा है ! सच कहूँ प्रेम के इस रूप में पड़कर कई युवतियां अपना जीवन  बर्वाद कर चुकी हैं कई तैयारी पर हैं ,  जो बिन सोचे समझे कर ऐसी गलतियाँ कर बैठती हैं  जहाँ उन्हें अपनी इज्जत , मान -सम्मान तक खोना पड़ता हैं , इसके बावजूद भाग रहीं हैं अंधे प्यार की तरफ अपना  सब कुछ दांव पर लगाकर ! इन्सान जैसे-जैसे आधुनिक होता जा रहा है ,  इन्सान के सामने नित नए नए दूसरों  को धोखा देने और उनको भ्रमित करने के तरीके मिलते जा रहे हैं  ! आज  के युवाओं के ऊपर ना तो परिवार की किसी समझाइश का कोई असर होता है और ना उनके अनुभवों को वो कबूल करते हैं ! अगर कुछ जानते हैं तो वो इतना कि अपने को पूरी तरह  आधुनिक कैसे बनाया जाय ! मैं यहाँ बात कर रहा हूँ उन युवा लड़कियों की जो सिर्फ आज दिखावा ही पसंद करतीं हैं  और इसी को आधार मान प्रेम रुपी अंधे कुंये में  डूबना चाहती हैं !  इनके इस दिखावे का कुछ लोग पूरी तरह से फायदा भी उठाते हैं  फिर चाहे पूर्व में ऐसी लड़कियां भीमानंद, और नित्यानंद जैसे ढोंगी महात्माओं के चक्कर में  फंसकर अपनी इज्जत तक गवां चुकी है ! आज की कुछ युवा लड़कियां  प्यार के जाल में फंसकर  इस कदर अंधी हो जाती है कि , ऐसे झूंठे प्यार के लिए अपना सब कुछ बिना किसी हिचक के बिना किसी डर के अपना तन - मन सब कुछ  सौंप देती हैं !  कुछ दिनों पहले इस तरह का एक मामला सामने आया एक लड़की अपने परिवार से वगावत कर अपना सब कुछ छोड़कर पहुँच गयी अपने प्रेमी के पास , फिर क्या हुआ  ? इसका आप अंदाजा नहीं लगा सकते  उस प्रेमी ने पहले उसे अपनी हवस का शिकार बनाया और बाद में उस लड़की को ५०००० रुपये में बेच दिया गया  और फिर उस मासूम का बलात्कार कई दिनों तक हुआ ! जैसे तैसे वो  अपनी जान बचाकर भागी और पुलिस को अपनी आपबीती सुनाई और पुलिस ने जब लड़की के परिवार को बताया तो एक बहुत बड़ा धक्का लगा उस परिवार को ! सिर्फ बेटी के अंधे प्यार की बजह से , ऐसे  कई उदाहरण हैं जो हमारे सामने हैं जिनसे हमारी युवा पीढ़ी को सबक लेना चाहिए ... किन्तु आज हम जिस चकाचौंध में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं वहां हमारी सोचने समझने की शक्ति क्षीण होती जा रही है ! 

मैं नहीं कहता की प्रेम नहीं करना चाहिए ! प्रेम इन्सान की जरूरत हैं ! पर प्रेम सच्चा हो  मन का सम्बन्ध होता है प्रेम से ना की शरीर से किन्तु आज बहुत कम लोग ऐसे हैं जो मन से प्रेम करते हैं ! क्योंकि आज अश्लीलता चारों ओर फैली हुई है !  प्रेम करने के साथ साथ युवाओं  को सब कुछ ध्यान रखना चाहिए , उन्हें जागरूक होना चाहिए , क्या सही क्या गलत इस बात का पूरी तरह आभास होना चाहिए ! सिर्फ  अंधों की तरह प्रेम ना करे अपनी आँखे खोलें और सब कुछ अच्छे से परख लीजिये ! आज की युवा पीढ़ी  तो पड़ी लिखी है ! फिर क्यों हम अंधी दौड़ मैं भाग रहे हैं  ?? ...................
कहीं ऐसा ना हो आप करें अँधा प्यार ....... जिसकी आपको मंहगी कीमत चुकानी पड़ जाए  ...........

