Wednesday, September 28, 2011
नवरात्रि - मौसम और जीवन में बदलाव की घड़ी ( जय मातादी .. जय मातादी ) .... >>> संजय कुमार
हिन्दू पंचांग के आश्विन माह की नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाती है। विज्ञान की दृष्टि से शारदीय नवरात्र में शरद ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि बड़ी। वहीं चैत्र नवरात्र में दिन बड़े होने लगते हैं और रात्रि घटती है, ऋतुओं के परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर न पड़े, इसीलिए साधना के बहाने हमारे ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान किया।संभवत: इसीलिए कि ऋतु के बदलाव के इस काल में मनुष्य खान-पान के संयम और श्रेष्ठ आध्यात्मिक चिंतन कर स्वयं को भीतर से सबल बना सके, ताकि मौसम के बदलाव का असर हम पर न पड़े। इसीलिए इसे शक्ति की आराधना का पर्व भी कहा गया। यही कारण है कि भिन्न स्वरूपों में इसी अवधि में जगत जननी की आराधना-उपासना की जाती है।नवरात्रि पर्व के समय प्राकृतिक सौंदर्य भी बढ़ जाता है। ऐसा लगता है जैसे ईश्वर का साक्षात् रूप यही है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ वातावरण सुखद होता है। आश्विन मास में मौसम में न अधिक ठंड रहती है न अधिक गर्मी। प्रकृति का यह रूप सभी के मन को उत्साहित कर देता है । जिससे नवरात्रि का समय शक्ति साधकों के लिए अनुकूल हो जाता है। तब नियमपूर्वक साधना व अनुष्ठान करते हैं, व्रत-उपवास, हवन और नियम-संयम से उनकी शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक शक्ति जागती है, जो उनको ऊर्जावान बनाती है।इस काल में लौकिक उत्सव के साथ ही प्राकृतिक रूप से ऋतु परिवर्तन होता है। शरद ऋतु की शुरुआत होती है, बारिश का मौसम बिदा होने लगता है। इस कारण बना सुखद वातावरण यह संदेश देता है कि जीवन के संघर्ष और बीते समय की असफलताओं को पीछें छोड़ मानसिक रूप से सशक्त एवं ऊर्जावान बनकर नई आशा और उम्मीदों के साथ आगे बढ़े।
जय मातादी ............. जय मातादी ...................... जय मातादी
( जानकारी गूगल से )
धन्यवाद
Wednesday, September 21, 2011
मैं अचेत ......>>>> संजय कुमार
मैं अचेत
लडखडा रहे है मेरे पैर
आकर थाम लो हाँथ
अशांति , बैचैनी
और हताशा है छायी
अँधेरे के सिवा
और कोई नहीं है
पास मेरे
आके पिता
दो मुझको
प्रकाश , प्रेम का आधार
पाने को तेरा प्रत्यक्ष वात्सल्य
कब से लालायित है
मेरा मन
इसी इक्षा के सहारे ही
शायद अभी तक जीवित है
मेरा अंतर मन !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
Sunday, September 18, 2011
जल्द ही गधों की बुकिंग कराइये ......>>> संजय कुमार
धन्यवाद
Wednesday, September 14, 2011
सबसे पहले आप हिंदी का ज्ञान लीजिये ... ...( हिंदी दिवस ) ....>>> संजय कुमार
