Saturday, December 17, 2011

हम नहीं चाहते कि, ये लड़ाई कभी बंद हो ....>>>> संजय कुमार

वैसे देखा जाय तो इस देश को हम ही चला रहे हैं और आने वाले हजार सालों तक हम ही इस देश को चलाएंगे ! देखा जाय तो , देश तो अपने आप ही चल रहा है , हमने तो इस देश की लुटिया पहले भी कई बार डुबोई है और आज भी पूरी कोशिश में हम सब लगे हुए हैं , देखते हैं ये कोशिश कब रंग लाती है ! हमारा उद्देश्य देश को आगे बढ़ाने का है ! हम देश को विकसित और विकासशील देशों की श्रेणी में प्रथम स्थान पर लाने के लिए हर संभव कोशिश करने के लिए प्रयासरत हैं ! सच पूंछा जाय तो तो हमारा मुख्य उद्देश्य सिर्फ लड़ना है ! हम कहीं भी कभी भी लड़ सकते हैं ! लड़ने में हम सब पूर्ण रूप से पारंगत हैं ! " संसद भवन " सड़क " मंदिर " घर -बाहर " देश में विदेश में , शादी समारोह में , खेल के मैदान में ! हम बात बात पर लड़ते हैं , बिना किसी बात के भी लड़ते हैं ! सही बात पर भी लड़ते हैं , झूंठी बात पर भी लड़ते हैं ! पक्ष में होते हैं तो लड़ते हैं , विपक्ष में होते हैं तो लड़ते हैं ! हम सरकार में रहकर लड़ते हैं ! हम सरकार से लड़ते हैं ! बिना लड़े , बिना बात का मुद्दा उठाये हमें हमारा खाना कभी हजम नहीं होता ! हमारे लड़ने पर भले ही आम जनता का अहित होता हो , भले ही उनका नुक्सान होता हो , भले ही देश की अर्थव्यवस्था को नुक्सान होता हो , किन्तु इन सब के बीच फायदा सिर्फ हमारा ही होता है ! हम हमेशा सिर्फ अपने भले की सोचते हैं तभी तो " लोकपाल " पर इतने दिनों से लड़ रहे हैं ! हम नहीं चाहते कि , मंहगाई खत्म हो, डीजल-पेट्रोल मूल्य वृधि कम हो , हम नहीं चाहते कि , " कालाधन " मामले पर कोई बात हो , इसे बापस लाया जाये ! इस देश से आतंकवाद खत्म हो , गरीबी खत्म हो , बेरोजगारी खत्म हो , भ्रष्टाचार - घूसखोरी , लूट-खसोट , दंगे-फसाद , धर्म-मजहब के नाम पर होने वाली लड़ाईयां बंद हों ! इस देश में किसान आत्महत्या करता है तो करे , मासूम बच्चे कुपोषण का शिकार होते हों तो हों , देश की युवा पीढ़ी नशे के दलदल में फंसती है तो फसे , इस देश में धर्म की आड़ में महिलाओं का दैहिक शोषण होता है तो हो , भले ही हम अपने वादे पर कभी खरे ना उतरे हों ! ये सारी बातें हमारे लिए सिर्फ मुद्दे हैं , और ये वो मुद्दे हैं जो हमें साल भर अपना काम ( लड़ाई ) करने के लिए पर्याप्त हैं ! हम हमेशा बही काम करते हैं जिसमे हमारा फायदा ज्यादा से ज्यादा हो ! आखिर हम इस देश के महान राजनेता जो हैं ! हम भले ही किसी भी पार्टी में रहें , हमारा उद्देश्य लक्ष्य को कभी भी पूरा ना करना है बल्कि लक्ष्य से भटकाना है ! ये थी राजनेता और उनकी राजनीतिक पार्टियों के मन की बात !

ये है मेरी बात .........>>>> अगर इस देश में राजनेता ना हों तो क्या होगा ? देश में फैला भ्रष्टाचार बंद हो जायेगा ! गरीबों को उनका हक मिल जायेगा ! देश से कुपोषण , भुखमरी , बेरोजगारी समाप्त हो जाएगी ! महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार बंद हो जायेंगे ! धर्म -मजहब के नाम पर भाइयों का आपस में लड़ना बंद हो जायेगा ! देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी , देश तरक्की , प्रगति की ओर अग्रसर होगा ! समाज , और देश में कानून का राज होगा ! देश से " अंधेर नगरी चौपट राजा " वाली कहावत दूर होगी ! किन्तु ये तभी संभव होगा जब इस देश से भ्रष्ट , घूसखोर , बेईमान राजनेता और उनकी पार्टियाँ इस देश से खत्म होंगी ! ये तभी संभव होगा जब सच्चे राजनेता और उनकी राजनीतिक पार्टियाँ देश , समाज , आम जनता का हित सोचने वाली बात पर द्रण संकल्पित हों ! जब तक अच्छे राजनेता इस देश में नहीं होंगे तब तक भ्रष्ट राजनेता यही चाहेंगे कि , राजनीति के नाम पर होने वाली प्रतिदिन की ये लड़ाईयां कभी भी बंद हों !


धन्यवाद

11 comments:

  1. देश से " अंधेर नगरी चौपट राजा " वाली कहावत दूर होगी !
    Aisa kabhi nahee hoga! Andher nagaree hee hamlogon ko raas aatee hai.

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  2. बढ़िया व्यंग्य-लेख...
    बिलकुल यथार्थ चित्रण.

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  3. लड़ाई बन्द होने से चैनलों की टीआरपी कम हो जायेगी।

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  4. आपने बिलकुल सही और सटीक बातें लिखी हैं ........सार्थक आलेख

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  5. राजनीति का शुद्धिकरण भी विकास की प्रक्रिया का हिस्सा है ...समय के साथ परिवर्तन अवश्य आएगा ...प्रक्रिया जारी रहेगी । हम एक मजबूत लोकतन्त्र हैं , हल इसके अंदर ही निकलेगा । अच्छे या बुरे राजनेता हमारे समाज का ही प्रतिबिंब हैं । बदलते समय के साथ राजनीति भी बदलेगी ।

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  6. पहले मै बदलू, सब कुछ रास्ते पर आ जायेगा !

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  7. app ne jis jwalant mudde ko apni kalam se sakar
    roop diya hain ,ye wakai kabile tarif hain,agar
    hum sabhi esa hi sochenge to ye desh jaldi sudhar jayega.

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  8. लोकतंत्र में राजा और प्रजा के कानून में अन्‍तर नहीं होना चाहिए। आज इतनी विसंगतियां इसीलिए बनी हुई हैं कि राजा के ऊपर सीधे कोई कानून नहीं है। इसलिए ये राजनेता और नौकरशाह सामंतशाही के शिकार बनते जा रहे हैं।

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  9. samashya ye hai ki pehchanega kaun ki kaun neta bhrasht hai ya kaunsi party bhrashtachari hai..
    yaha to dost aur dushman ek hi roop me hai, kis se ladoge aur kise apnawoge ?

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  10. iski hi kamai to bahut se log kha rahe hain .
    aaone sahi kaha hai aesa hi hai
    rachana

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  11. अच्छी प्रस्तुती .....

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