धन्यवाद

Monday, September 17, 2012

काँटा लगा ....... हाय लगा .........>>> संजय कुमार

कांटा , अगर इंसान के शरीर में कहीं भी चुभ जाये तो खून तो निकलता ही है साथ में दर्द भी बहुत और कई दिनों तक देता है ! सच कहूँ तो कोई भी इंसान अपने जीवन में किसी भी तरह के काँटों को पसंद नहीं करता , और ये होना भी नहीं चाहिए वर्ना पूरा जीवन बर्बाद और नीरस हो जाता है ! किन्तु काँटों की परिभाषा हर किसी के लिए अलग मायने रखती है ! यहाँ तो हर फूल के साथ कांटे है  , सच तो ये है कि हर ताज में होते हैं कांटे या यूँ भी कह सकते हैं कि , काँटों से  बना होता है हर ताज ! अरे भई देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी देखने और सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है किन्तु कोई प्रधानमंत्रीजी से तो पूंछे , कांटे क्या होते हैं ? मालूम चल जायेगा ! देश की सरकार के लिए तो आतंकवाद , नक्सलवाद , घोटाले , मेंहगाई , लोकपाल , अन्ना , रामदेव , विपक्ष , कोयला , 2जी , बहनजी  और दीदी सबसे बड़ा काँटा हैं ! ये वो कांटे हैं जो हमारी सरकार को 24 घंटे चुभते रहते हैं सरकार बहुत कोशिश करती है कि  ये कांटे उसके शरीर से निकल जाएँ किन्तु ये इतने पैने और बिषैले हो गए हैं जो सरकार की जान लेने के बाद ही निकलेंगे , एक सच ये भी है कि हमें पैने और नुकीले कांटे को निकालने के लिए उससे भी पैना और नुकीला काँटा लाना होगा ( जब बोया बीज बबूल का तो फूल कैसे खिलें )  ........ अरे भई जहर को जहर मारता है .... लोहे को लोहा काटता है ! बेईमान , घूसखोर , भ्रष्टाचारियों के लिए सबसे बड़ा काँटा ईमानदारी और सज्जन पुरुष है जो कहीं न कहीं उनको अपना काम ( भ्रष्टाचार ) नहीं करने देते ! हमारे देश की तरक्की दुश्मन देशों को काँटों की तरह चुभती है ! साइंस में तरक्की , खेलों ( किर्केट ) में दबदबा , विदेशों में भारतियों की तरक्की , ( ऊंचे पदों पर आसीन ) कई देशों को काँटों की तरह चुभते हैं ! रुढीवादी , परंपरावादी समाज जहाँ पुरुष ही सब कुछ होते हैं ऐसे माहौल में किसी भी नारी का  वर्चस्व उसकी तरक्की इस समाज को काँटों की तरह चुभती है ! इस देश में कई ऐसे लोग भी है जो जान बूझकर काँटों से उलझते हैं ...... इस बात पर मुझे जगजीत सिंह जी एक ग़ज़ल याद आती है  " काँटों से दामन उलझाना मेरी आदत है , दिल में पराया दर्द बसाना मेरी आदत है "  ऐसे भी कई लोग है जो कभी भी अपने बारे में नहीं सोचते वो हमेशा दूसरों की तकलीफ दूर करने में ही अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं ! वो सच्चे समाज सेवक जो सिर्फ सेवा ही करना जानते हैं और उनके लिए सेवा ही कर्म और  धर्म कहलाता है ! देश के लिए लड़ने वाले सच्चे पुरुष , भ्रष्टाचार और घोटालों का विरोध करने वाले , इंसानियत  के लिए लड़ने वाले अपनी जान की परवाह किये बिना दूसरों की जान बचाने वाले लोग भी हैं जिनसे आज ईमानदारी , सच्चाई , देशभक्ति और  मानवता जिन्दा है ! 
काँटा शब्द के मायने और भी हैं ....... सच कहूँ आज के युवाओं को बहुत भाते हैं कांटे .... मैंने गलत तो नहीं कहा  ( क्या काँटा है ) हमने तो कई बार युवाओं के मुंह से सुना है , कब ?  जब किसी तीखी और खूबसूरत लड़की को हमारे बिगड़े सहजादे देख लेते हैं तो ये उनकी तारीफ़ में कुछ इन्हीं अल्फाजों का इस्तेमाल अपने यार दोस्तों के बीच करते हैं ! हमारे नन्हे-मुन्हे बच्चों को भी खूब भाते हैं कांटे ......... अगर नहीं भाते तो भई नुडल्स और मैगी कैसे खाते ...... एक बार गब्बर ने भी तो शोले में कहा था ...... " बहुत कँटीली नचनिया है रे "  कुछ भी हो कांटे किसी को भी पसंद नहीं होते ...... काँटों से इंसान का शरीर ही नहीं अपितु उसकी आत्मा भी आहत  होती है ! 
मैं उन लोगों से निवेदन करता हूँ कि जिनमें इंसानियत लगभग खत्म हो चुकी है !  हमारा संयुक्त परिवार कोई काँटा नहीं है ......... हमारे संस्कार कोई कांटे नहीं है ........ हमारे बेसहारा माँ-बाप कोई कांटे नहीं हैं ...... एक अजन्मी बेटी हमारे लिए कोई काँटा नहीं है ....जिन्हें हम अपने जीवन से बिना बात बस यूँ ही निकाल दें !