ऐसा नहीं की मुझे अंग्रेजी नहीं आती इसलिए मैं अंग्रेजी को कोई गलत भाषा कह रहा हूँ , आज मुझे भी अपने कार्य क्षेत्र में अंग्रेजी की जरुरत महसूस होती है ! अगर नहीं भी आती तब भी मैं अपना काम अच्छे से चला लेता हूँ ! आज सबसे ज्यादा बुरा उस वक़्त लगता है जब आज के बच्चे जिन्हें बचपन से ही अंग्रेज बनाया जा रहा है , जब उनके द्वारा कहा जाता है की मुझे हिंदी नहीं आती ! इस तरह के वाक्य सुनकर बड़ा धक्का सा लगता है ! ये सच है, अगर नहीं तो बड़े-बड़े प्रोद्योगिक विद्यालयों में पढ़ने बाले युवाओं से पूंछ लीजिये की उनको हिंदी का कितना ज्ञान है अगर है तो ये हमारे लिए बड़े फक्र की बात है ! आज हम सभी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं या बच्चे पढ़ते भी हैं , कभी आप उनसे हिंदी के बारे में पूँछिये , आपको इस बात का आभाष अवश्य हो जाएगा की आपके बच्चे को सिर्फ अंग्रेजी आती है हिंदी नहीं , और जब आप उसके प्रश्नों का जबाब नहीं दे पाते तो उस वक़्त आप यह महसूस करते हैं या अपने आप को दोष देते हैं की आपने अंग्रेजी क्यों नहीं सीखी, काश हमने भी अंग्रेजी सीखी होती तो आज यूँ बच्चों के सामने शर्मिंदा ना होना पड़ता ! उस वक़्त आप कभी नहीं सोचते की हम अपने बच्चे को हिंदी का भी पूर्ण अध्यन करा देवें जो उसके लिए बहुत उपयोगी है ! आज जिस तरह के परिवेश में हम अपने बच्चों का भविष्य देख रहे हैं उस परिवेश में शायद हिंदी का कोई स्थान नहीं है ! और यदि ये बात सच है तो हमारा युवा या देश का भविष्य सिर्फ अंग्रेजी में ही पारंगत होगा हिंदी में नहीं ! क्यों ........? क्योंकि हम आज अंग्रेजी बोलना अपनी शान समझते हैं ! यदि आपको अंग्रेजी नहीं आती तो आप शर्म और झिझक महसूस करते हैं ! ऐसा क्यों ? यदि नहीं आती तो कोई बात नहीं हम अपनी मात्र भाषा को तो अच्छे से जानते हैं ! हमें उस पर गर्व करना चाहिए ! लेकिन आज की युवा पीढ़ी के साथ ऐसा नहीं है ! उन्हें सिर्फ अंग्रेजी ही आती है और वो अंग्रेजी ही सीखना और जानना चाहते हैं ! उनके लिए हिंदी सिर्फ कचरा भाषा लगती हैं ! शायद हिंदी बोलने से उनका स्टेटस नीचे आ जाता है ! आज तेजी से हिंदी शब्द हम सबसे दूर हो रहे हैं और अंग्रेजी दिल में बस रही है , इसका अंदाजा आप अपने आस-पास के वातावरण को देखकर लगा सकते हैं कि , अंग्रेजी का कितना बोलबाला है ! आज स्थिति बदल गयी है , आज अंग्रेजी हमारे घरों में अपनी पकड़ दिन प्रति -दिन इतनी मजबूत करती जा रही है , जिसके घातक या बुरे परिणाम हम लोगों को भविष्य में देखने को मिलेंगे ! आज जिस तरह के परिवेश में हम सब जी रहे हैं उस परिवेश को आधुनिकता का युग कहते हैं और जब से इन्सान ने अपने आप को इस आधुनिकता की दौड़ में अपने आपको सबसे आगे करने का ढोंग करने लगा तब से इंसान ऐसी चीजों को अपनाने लगा जो कभी उसकी थी ही नहीं ! आज कई लोग भले ही हिंदी स्पष्ट ना बोल पायें इस बात का उन्हें जरा भी गम नहीं होता , लेकिन उनसे कहीं अंग्रेजी बोलने में कहीं कोई गलती हो जाये तो वह अपने आपको शर्मिंदा सा महसूस करते हैं ! ऐसा नहीं होना चाहिए !
इसलिए मैं जानना चाहता हूँ उन लोगों से जो अंग्रेजी को ही सब कुछ समझते हैं , अंग्रेजी ही उनके लिए सब कुछ है ! क्या आपको हिंदी आती है ? यदि नहीं तो सबसे पहले आप हिंदी का ज्ञान लीजिये और फिर सीखें अंग्रेजी .............
