Friday, April 22, 2011

अब नहीं रहे अपने घर, पहले के जैसे .....>>> संजय कुमार



कहा जाता हैं कि, हिंदुस्तान वो जगह है जहाँ की हर चीज अपने आप में बहुत महत्त्व रखती है ! यहाँ के संस्कार , अपनापन , रिश्तों का मान-सम्मान , रीति -रिवाज और भी बहुत कुछ है ! हिन्दुस्तान के हर एक घर में कुछ ना कुछ विशेषताएं होती हैं ! चाहे वह घर अपने और दूसरों के मान-सम्मान के लिए जाना जाता हो या परंपरा और संस्कारों के लिए जाना जाता हो ! हिन्दुस्तान का हर घर कुछ नहीं, बहुत कुछ कहता है ! जब ये बात हम सुनते हैं तो अपने आप में फक्र सा महसूस करते हैं ! अपने घर परिवार में माता-पिता का सम्मान हो या बड़े भाई बहनों का आदर या फिर छोटों से प्यार या फिर अपने पडोसी से अच्छे सम्वंध जब ये सब कुछ होता है तो मन प्रसन्न रहता है ! हम सब अच्छे सुख समृधि कि कामना करते हैं ! एक वक़्त था जब ये सारी चीजें हमारे पास थीं लेकिन आज शायद ये सभी चीजें हमारे पास नहीं हैं ! अब ये सारी चीजें हमारे बीच से लगभग खत्म सी हो गईं हैं ! माता-पिता का सम्मान लगता हैं कहीं खो गया है ! हम भूल गये बड़ों का आदर करना , और छोटों से प्यार करना ! आज के पड़ोसी तो हमें किसी दुश्मन की तरह लगते हैं ! आज पडोसी अपने दुःख से कम दुखी है लेकिन पडोसी के सुख से कहीं ज्यादा दुखी ! आज परम्पराएँ भी आधुनिकता में कहीं खो गई हैं ! आज सब कुछ बदल गया है ! ऐसा लगता है जैसे हम किसी की मुट्ठी में कैद हो गए हों और जिसने हमारी सोच बदल दी हो ! जी हाँ यह सच है ! मैं यहाँ बात कर रहा हूँ आज हमारे घरों में घर चुके टेलीविजन की और आने बाले डेली सोप प्रोग्राम और सीरियल की जिन्होंने हमारे दिमाग के साथ साथ हमारे घरों पर किसी दुश्मन की तरह कब्ज़ा कर लिया है ! आज शायद ही कोई ऐसा घर हो जिस घर में डेली सोप सीरियल की चर्चा ना होती हो ! घर में "माँ" हो या पिताजी , पत्नि , भाई या भाभी , बहन या हमारे प्यारे बच्चे , इन सभी पर इन सीरियल और प्रोग्राम का असर देखा जा सकता है ! आज इनको देखकर हमारे परिवार के सदस्यों की दिनचर्या एवं उनके वयवहार में कितना परिवर्तन आ गया है यह हम सब देख रहे हैं, महसूस कर रहे हैं ! हम तो आज पूरी तरह इन पर निर्भर से हो गए हैं ! यदि हम किसी दिन कोई पसंदीदा प्रोग्राम अगर देखने से चूक जाएँ तो फिर आप देखिये स्थिति, जो तड़प ऐक प्यासे को पानी के लिए होती है उससे कहीं ज्यादा और ना बुझने वाली तड़प हम देख सकते हैं ! यह सब आज की आधुनिकता का ही नतीजा है आज हम जरुरत से ज्यादा इन पर निर्भर हो गए हैं और उस पर दिन - प्रतिदिन बढ़ते टीव्ही चैनलों कि बाढ़ ! जितने ज्यादा चैनल उतने ज्यादा प्रोग्राम ! अब तो हम लोग सीरियल किरदारों में अपने लोगों तक को देखने लगे हैं ! अपनों की तुलना , अपने घर की तुलना इनसे करने लगे हैं ! अब सब कुछ बदल सा गया है ! अब नहीं रहे अपने घर पहले के जैसे ! अब हर घर इनकी गिरफ्त में है ! यह सब कुछ हुआ है पिछले पंद्रह बर्षों में ! जरा याद कीजिये उस वक़्त को जब हम सब अपने परिवार के सदस्यों साथ बैठकर रामायण और महाभारत जैसे संस्कार देने वाले सीरियल देखा करते थे , तो उस वक़्त सब कुछ बड़ा अच्छा लगता था ! उस वक़्त हम सब नियमित रूप से अपने सभी काम करते थे ! तब यही टीव्ही हमें अच्छा लगता था पर अब नहीं ! क्योंकि आज बहुत कुछ गलत दिखाया जा रहा है ! आज बहुत से घर परिवार इन सीरियल के कारण बर्बाद हो रहे हैं ! फिर चाहे प्रतिदिन का बढता सास-बहु का झगडा , देवरानी - जिठानी की " तू-तू मैं- मैं " सब कुछ कहीं ना कहीं इसके कारण ही है ! अब संयुक्त परिवार तो बहुत कम बचे हैं अगर हैं भी तो परिवार के सदस्यों में अब वो बात नहीं है , क्योंकि वो तो संयुक्त होते हुए भी अलग जैसे ही हैं ! आज परिवारों में मनोरंजन तो होता है किन्तु बंद कमरों में कैदियों की तरह , जब हम लोग बंद कमरों में अपना मनोरंजन करते हैं तो फिर कब ? हम अपनों को समय देंगे और उनका हाल चाल जानेंगे और कब उनके साथ मनोरंजन करते हुए प्यार के दो पल , वो कभी ना भूलने वाले पल बिताएंगे !

यहाँ पर मैंने बहुत सारी बुराई लिख दी हैं किन्तु ये भी सत्य है कि, हर बुरी चीज के साथ अच्छी चीज भी जुडी होती है ! यह आज के समय की जरूरत भी है ! लेकिन जरुरत को कभी लत नहीं लगना चाहिए ! किन्तु आज हम सब इस पर पूरी तरह निर्भर हैं ! या यूँ कह सकते हैं हम हैं इनकी मुट्ठी में ! हमारे साथ साथ हर इक घर हैं इनकी मुट्ठी में ! अपने घर को पहले जैसा बनाने की जिम्मेदारी परिवार के सभी सदस्यों की होती है तो अब कोशिश कीजिये सब के साथ मनोरंजन करने की !

जय हो "बुद्धू बक्से" की ...........( ऐक छोटी सी बात ) जरा गौर कीजिये .................

धन्यवाद

13 comments:

  1. आप सच कह रहे हैं, पहले घर हुआ करते थे। परिवार के सदस्‍यों की उष्‍मा से पीरिपूर्ण। लेकिन आज केवल मकान हैं, शरण-स्‍थली के रूप में। बस टीवी एकमात्र साधन रह गया है, घर की जीवन्‍तता बनाए रखने का।

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  2. बहुत सुन्दर और सामयिक लेख लिखा है संजय भाई !
    प्यार -मुहब्बत के स्वाभाविक रिश्तों में जरूर फर्क आया है , बुद्धू बक्से ने अच्छे-अच्छों को बुद्धू बनके रख दिया |

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  3. पहले घर हुआ करते थे…………आज केवल मकान हैं…………सामयिक लेख।

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  4. बहुत बदल गयी है स्थिति।

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  5. यह भी समाज की दुखती रगों में से एक है.. ब्लॉग का नया रूप पसंद आया.. बधाई

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  6. वर्तमान पारिवारिक स्वरूप का सटीक विश्लेषण...

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  7. Badalte paariwarik haalaton ka dhukhad pahalu ka maarmik chitran.... bahut saalta hai yah dukh par kya karen!!!

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  8. आज बहुत से घर परिवार इन सीरियल के कारण बर्बाद हो रहे हैं ! फिर चाहे प्रतिदिन का बढता सास-बहु का झगडा , देवरानी - जिठानी की " तू-तू मैं- मैं " सब कुछ कहीं ना कहीं इसके कारण ही है !
    बहुत सुन्दर और सामयिक लेख लिखा है........ संजय जी !

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  9. ये सच है की पहले जैसी ख़ूबसूरती और अपनापन नहीं रहा घरों और रिश्तों में। लोग अपने में कुछ ज्यादा ही सिमट गए हैं।

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  10. विचारोत्तेजक आलेख.

    बधाई स्वीकारें

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  11. व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.

    आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
    दिनेश पारीक

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  12. सोचने के लिये मजबूर करता है आलेख। सच मे आब केवल ईँट पत्थर के मकान हैं और उनमे रहने वालों की संवेदनायें भी पत्थर हो चुकी हैं। । प्रेरक पोस्ट के लिये आभार। शुभकामनायें।

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