धन्यवाद  

Tuesday, September 11, 2012

अभी उमर नहीं है प्यार की .........>>>> संजय कुमार

सच कहूँ तो प्रेम की कोई उम्र नहीं होती , जन्म से लेकर मृत्यु तक और मृत्यु के बाद भी ये प्रेम का सिलसिला यूँ ही चलता रहता है ! प्रेम तो अनंत है और इसकी कहानियां भी अनंत हैं ! माँ - पुत्र का प्रेम , पिता - पुत्र का प्रेम , पति-पत्नी का प्रेम , देश - प्रेम , धर्म-प्रेम ,  राधा - कृष्ण का प्रेम .........  अब जरा  इन्हें भी याद  कीजिये  लैला-मंजनु , हीरा-राँझा , सोहनी-महिवाल  ( सच्चे प्रेमियों के आदर्श ) किन्तु आज जिस तरह का प्रेम या प्रेमी होते हैं उनका आदर्श कौन है  ?  प्रेम की अनेकों कहानियां हमारे बीच हैं , जिनकी बात हम यदा कदा करते रहते हैं ! किन्तु मैं जिस प्रेम की बात कर रहा हूँ वो है आज का दूषित  प्रेम   ( आकर्षण, जहाँ उम्र का कोई बंधन नहीं और  90% की चाहत सेक्स ) आज  का प्यार जिसे हम देशी भाषा में सड़क छाप मंजनु का प्यार ज्यादा कहते हैं वो मंजनू जिसके पास सिर्फ समय ही होता है और इसके आलावा कुछ नहीं ! जैसे जैसे समय बदला प्रेम की परिभाषा भी बदलती  गयी ...और वैसे ही प्रेम का इजहार करने का तरीका और प्रेमी भी बदल गए ! ( मोबाईल  रामबाण का काम करता है ) जिस उम्र में आज के बच्चों को अपना ध्यान अपनी पढ़ाई - लिखाई और अपने भविष्य पर देना चाहिए वहीँ आज 12 से 15 साल के  बच्चों की पीढ़ी ( इस उम्र को हम क्या कहें  ?  युवा पीढ़ी या फिर बच्चे  ) प्रेम - प्यार के चक्कर में घिरे हुए से दिख रहे हैं ! मैं किसी के प्रेम का दुश्मन  नहीं हूँ और ना ही प्यार करने वालों का कोई  विरोधी , बात सिर्फ इतनी सी है कि , आज हमारे घर के बाहर का वातावरण कुछ ठीक नहीं है , आज हम जिस माहौल में  जीवन यापन कर रहे हैं , आज जहाँ हमारे बच्चे अपना बहुमूल्य समय गुजार रहे हैं क्या वो जगह उनके लिए सुरक्षित हैं ? कई लोगों का ये मत होता है कि , क्या हमारे घर सुरक्षित हैं ? जबाब हाँ और ना दोनों ही हैं , फिर भी बच्चे घर से ज्यादा बाहर असुरक्षित हैं और उनका ज्यादा वक़्त घर के बाहर ही व्यतीत होता ! आज कुछ बच्चे गलत राह पकड़ लेते हैं या  कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो उनके लिए या उनके माता-पिता के लिए दुःख का कारण बनते हैं ! शुरुआत कई जगहों से हो सकती है ........ ट्यूशन , कोचिंग क्लासेस का बढ़ता चलन , माता- पिता का बच्चों पर नियंत्रण का ना होना , कुछ बच्चों द्वारा आजादी का गलत फायदा उठाना , चाही - अनचाही मांगों की पूर्ती का होना ( मोबाईल, गाड़ी , जेब खर्च के लिए पैसे ) आज के बच्चों को किस ओर ले जा रहा है थोड़ा चिंतनीय और सोचने का बिषय है ! माता-पिता को अब इस ओर ज्यादा ध्यान  देना आवश्यक है ! हो सकता है आपके बच्चे - बच्चियां छोटी सी उम्र में प्रेम जैसे संवेदनशील मामले में सोचने समझने की क्षमता ना रखते हों और इस पर अपना समय बर्बाद कर रहे हों ! क्योंकि ये उम्र का एक बहुत ही नाजुक पड़ाव होता है जहाँ बच्चे ना तो बड़े होते हैं और ना ही हम उन्हें छोटा कह सकते हैं ! फिर भी इस उम्र के सभी बच्चों की सभी तरह की गतिविधियों पर निगरानी रखना हर माता-पिता की ड्यूटी होती है ! आपके बच्चों के दोस्त कैसे हैं ? उनका नजरिया क्या है ? उनकी सोचने समझने की क्षमता क्या है इस बात की जानकारी हर माता-पिता को होना आवश्यक है ! 
मेरे देश के नन्हे मुन्हे बच्चों अभी उमर नहीं है प्यार की ........ करें सही वक़्त का इन्तजार ....... जब प्रेम की परिभाषा को अच्छे से समझ लें तब अवश्य करें प्यार .............ये दुनिया वो दुनिया नहीं है जहाँ प्रेम पर मर मिटने वाले हजारों थे ......... आज जहाँ देखों हो रहा प्रेम का व्यापार 