धन्यवाद
Saturday, September 10, 2011
भूत हमें रोटी देता है , और आपको .....>>> संजय कुमार
अरे भई डरिये नहीं मैं कोई त्नंत्र मन्त्र की बात नहीं कर रहा हूँ ! और ना ही मैं आपको भूत - प्रेत की कहानियां सुना रहा हूँ ! मैं बात कर रहा हूँ उस भूत की जो चौबीस घंटे हमारे और आपके शरीर , दिमाग और हमारी नस में खून बनकर दौड़ता है ! इस भूत का कमाल हमने पिछले दिनों देखा जब उसने " अन्ना हजारे " को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ! अब आप सोच रहे होंगे कि अन्ना का भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन का भूत से क्या लेना देना ! अरे भई लेना-देना तो है अगर ये भूत नहीं होता तो शायद आज , यूँ ही अन्ना जी को इतना बड़ा जन समर्थन नहीं मिलता ! मैं पहले कुछ बातों पर आप लोगों को गौर करने के लिए कह रहा हूँ ! हम अक्सर अपने मिलने वाले लोगों से , अपने परिवार के सदस्यों से , पत्नि पति से , पति पत्नि से , यार दोस्तों से अक्सर कहते सुना है ! अक्सर पत्नियाँ पति से यही कहती हैं कि तुम्हारे ऊपर तो जैसे काम का भूत सवार है , बस चौबीस घंटे काम और सिर्फ काम , जैसे युवाओं को कहते सुना है , तेरे ऊपर तो प्रेम का भूत सवार है , बच्चों के साथ , बच्चों के ऊपर सिर्फ खेल का भूत सवार होता है ! किसी के ऊपर पढ़ाई का भूत सवार , किसी को गाने का भूत सवार , किसी को नाचने का भूत सवार , किसी को ब्लॉग लिखने का भूत सवार , किसी को रोने का , किसी को सफाई का , किसी को देश भक्ति का भूत सवार , इस तरह देखा जाये तो ये भूत लगभग हज़ार तरह का होता है और लगभग हर इंसान के अन्दर होता है ! इस भूत को हम " जुनून " के नाम से भी जानते हैं ! जब हमारे ऊपर काम का भूत सवार नहीं होगा तो क्या हम तरक्की कर सकते हैं ? हम तरक्की पाने के लिए , सफलता हासिल करने के लिए इस भूत को अपने अन्दर ग्रहण करते हैं तब जाकर हम सफल होते हैं ! " सच कहूँ तो यही भूत हमें रोटी देता है " खुशियाँ देता है , ऊंचे पायदान पर पहुंचाता है ! भूत शब्द का उपयोग हम लोग अक्सर छोटे बच्चों को डराने के लिए करते हैं ! बच्चों सो जाओ वर्ना भूत आ जायेगा , और बच्चा भी डर के मारे सो जाता है ! मेरा सभी माता-पिता से अनुरोध है कि आप बच्चों को भूत का नाम लेकर डराएँ नहीं बल्कि उसे जीवन में ग्रहण करने के लिए कहें वो भी सिर्फ अच्छी चीजों के लिए ! पिछले १० सालों में हमारे देश में जो संचार क्रांति आई है , जिस तरह से हमारे देश में प्रतिभाएं उभर कर सामने आई हैं। हमने विश्व स्तर पर बहुत नाम कमाया हो चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो वो सब इसी भूत की बजह से ससिल किया है ! अगर आज का युवा इस भूत को धारण कर सफलता के लिए प्रयास नहीं करेगा तो शायद ही कभी वह सफलता हासिल कर पाए ! आज हमने देखा है बचपन से ही कई बच्चों पर बहुत कुछ करने का भूत सवार होता है ! कोई खिलाडी बनने के लिए , कोई गायक बानने के लिए , कोई डांसर बनने के लिए , कोई IAS , IPS, MBBS, ENGINEERING, NAVY, POLICE बनने के लिए बचपन से ही मेहनत करता है ! और जब तक उसके सिर पर भूत सवार नहीं होगा तब तक शायद ही वो सफलता हासिल कर सके ! भूत होना बहुत जरुरी है ! अगर देश के सीमाओं पर खड़े जवानों के दिलों में , सिर पर देश भक्ति का भूत सवार ना हो तो ये देश कब का दुश्मनों के हांथों तबाह और बर्बाद हो गया होता , जवान तो अपना काम ईमानदारी से करते हैं आज भी उनके सिर पर भूत सवार है ! किन्तु हमारे देश के भ्रष्ट नेताओं पर कभी भी ईमानदारी और देश भक्ति का भूत सवार नहीं हुआ ! अगर हुआ है तो देश को लूटने , बड़े -बड़े घोटाले करने , भ्रष्टाचार फ़ैलाने जैसे गंदे भूत सवार हुए हैं जो सिर्फ आम जनता का खून चूस रहे हैं ! हम नहीं चाहते ऐसे भूत जो इंसान को और इंसानियत को खत्म कर रहे हों !
गुजारिश :---- जीवन में सफलता हासिल करने के लिए हम सभी को इस भूत को अपने अन्दर ग्रहण करना होगा ! वैसे तो भूत हमेशा हमारे शरीर के अन्दर होता है ! जरुरत है उसे जगाने की , तो सोते हुए भूत को जगाइए और सफलता के ऊंचे पायदान पर बढ़ते चले जाइये !
धन्यवाद
Saturday, September 3, 2011
लोग मुझे नास्तिक कहते हैं ....>>>> संजय कुमार
हाँ , अगर आडम्बर के बोझिल गहनों से
अपने और परमपिता
के प्रेम को ना सजाना नास्तिक होना है
तो मुझे ये पहचान कुबूल है ,
क्योंकि कोई भी शब्द
घ्रणा या प्रेम का का पात्र ,
नहीं होता
उस शब्द के प्रति भाव का निर्धारण तो
हम करते हैं जैसे " हाय ये चाँद "
अब इस वाक्य में आह भी है और ओह भी
ऐसे ही कोई प्रभु को आडंबरों के साथ अपनाता
और कोई आडम्बर के बिना
मैं नास्तिक अपने पिता से
मूक वार्ता करती हूँ
जब कोई सवाल मुझे परेशान कर देता है
तो पिता से ही
उसका जबाब देने को , कहती हूँ
और कोई यकीन करे ना करे
मेरे पिता प्रत्यक्ष जबाब देते हैं
पर अप्रत्यक्ष और मूक रहकर
एक बार पूरी श्रद्धा से
विना आडम्बर के
आप भी करके देखिये
यकीन हो जायेगा
( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
Thursday, September 1, 2011
दाग अच्छे हैं, या बुरे .....>>> संजय कुमार
सर्वप्रथम समस्त ब्लोगर साथियों को प्रथम पूज्य " श्री गणेश " चतुर्थी की बहुत बहुत बधाई एवं ढेरों शुभ-कामनाएं ! " श्री जी " की स्थापना कर सदा उनका प्रेम और आशीर्वाद पायें ! ------------------------------------------------------------------- जब हम सब छोटे थे तो हमारी माँ अक्सर एक बात अवश्य बोलतीं थीं और डांटती भी थीं कि , बेटा ऐसे मत खेलना की कपडे गंदे हो जाएँ या फिर उन पर कोई दाग लग जाये ! जब हम स्कूल जाते थे तब भी " माँ " एक बात विशेष रूप से बोलती थी समझाती थी " बेटा सड़क पर ठीक ढंग से चलना , कपड़ों पर धुल - मिटटी का दाग ना लग पाए वर्ना मास्टरजी बहुत डांटेंगे , और अगर गलती से सफ़ेद शर्ट पर कोई दाग लग जाता था तो " मास्टरजी " बहुत डांटते थे ! घर आने पर " माँ " भी जब कपड़ों पर दाग देखती थीं तो वो भी डांटा करती थी ! और कहती थी " बेटा दाग अच्छे नहीं होते वो हमको असंस्कारी बनाते हैं ! एक बात हमेशा याद रखना की तुम पर जीवन में कभी कोई दाग ना लगे ! उस वक़्त हम सब माँ की बात को अनसुना कर देते थे और बचपन की मस्ती में मस्त होकर खूब खेला करते थे और धूल- मिटटी से अपने कपड़ों पर कई बार दाग भी लगा लेते थे ! युवावस्था में भी माँ - बाप हमको यही समझाते रहते हैं , कि , बेटा ऐसा कोई काम मत करना जिससे तुम्हारी बदनामी हो या हमें शर्मिंदगी उठानी पड़े , ऐसा कोई काम मत करना कि , जीवनभर के लिए हमारे दामन पर कोई दाग लग जाये ! क्योंकि बिना दाग वाले इंसान की पहचान सभ्य लोगों में होती है और दागदार दामन वाले इंसान को हम सभी बुरी नज़र से देखते हैं ! " माँ " ठीक भी कहती थी दाग अगर आपके कपड़ों पर लग जाये तो सब आपको बुरी नजर से देखते हैं कि , कैसा लड़का है इसके कपड़ों पर लगा दाग कितना भद्दा लग रहा है ! किन्तु बचपन में जो दाग कपड़ों और शरीर पर लगते थे तो वो दाग पानी से साफ़ भी हो जाते थे ! जब हम बड़े हुए तो दाग लगने का महत्त्व भी अच्छे से जानने लगे ! शरीर या बाहरी आवरणों या कपड़ों पर लगा हुआ दाग तो आसानी से धुल जाता है और निशान भी एक समय के बाद चला जाता है ! किन्तु इंसान के चरित्र पर जब कोई दाग लगता है तो वो दाग इंसान के जीवन पर्यंत तक बना रहता है ! जब तक इंसान की सांस चलती है तब तक चरित्र पर लगा हुआ दाग इंसान का पीछा नहीं छोड़ता ! इंसान की सौ अच्छाइयों पर जिस तरह एक बुराई भारी पड़ जाती है ! ठीक उसी प्रकार भगवान् की तरह पूजे जाने वाले महात्मा पुरुष के चरित्र पर जब कोई दाग लगता है तो वो, महात्मा से शैतान बन जाता है , वो कितनी भी सफाई दे उसके चरित्र पर लगा दाग उसे जल्द मुक्त नहीं करता ! शायद ही इस प्रथ्वी पर कोई ऐसा इंसान हो जिसके जीवन में उसके चरित्र पर उसके दामन पर कोई दाग ना लगा हो , ( जिनके चरित्र पर दामन पर आज तक कोई दाग नहीं लगा वो आज अपवाद है ) क्योंकि इंसान को उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक एक लम्बा और कठिनाइयों भरा जीवन जीना होता है और जाने अनजाने उसके साथ बहुत कुछ अच्छा - बुरा भी होता है ! कई बार जाने अनजाने इंसान बड़ी - बड़ी गलतियाँ कर बैठता है ! कुछ याद रखते हैं कुछ भूल जाते हैं ! ये सब जानकार सुनकर लगता है कि , दाग बुरे होते हैं !
किन्तु आज मैं अपने चारों तरफ जब देखता हूँ तो हर जगह मुझे ऐसे ही लोग दिखते हैं जिनके दामन पर कई दाग हैं और इन दागों के साथ वो आज सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते चले जा रहे हैं ! आज देश में ऐसे लोगों की संख्या बहुत है जिनका दामन कहीं ना कहीं दागदार है और यही दाग उनको सफलता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं ! आज हर क्षेत्र में ऐसे लोगों का बोलबाला है ! राजनीति आज पहले पायदान पर है ! जिस नेता पर जितने दाग उसकी प्रसिद्धि उससे कहीं ज्यादा ! आज धर्म का प्रचार करने वाले साधू-संत भी कहीं ना कहीं इस दौड़ में शामिल हैं ! यदा कदा उनके चरित्र भी दागदार हुए हैं ! आज देश में भ्रष्टाचारी , घोटालेबाज , बड़े - बड़े अफसर , मंत्री - संत्री , जज , वकील , डॉक्टर , शिक्षक सभी के दामन पर दाग हैं ! शायद दामन पर लगे हुए दाग ही इनकी मुख्य पहचान हैं ! आज लगता है सफलता पाने का ये नया फार्मूला अपने चरम पर है ! जब तक आपके दामन पर कोई दाग ना लगा हो तब तक शायद आपकी कोई पहचान ना हो ! अब आप ही बताएं की सफलता पाने के लिए दामन पर दाग लगा होना क्या आवश्यक है ?
दाग अच्छे हैं या बुरे .......... ( एक छोटी सी बात )
धन्यवाद