धन्यवाद                                

Thursday, September 6, 2012

बालिका वधु .........>>> गार्गी की कलम से

परिणय की सच्चाई से 
अंजान उस 
बालिका को 
दुल्हन बना दिया गया था 
उसे ये सब खेल लग रहा था 
हांथों में चूड़ियाँ 
मांथे पर बिंदिया
लम्बा घूँघट डाल 
उसे उल्लास हो रहा था !
क्योंकि उसे पता ना था 
कि ,
मांथे की  बिंदिया
उसकी हर इक्षा पर अंकुश 
बन जाएगी 
हांथों की चूड़ियाँ 
बेड़ियाँ बन जाएगी 
लम्बा घूँघट 
आजादी और उसके 
बीच की दीवार 
बन जाएगी !
जब तक उसे समझ आई 
काफी देर हो चुकी थी 
वो एक और जिम्मेदारी में 
बंध चुकी थी 
वो " माँ " बन चुकी थी 
जब वो ममता में  बंध गयी 
तो सारी तकलीफें 
सहन करना उसकी 
" मज़बूरी " हो गयी 
जिन्हें वो अपनी 
किश्मत  का लिखा , मानने लगी !
बच्चे बड़े हुए 
फिर एक " वक़्त " ऐसा आया 
उसे लगा कि , अब वो 
इन जिम्मेदारियों से निपट गई 
सोचा अब जरा 
खुली हवा में  सांस लूंगी 
और थकान मिटाऊंगी 
पर जिसके साथ गाँठ जोड़ वह आई थी 
वह पैरों की " बेड़ियाँ " बन गया , वो पलंग पकड़ गया 
और वो फिर से 
थकान लिए सेवा में लग गयी 
बिलकुल तन्हा बिलकुल अकेली !

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद