Friday, December 30, 2011

स्वागत ..... स्वागत.... स्वागत २०१२ , नवबर्ष की ढेरों - अनेकों शुभ-कामनाएं ....>>>> संजय कुमार

सर्व-प्रथम सभी ब्लौगर साथियों को एवं परिवार के सभी सदस्यों को नवबर्ष की हार्दिक बधाई , ढेरों अनेकों शुभ-कामनाएं ! आने वाला बर्ष आप सभी के जीवन में नयी उमंग-तरंग और ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये ! आप सभी परिवार सहित स्वस्थ्य रहें, मस्त रहें , एवं सफलता के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे ! गुजरे साल के अच्छे खुशनुमा पलों को याद कर , बुरे वक़्त को भुलाकर इस आने वाले नवबर्ष का स्वागत करना होगा ! हम अपने बीते बर्ष के उन अच्छे पलों को याद करते हुए , वो पल जो हमें उत्साहित करते हैं , जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं , उन पलों को याद करते हुए आगे बढ़ना है , ना की उन पलों को याद करना है जो हमें हतोत्साहित करें , हमें आगे बढ़ने से रोकें ! हमें अपने सिद्धांतों पर ईमानदारी के साथ द्रण रहना है !


आज मैं कृतज्ञ हूँ आप सबका , आज मैं शुक्र गुजार हूँ आपका , आप सभी ने जो प्रेम-स्नेह , मार्ग-दर्शन मुझे दिया है वह मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूलूंगा , जो स्नेह इस ब्लॉगजगत से मिला शायद ही कहीं और से मिला हो आप सभी यह प्रेम-स्नेह एवं मार्ग-दर्शन मुझ पर ऐसे ही बनाये रखें ! मैं इस नवबर्ष में आपके समक्ष कुछ अच्छा लिखने की पूरी कोशिश करूंगा !


आप सभी परिवार सहित इस नव-बर्ष २०१२ का स्वागत कीजिये


एक बार फिर से नवबर्ष की ढेरों -अनेकों शुभ-कामनाओं सहित


धन्यवाद


संजय कुमार चौरसिया & गार्गी चौरसिया


देव & कुणाल

Friday, December 23, 2011

क्या कहा ?..... " किसान दिवस "........? .....>>> संजय कुमार

मैंने तो आज तक किसानों के बारे में सिर्फ बचपन में किताबों में पढ़ा था कि , भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत के गावों में देश की शान किसान निवास करते हैं ! हमेशा यही सुनते आये कि , किसान नहीं तो भारत नहीं ! किसान अगर नहीं होगा तो इस देश में कुछ नहीं होगा ! और एक नारा " जय जवान- जय किसान " सुना है ! या फिर आजकल किसानों के बारे में सिर्फ एक ही बात सुनने - पढ़ने को मिलती है ! कर्ज के बोझ तले किसी किसान ने आत्महत्या कर ली, या फिर , बीज और खाद के लिए किसान दर-दर भटक रहे हैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं हैं ! मुझे दो-तीन दिन पहले ही मालूम चला है कि , २३ दिसंबर को " किसान दिवस " है ! क्योंकि इससे पहले कभी भी मैंने इस दिवस के बारे में नहीं सुना था ! यदि ये गत बर्षों से मनाया जा रहा था, तो मुझे बहुत हैरत और अपने आप पर शर्म महसूस होती है कि , मुझे इस बारे में अब मालूम चला ! यदि ये शुरुआत है और आने वाले बर्षों में भी इसी दिन मनाया जायेगा तो थोड़ी ख़ुशी भी हुई , कम से कम एक दिन तो हम किसानों के बारे में बात कर पायेंगे , वर्ना उनकी सुनने वाला कौन है ? हम सभी बर्ष की शुरुआत होते ही " नव-बर्ष " बेलिनटाइन " महिला-दिवस " माँ-दिवस " पिता -दिवस " मजदूर-दिवस " बाल दिवस " जैसे सेंकडों दिवस हम बर्ष भर मनाते रहते हैं ! किन्तु " किसान दिवस " के बारे में कभी नहीं सुना ! आज इस देश में जो स्थिति किसानों की है वह किसी से भी छुपी नहीं है ! गरीब , लाचार , दुखी -पीड़ित और हर तरफ से मजबूर ! विश्व भर के समाचार पत्र , टेलीविजन , अखबार भरे पड़े रहते हैं ऐसी ख़बरों से जिनमें गरीब का दर्द कहीं छुप जाता है ! कहीं इसका जन्मदिन, कहीं उसकी पुण्यतिथि , कहीं ये घोटाला , कहीं वो भ्रष्टाचार , करोड़ों की शादी , अरबों का टैक्स , आरक्षण , मंहगाई , संसद , क्रिकेट , सेंसेक्स , सास-बहु के सीरियल और ना जाने क्या क्या ! हर दिन बस ऐसी ही ख़बरों में दिन निकल जाता जाता है ! पर इस देश में पीड़ितों की सुनने वाला कोई नहीं हैं ! फिर चाहे गरीब , मजबूर और लाचार ही क्यों ना हों , हाँ पीड़ितों और गरीबों का हक खाने वालों की कोई कमी नहीं है हमारे देश में ! हम लोग हर स्थिति से वाकिफ हैं ! शायद हम बहुत कुछ देखना नहीं चाहते या हम सब कहीं ना कहीं सब कुछ जानकर भी अंजान हैं ! देश के लिए, देश के लोगों के लिए कड़ी मेहनत कर अन्न उत्पन्न करने वाला किसान आज अन्न के एक एक दाने - दाने तक को मोहताज है ! कुछ राज्यों के किसानों को छोड़ दिया जाए जिनकी स्थिति बहुत अच्छी है ! किन्तु देश में ऐसे किसानों की संख्या बहुत अधिक है जिनकी स्थति बहुत खराब एवं दयनीय है ! आज किसान हर तरफ से दुखी है ! आज का किसान कर्ज में पैदा होता है और कर्ज में ही मर जाता है ! आज कहीं सूखा पड़ने से किसान मर रहा है तो कहीं ज्यादा बारिस किसान को बर्बाद कर रही रही है ! कभी बाढ़ , कभी ओलावृष्टि किसानों को खुदखुशी करने पर मजबूर करती है ! कहीं अत्यधिक कर्ज किसानों की जान ले रहा है ! हम जो जीवन जीते हैं , हम जिस चकाचौंध भरे माहौल में रहते हैं , उस तरह का जीवन जीने की , किसान सिर्फ कल्पना ही कर सकता है ! हमारी सरकार किसानों के लिए कितना कर रही है ! सरकार की ढेर सारी योजनाओं का कितना फायदा किसानों को मिलता है ! ये बात हम सब से छुपी नहीं है ! जहाँ किसान एक -एक पैसे के लिए दर दर भटक रहा है, वहीँ इस देश में कुछ नेता अपनी प्रतिमा लगवाने में पैसे का दुरूपयोग कर रहे हैं ! गरीब किसानों के समक्ष करोड़ों की मालाएं मुख्यमंत्री को भेंट स्वरुप दी जाती हैं और दूसरी तरफ गरीबी से तंग आकर किसान आत्महत्या कर रहा है ! कहीं कोई नेता सिर्फ नाम के लिए अरबों रूपए शादी के नाम पर खर्च कर रहा है ! कहीं कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा है तो कोई कालाधन बापस लाने के लिए सरकार पर दबाव डाल रहा है ! सिर्फ एक दुसरे की टांग खिचाई में ही लगे हुए हैं ! तो कहीं मंहगाई से आम आदमी का जीना दुशवार हो गया है ! एक तरफ देश के कई मंत्री मंहगाई भत्ता , और अपने फायदे केलिए कितने तरह के विधेयक संसद में पास करवा लेते हैं ! इसके बिपरीत किसान अपनी फसलों का उचित मूल्य भी नहीं प्राप्त कर पाते पाते, उन्हें अपनी फसलों के उचित मूल्य के लिए भी सरकार के सामने अपनी एडियाँ तक रगढ़नी पड़ती हैं ! वहीँ राजनेता मंहगाई बढ़ा - चढ़ा कर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और इसका जिम्मेदार किसान को ठहराते हैं ! इतनी दयनीय स्थिति होने के बावजूद हमारी सरकार कहती हैं कि, आज का किसान खुश है ! जब हम लोग अच्छा कार्य करने पर और लोगों को पुरुष्कृत करते हैं , तो फिर जो किसान हर दिन - रात , सर्दी - गर्मी , कड़ी धुप में मेहनत करके हम सभी की जरूरत को पूरा करते हैं तो हम उनको पुरुष्कृत क्यों नहीं करते ? हम उनके लिए क्या करते हैं ? सच तो ये है जब सरकार और सरकार के अन्य संगठन किसानों के लिए कुछ नहीं कर पा रहे है तो हम भी क्या कर सकते हैं ? हमें " शास्त्री जी " का यह नारा अब बदल देना चाहिए " जय जवान - जय किसान " आज हम जवानों की जय तो करते हैं किन्तु किसानों की जय नहीं , क्योंकि आज किसानों की जय नहीं पराजय हो रही है ! इस देश में आज सब कुछ चल रहा है किन्तु किसान नहीं ................................ खुद भूखा रहकर हम लोगों की भूख मिटाने वाला किसान , किसान नहीं हमारा भगवान है ! किसानों को भी एक अच्छी जिंदगी जीने का हक है ! " किसान -दिवस " पर देश के समस्त किसानों को मेरा शत - शत नमन !

धन्यवाद

Saturday, December 17, 2011

हम नहीं चाहते कि, ये लड़ाई कभी बंद हो ....>>>> संजय कुमार

वैसे देखा जाय तो इस देश को हम ही चला रहे हैं और आने वाले हजार सालों तक हम ही इस देश को चलाएंगे ! देखा जाय तो , देश तो अपने आप ही चल रहा है , हमने तो इस देश की लुटिया पहले भी कई बार डुबोई है और आज भी पूरी कोशिश में हम सब लगे हुए हैं , देखते हैं ये कोशिश कब रंग लाती है ! हमारा उद्देश्य देश को आगे बढ़ाने का है ! हम देश को विकसित और विकासशील देशों की श्रेणी में प्रथम स्थान पर लाने के लिए हर संभव कोशिश करने के लिए प्रयासरत हैं ! सच पूंछा जाय तो तो हमारा मुख्य उद्देश्य सिर्फ लड़ना है ! हम कहीं भी कभी भी लड़ सकते हैं ! लड़ने में हम सब पूर्ण रूप से पारंगत हैं ! " संसद भवन " सड़क " मंदिर " घर -बाहर " देश में विदेश में , शादी समारोह में , खेल के मैदान में ! हम बात बात पर लड़ते हैं , बिना किसी बात के भी लड़ते हैं ! सही बात पर भी लड़ते हैं , झूंठी बात पर भी लड़ते हैं ! पक्ष में होते हैं तो लड़ते हैं , विपक्ष में होते हैं तो लड़ते हैं ! हम सरकार में रहकर लड़ते हैं ! हम सरकार से लड़ते हैं ! बिना लड़े , बिना बात का मुद्दा उठाये हमें हमारा खाना कभी हजम नहीं होता ! हमारे लड़ने पर भले ही आम जनता का अहित होता हो , भले ही उनका नुक्सान होता हो , भले ही देश की अर्थव्यवस्था को नुक्सान होता हो , किन्तु इन सब के बीच फायदा सिर्फ हमारा ही होता है ! हम हमेशा सिर्फ अपने भले की सोचते हैं तभी तो " लोकपाल " पर इतने दिनों से लड़ रहे हैं ! हम नहीं चाहते कि , मंहगाई खत्म हो, डीजल-पेट्रोल मूल्य वृधि कम हो , हम नहीं चाहते कि , " कालाधन " मामले पर कोई बात हो , इसे बापस लाया जाये ! इस देश से आतंकवाद खत्म हो , गरीबी खत्म हो , बेरोजगारी खत्म हो , भ्रष्टाचार - घूसखोरी , लूट-खसोट , दंगे-फसाद , धर्म-मजहब के नाम पर होने वाली लड़ाईयां बंद हों ! इस देश में किसान आत्महत्या करता है तो करे , मासूम बच्चे कुपोषण का शिकार होते हों तो हों , देश की युवा पीढ़ी नशे के दलदल में फंसती है तो फसे , इस देश में धर्म की आड़ में महिलाओं का दैहिक शोषण होता है तो हो , भले ही हम अपने वादे पर कभी खरे ना उतरे हों ! ये सारी बातें हमारे लिए सिर्फ मुद्दे हैं , और ये वो मुद्दे हैं जो हमें साल भर अपना काम ( लड़ाई ) करने के लिए पर्याप्त हैं ! हम हमेशा बही काम करते हैं जिसमे हमारा फायदा ज्यादा से ज्यादा हो ! आखिर हम इस देश के महान राजनेता जो हैं ! हम भले ही किसी भी पार्टी में रहें , हमारा उद्देश्य लक्ष्य को कभी भी पूरा ना करना है बल्कि लक्ष्य से भटकाना है ! ये थी राजनेता और उनकी राजनीतिक पार्टियों के मन की बात !

ये है मेरी बात .........>>>> अगर इस देश में राजनेता ना हों तो क्या होगा ? देश में फैला भ्रष्टाचार बंद हो जायेगा ! गरीबों को उनका हक मिल जायेगा ! देश से कुपोषण , भुखमरी , बेरोजगारी समाप्त हो जाएगी ! महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार बंद हो जायेंगे ! धर्म -मजहब के नाम पर भाइयों का आपस में लड़ना बंद हो जायेगा ! देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी , देश तरक्की , प्रगति की ओर अग्रसर होगा ! समाज , और देश में कानून का राज होगा ! देश से " अंधेर नगरी चौपट राजा " वाली कहावत दूर होगी ! किन्तु ये तभी संभव होगा जब इस देश से भ्रष्ट , घूसखोर , बेईमान राजनेता और उनकी पार्टियाँ इस देश से खत्म होंगी ! ये तभी संभव होगा जब सच्चे राजनेता और उनकी राजनीतिक पार्टियाँ देश , समाज , आम जनता का हित सोचने वाली बात पर द्रण संकल्पित हों ! जब तक अच्छे राजनेता इस देश में नहीं होंगे तब तक भ्रष्ट राजनेता यही चाहेंगे कि , राजनीति के नाम पर होने वाली प्रतिदिन की ये लड़ाईयां कभी भी बंद हों !


धन्यवाद

Saturday, December 10, 2011

युवा, जोश और आवेश, ख़ुशी और मातम .....>>> संजय कुमार

जोश और आवेश में अंतर तो बहुत नहीं हैं किन्तु इनके अर्थ अलग हो सकते हैं ! एक जोशीला युवक अपने समाज और देश की स्थिति में बदलाव ला सकता है ! किन्तु एक आवेशित युवक अपना और अपने समाज का सिर्फ अहित कर सकता है ! आवेश का एक रूप गुस्सा भी होता है ! जोश हमें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है ! जीवन में सफलता हांसिल करने के लिए हमारे अन्दर जोश का होना अत्यंत आवश्यक है ! जोश और आवेश हर इंसान के अन्दर होता है ! मैं यहाँ बात करना चाहता हूँ सिर्फ युवाओं की , उनके जोश और आवेश की ! किन्तु आज के युवाओं के अन्दर का जोश और आवेश दोनों ही उनके लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं ! उदाहरण के तौर पर आपको एक ताजा घटना से अवगत कराता हूँ , हालांकि इस तरह की घटनाएँ आज देश के हर छोटे -बड़े शहरों में प्रतिदिन हो रहीं हैं ! चार जोशीले युवक तेज गति से वाहन चलाने की शर्त लगाते हैं , वो भी रात में शहर के व्यस्त हाइवे पर ( सिर्फ जोश में ) रेस शुरू होती है और चंद मिनटों में सब कुछ खत्म ! एक वाईक पर सवार दो युवक सामने से आ रहे ट्रक से टकरा जाते हैं ! एक मौके पर ही दम तोड़ देता है और दूसरा अपना जीवन बचाने के लिए हॉस्पिटल में आज भी मौत से संघर्ष कर रहा है ! ये आवेश नहीं जोश था ! चार दोस्त किसी पार्टी में आपस में झगड़ते हैं और उन्हीं में से एक दोस्त आवेश में आकर वियर की बोतल फोड़कर एक के पेट में घुसेड देता है ये जोश नहीं आवेश था ! जिस जोश को हम प्रेरणादायक कहते हैं बही जोश आज हमसे हमारी खुशियाँ छीन रहा है , खुशियाँ मातम में बदल रहीं हैं ! आजादी के पूर्व युवाओं में जो जोश था वो सकारात्मक था ! " भगत सिंह " चंद्रशेखर आजाद " राम-प्रसाद बिस्मिल " सुभाष चन्द्र बोस " जैसे क्रांतिकारियों को हम जोशीले युवकों के रूप में जानते थे ! इन सभी के जोश ने भारत को आजादी दिलाई ! ये सभी जोश से भरपूर थे आवेश से नहीं ! किन्तु आज का युवा जोश में भी है और आवेश में भी ! बदलते परिवेश के साथ आज के युवाओं का जोश सकारात्मक कम नकारात्मक ज्यादा है ! आज युवाओं में जोश है तो उल्टी-सीधी शर्त लगाने का , मसलन वाईक - कार रेस , देर रात तक पार्टियाँ करने का जोश , शराब पीने का जोश , नशा करने का जोश , बिना बात लड़ने - झगड़ने का जोश , जोश में आकर सिर्फ गलत काम करने का जोश जिसके परिणाम कभी भी सकारात्मक नहीं होते ! देखा जाय तो देश में सकारात्मक जोश वाले युवाओं का अकाल है ! आज आवेशित युवा दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं !
युवाओं के जोश और आवेश के नकारात्मक परिणाम का फल या सजा आज उनके परिवार को भुगतनी पड़ रही है ! जब कभी कोई किसी दुर्घटना में मारा जाता है तो हम सबसे पहले जोश और आवेश को ही दोषी मानते हैं ! आज के युवाओं में धैर्य और सब्र नाम की चीज बिलकुल भी नहीं हैं ! आज हमारे देश का युवा नकारात्मक पहलुओं की ओर ज्यादा अग्रसर हो रहा है ! इसके कई कारण हो सकते हैं जरुरत से ज्यादा आजादी , माता-पिता द्वारा बच्चों की हर खवाहिश को बिना सोचे समझे पूरी करना , संस्कारों की कमी , नियंत्रण का अभाव , सही मार्ग-दर्शन का ना होना ! बहुत सी बातें हैं जो युवाओं के जोश का नकारात्मक पहलु हमारे सामने लाती हैं ! युवा इस देश का भविष्य हैं ! इस देश को जोशीले युवकों की आवश्यकता है , वो जोश जो देश की तस्वीर बदल दे , ना कि उनकी तस्वीर पर फूलों की माला !
युवाओं अभी भी समय है अपने जोश को सकारात्मक बनाओ ! परिवार की खुशियाँ मातम में ना बदलो !



धन्यवाद

Tuesday, December 6, 2011

प्रधान-मंत्री आज भी बड़ा भोला है ....>>> संजय कुमार

हजार उधेड़बुनों के बीच घिरी जिंदगी

जिंदगी नहीं , लगती एक झमेला है !

परियों और भूतों का लगता यहाँ मेला है !

आज सचिन फिर " महाशतक " के लिए खेला है !

लोकपाल पर " अन्ना " अब फिर से बोला है !

घोटालेबाजों ने अभी तक , ना अपना मुंह खोला है !

मंहगाई , भ्रष्टाचार का राक्षस

आज फिर मुंह उठाकर बोला है !

गरीब की जेब में बचा अब एक ना धेला ( रुपया ) है !

आज राजनीति का अखाडा, अब लगता बन गया तबेला है !

सच कहूँ तो " प्रधान-मंत्री " आज भी बड़ा भोला है !

हर जगह चमचों और चेलों का रेला है !

चेला बन गया गुरु , गुरु अब चेला है !

सास-बहु के झगडे में पड़ता बेटा हर बार अकेला है !

" जीवन की आपाधापी " में लगा इंसान

हजार खुशियाँ होते हुए भी , जीवनभर अकेला है !


धन्यवाद

Thursday, December 1, 2011

माँगना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है .....>>> संजय कुमार

माँगना भी कई तरह का होता है ! कोई सम्मान मांग रहा है तो कोई न्याय मांग रहा है ! कोई औलाद मांग रहा है तो कोई रोजगार मांग रहा है ! एक गरीब यदि मांगता है तो लगता है जैसे कोई भीख मांग रहा हो और यदि एक अमीर मांगे तो लगता है जैसे मदद मांग रहा हो ! देखा जाय तो एक हर एक इंसान अपने जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक सिर्फ मांगने का ही कार्य करता है ! जन्म के पहले माता-पिता भगवान से औलाद मांगते है, कोई बेटा मांगता है तो कोई बेटी मांगता है ! ( आज भी हमारे देश में अमीर हो या गरीब सबसे पहले बेटा ही मांगता है ) बच्चे का जन्म होने पर अस्पताल में नर्स मांगती है , घर आने पर हिजड़े मांगते हैं , दोस्त यार पार्टी मांगते हैं , भाई-बहन नेग मांगते हैं ! माता-पिता बच्चे के लिए अच्छी शिक्षा मांगते हैं , अच्छी नौकरी मांगते हैं , लड़की है तो अच्छा घर-वर मांगते हैं ! लड़का है तो दहेज़ मांगते हैं ! युवा भी अच्छा जीवनसाथी मांगते हैं अच्छी नौकरी मांगते हैं ! बुढ़ापे में माता-पिता अच्छी जिंदगी मांगते हैं ! वैसे देखा जाय तो ये मांगने का सिलसिला जीवन भर चलता रहता है ! देखा जाय तो ये प्रकृति का नियम ही है , आज जो हम मांग रहे हैं बही कल हमारे बच्चे मांगेंगे ! देश में सरकार समर्थन मांग रही है ! " अन्ना हजारे " लोकपाल बिल मांग रहे हैं ! कलमाड़ी - राजा रिहाई मांग रहे हैं ! चोर के पकडे जाने पर पुलिस मांगती है ! आम जनता " कसाब " की फांसी मांग रही है ! बेगुनाह इन्साफ मांग रहा है ! सचिन " महाशतक " मांग रहा है ! जनता सरकार से काले धन का हिसाब मांग रही है ! सबसे ज्यादा अगर कोई मांगता है तो वो है इस देश का नेता क्योंकि वो हार बात के लिए हाँथ फैलाता है और मांगने का धंधा करता है ! पहले टिकिट फिर वोट फिर चुनाव में जीत फ़िर कुर्सी उसके बाद राहत ने नाम पर मदद कभी " सूखा ग्रस्त " कभी " बाढ़ पीड़ित " के नाम पर सिर्फ अपनी झोलियाँ भरने का धंधा करता रहता है ! वहीँ दूसरी ओर पेट की भूख मिटाने के लिए कोई भीख मांग रहा है तो को तन बेच रहा है ! देश के धार्मिक महापुरुष साधू-संत अपनी तिजोरियां भरने के लिए आम जनता से चढ़ावा मांग रहे हैं , आम जनता भी अपनी सुख- शांति मांगने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई लुटा रही है ! मांगने के भी हज़ार तरीके होते हैं , एक तरीके से ना सही तो दुसरे तरीके से मांग ही लेते हैं ! मांगने पर आज तक कितने लोगों की मनोकामना पूर्ण हुई हैं ये तो बही बता सकता है जिसकी मनोकामना पूर्ण हुई हों या मांगने पर सब कुछ मिल गया हो !
सच कहा जाय तो मांगने पर कभी कुछ नहीं मिलता बल्कि हमें उसके लिए प्रयत्न करना पड़ता है ! वर्ना हम अंग्रेजों के गुलाम ना होते , अंग्रेजों ने मांगने पर हमें आज़ादी दे दी होती ! आज़ादी के लिए हमें लड़ना पड़ा , वीरों को कुर्बानियां देनी पड़ी तब जाकर हम आज़ाद हुए ! सचिन भी " महाशतक " के लिए पिछले २२ साल से खेल रहा है ! जीवन में अगर कुछ पाना है हांसिल करना है , सफलता के ऊंचे पायदान पर पहुंचना है तो मांगकर कुछ नहीं होगा इसके लिए हमें अपने जीवन में कुछ सिद्धांत बनाना होंगे , जीवन के लक्ष्यों को निर्धारित करना होगा , उनको पाने के लिए ईमानदार होना होगा , जी तोड़ मेहनत करनी होगी ! अपने अधिकार के लिए लड़ना होगा, कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का पालन करना होगा ! अब माँगना छोड़ दीजिये और लड़िये अपने हक की लड़ाई !

धन्यवाद

Friday, November 25, 2011

पराये भी यहाँ अपने से लगते हैं .....>>> संजय कुमार

अरे तू तो हिन्दू है , अरे तू तो मुसलमान है , अरे वो तो छोटी जात का है , अरे वो तो बड़े पैसे वाला है ! इस तरह के शब्द हम अपने जीवन में कई बार सुन चुके हैं और शायद आज भी प्रतिदिन सुनते हैं ! दिल को बड़ी तकलीफ सी होती है इस तरह के शब्द सुनकर कि, क्यों एक इंसान को हम इंसानों ने इतने नाम दे दिए हैं ! हमने इंसान को पता नहीं कितने भागों में बाँट दिया है ! इस बात को लेकर हम सब कभी ना कभी जरूर दुखी हुए हैं ! आखिर हम क्या कर सकते हैं ये सब तो हम लोगों का ही ईजाद किया हुआ है ! यह तो तब तक चलेगा जब तक इंसान इस श्रृष्टि पर है ! यह सब देखकर मेरे मन में बस इक ख्याल आता है कि, क्या इस दुनिया में ऐसी भी कहीं कोई जगह है ? जहाँ पर इस तरह का माहौल देखने को ना मिले ! भाई-भतीजावाद ना हो , धर्म के नाम पर झगडा ना हो ! अचानक मेरे जेहन में एक ऐसी जगह का ख्याल आया , जहाँ पर ना तो कोई ये पूंछता है कि तुम कौन हो ? हिन्दू हो या मुसलमान , अमीर हो या गरीब , छोटा या बड़ा , इस जगह इन बातों का कोई महत्त्व नहीं है यहं सब एक ही भाषा बोलते हैं ! इस जगह आने वाले सभी लोगों के बीच का भाईचारा देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है ! यहाँ सब एक दुसरे के भाई हैं कोई पराये नहीं ! ये जगह कोई और नहीं है " मधुशाला " मयखाना " BAR " है ! वैसे ये जगह मेरे ऑफिस के ठीक सामने है ! ( कभी कभी मैं भी वहां का माहौल देखने के लिए चला जाता हूँ ) हर शाम यहाँ बहुत बड़ा मेला सा लगता है ! यहाँ आने वाले कई लोग अपनी परेशानियों से बचने के लिए या अपने दुःख दर्द दूर करने के लिए या फिर क्षण भर की ख़ुशी पाने के लिए ! ( हर पीने वाले को यही लगता है ) सभी का मकसद एक सभी की मंजिल एक ( एक बोतल और चार यार ) कहते हैं कि इन्सान अगर एक बार इस जगह पहुँच जाये तो फिर वो यहाँ बार बार आना चाहता है ! कुछ लोग तो यहाँ आकर यहीं के होकर रह जाते हैं ! ( क्योंकि ये लत या तो जान लेती है या फिर हँसता - खेलता घर -परिवार तबाह और बर्बाद कर देती है ) यहाँ आने वाले लोग भले ही साल में एक बार भी मंदिर की दहलीज पर ना जाएँ किन्तु इस जगह तो वह नियमित, साप्ताहिक या मासिक अवश्य आएगा ही ! उसके पास यहाँ आने के कई बहाने भी होते हैं कोई घर में नया मेहमान आया हो ( बच्चे का जन्म हुआ हो ) या जन्मदिन हो ( आज का हर युवा अपने जन्मदिन पर यहाँ के दर्शन जरूर करता है जो नहीं जाते उनको मेरी शुभकामनाएं यहाँ कभी ना जाएँ ) , शादी की पार्टी हो या उसकी बर्बादी का मातम हो एक बार अवश्य आएगा ! यहाँ पर आने वाला हर व्यक्ति किसी ना किसी समस्या पर आपस में बात करते हुए जरूर मिल जायेगा ! यहाँ पर जो भाईचारा देखने को मिलता है उस भाईचारे का क्या कहना ! क्या छोटा क्या बड़ा सब एक साथ बैठकर पीते हैं मतलब जीते हैं ( हर पीने वाला यही सोचता है ) और भूल जाते हैं सब कुछ ! हिन्दुस्तान सहित पूरे विश्व में यही तो एक जगह है जहाँ हर दिन एक जैसे लोगों का मेला लगता है या यूँ कह सकते हैं सर्व धर्म , सम भाव , सर्व जातीय , एक अनूठा , इंसानों का मेला .................. मयखाना भी यहाँ आने वाले लोगों से कहता है कि , सारी दुनिया भर में पीकर बहको , पर यहाँ जरा संभलकर आना !

निवेदन ------- प्रिये साथियों ये तो मैंने बस यूँ ही लिख दिया ! किन्तु सच तो ये है की हमें इस जगह कभी भी नहीं जाना चाहिए , क्षण भर की मानसिक ख़ुशी के लिए अपने जीवन भर की खुशियाँ दांव पर लग जाती हैं ! ( मदिरापान स्वस्थ्य के लिए हमारे परिवार की खुशियों के लिए हानिकारक है )

धन्यवाद


Sunday, November 20, 2011

किस्मत का तो यही फ़साना है .....>>> संजय कुमार

हँसना है कभी रोना है
खोना है कभी पाना है
किस्मत का तो यही फ़साना है !
समझा है यही जाना है
हर लम्हा टल जाना है
किस्मत का तो यही फ़साना है !
कोई कहे चाँदी कोई कहे सोना
इन्सां है मिटटी का खिलौना
जीवन तो है इक सफ़र
कब खत्म हो क्या खबर
इक पल में यहाँ जीना है
दूजे पल मर जाना है
किस्मत का तो यही फ़साना है !
कभी है संवरना कभी है बिखरना
कभी तो है मिलना कभी है बिछड़ना
रिश्ते है क्यों अजनबी
दुस्वार है जिंदगी
उलझन के धागों को
जीवन भर सुलझाना है
किस्मत का तो यही फ़साना है !
आते हैं उजाले जाते हैं अँधेरे
आती हैं फिजायें जातीं हैं बहारें
किस्मत यही सब करेगी
होनी तो होके रहेगी
लिखा है जो होना है
बाकी तो सब बहाना है
किस्मत का तो यही फ़साना है !
देखो ना ये किस्मत की मजबूरी
दिल नहीं चाहे कहना जरूरी
कैसे कहें क्या हुआ
कहना भी है इक सजा
अश्कों के इन समंदर पे
लब्जों को डूब जाना है
किस्मत का तो यही फ़साना है ! किस्मत का तो यही फ़साना है !

(यह सभी पंक्तियाँ एक फिल्म के गीत से ली गयीं हैं )

धन्यवाद

Monday, November 14, 2011

" बाल दिवस " मनाकर कुछ नहीं होगा ! ....>>> संजय कुमार

हमारे देश में एक बर्ष में ना जाने कितने तरह के दिवस मनाये जाते हैं ! " Rose Day " Mother's Day " Father'Day " Birth-Day " Black-Day " Women's Day " Lover's Day " इत्यादि ! इन सभी महान दिवस के बीच में एक दिवस और आता है ! " Childern's Day " भारत के प्रथम प्रधानमंत्री " श्री जवाहरलाल नेहरुजी " के जन्मदिवस को हमारा देश " बाल दिवस " के रूप में मनाता है ! नेहरूजी (चाचाजी) को बच्चों से खासा लगाव था इसलिए उन्होंने अपने जन्मदिन को बच्चों के नाम कर दिया और तब से लेकर आज तक पूरा देश १४ नबंवर को नेहरूजी के साथ -साथ इस देश के भविष्य , देश के नौनिहाल बच्चों को " बाल दिवस " के रूप में याद कर लेता हैं ! पूरे एक साल में शायद यही एक दिन होता है जब हम बच्चों के बारे में सोचते हैं या उनसे सम्बंधित कोई दिवस मनाते हैं ! इस दिन हम सभी बच्चों के वर्तमान और भविष्य की अच्छी कल्पना करते हैं उनके बारे में अच्छा सोचते हैं ! आज इस देश में " बाल दिवस " का महत्त्व कितने लोग जानते हैं ! क्या स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ? क्या शिक्षा देने वाले अध्यापक ? क्या देश का पढ़ा-लिखा युवा वर्ग या फिर मंत्री-संत्री , आला-अधिकारी ! सूची बहुत लम्बी है जो शायद जानते हों " बाल दिवस " का मतलब या फिर इनमें से भी ऐसे कई हैं जिन्हें आज के दिन की जानकारी ही नहीं है ! शायद ये बात सच हो सकती है ! हम बच्चों के बारे में कितना सोचते हैं ? उनका भविष्य क्या है ? हम कितना उनके लिए करते हैं , यह हमारे सामने है ! क्योंकि आज देश में बच्चों की हालत बहुत वद्तर है ! ये वो मासूम बच्चे हैं जो इस देश का भविष्य हैं ! आज उन्हें अपना वर्तमान तक नहीं मालूम कि , हम क्या हैं ? और आगे क्या होंगे ? आज कोई भी इन बच्चों के बारे में नहीं सोचता ! इसका बड़ा कारण ये भी है कि , बच्चों से देश के नेताओं का वोट बैंक नहीं बनता इसलिए नेताओं को बच्चों से कोई खास मतलब नहीं होता है ! ( मताधिकार १८ बर्ष की उम्र से ) आज दिन-प्रतिदिन बच्चों के साथ होती घटनाएं बच्चों के भविष्य को सिर्फ अन्धकार में ढ़केल रही है ! गरीब और बेसहारा बच्चे ही नहीं बल्कि सभ्य समाज में रहने वाले बच्चे भी अब इनसे अछूते नहीं हैं ! आज कौन है बच्चों की इस दयनीय हालत का जिम्मेदार ! क्या देश की सरकार जिम्मेदार हैं ? वह अधिकारी जो अपने फर्ज को ईमानदारी से नहीं निभाते , बच्चों के लिए बनाये गए कानून का सही पालन नहीं करते बल्कि छोड़ देते हैं बच्चों को उन्ही के हाल पर सिर्फ मरने के लिए ! या फिर जिम्मेदार हैं स्वयंसेवी संस्थाएं ! आज देश में बच्चों की स्थिती क्या है ? यह बात किसी से छुपी नहीं है ! बच्चे किसी भी परिवार, समाज एवं किसी भी देश की एक अहम् कड़ी होते हैं ! एक धरोहर जो राष्ट्रनिर्माण के सबसे बड़े आधार स्तम्भ कहलाते हैं ! किन्तु ये सब किताबी भाषाएँ हैं जिन्हें सिर्फ किताबों में ही पढ़ना अच्छा लगता है ! क्योंकि सच इतना कडवा है जितना की जहर भी नहीं है ! इस देश की विडम्बना कहें या दुर्भाग्य आज बहुत से अजन्मे मासूम तो माँ के गर्भ में आते ही जीवन-मृत्यु से लड़ते हैं ! और जन्म लेने के बाद इस देश का एक बहुत बड़ा वर्ग बच्चों का चौराहों , रेलबे -स्टेशन , गली -मोहल्ले भीख मांगता मिल जाएगा ! कुछ बच्चों का बचपन होटलों पर काम करते हुए , झूंठे बर्तन धोते हुए , काल कोठरियों में जीवन बिताते हुए कट जाता है , यूँ भी कह सकते हैं जीवन आज अँधेरे में कट रहा है ! बाल मजदूरी तो इस देश के हर कौने में होती है ! इस देश में बच्चों के साथ जो हो रहा है उसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी , उनको खरीदने-बेचने का धंधा , उनसे भीख मंगवाने का धंधा , उनके शरीर को अपंग बनाने का काम , खतरनाक आतिशबाजी निर्माण में बच्चों का उपयोग , दिन -प्रतिदिन उनके साथ होता अमानवीय व्यवहार , तंत्र -मंत्र के चक्कर में बलि चढ़ते मासूम बच्चे , दिन-प्रतिदिन होता उनका यौन शोषण ( निठारी काण्ड ) अब तो हर छोटे बड़े शहर में निठारी काण्ड जैसी घटनाएँ हो रही है ! यह सब कुछ देश के भविष्य के साथ हो रहा है ! " बाल दिवस " पर भी होगा वो भी सरकार की नाक के नीचे और सरकार हमेशा की तरह अंधे बहरों की तरह कुछ नहीं कर पायेगी ! क्योंकि जब सरकार को ही किसी वर्ग की फ़िक्र नहीं तो इन मासूमों की पीड़ा को कौन सुनेगा ? दयनीय बच्चों की संख्या इस देश में लाखों -करोड़ों में है ! इस देश में आपको लाखों बच्चे कुपोषण का शिकार मिलेंगे , लाखों बेघर , दर-दर की ठोकर खाते हुए , आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर , निरक्षर और शोषित ,जिन्हें तो यह भी नहीं मालूम की बचपन होता क्या है ? बचपन किसे कहते हैं ? " बाल दिवस " का क्या मतलब है ? इस देश में " बाल दिवस " सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि पूरे वर्ष मनाना चाहिए ! अगर हम इसमें सफल हुए तो यकीन कीजिये इस देश का भाग्य और भविष्य दोनों बहुत ही उज्जवल और सुनहरा होगा ! बच्चों को सिर्फ याद कर या नए नए कानून बनाकर "बाल दिवस " मनाकर कुछ नहीं होगा ! हम सबको मिलकर बच्चों पर होने बाले अत्याचार का पुरजोर विरोध करना होगा ! तब जाकर हम एक सभ्य समाज का निर्माण कर पायेंगे ............

धन्यवाद

Thursday, November 10, 2011

पुरुष हूँ , ना समझो पत्थर ! हम भी दिल रखते हैं ......>>> संजय कुमार

आप सभी साथियों को " गुरु नानक जयंती " की लख लख बधाईयां
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अरे तुम तो बड़े ही पत्थर दिल हो , लगता है तुम्हारे अन्दर तो संवेदना या दिल नाम की चीज बिलकुल भी नहीं है लगता है तुम्हें मुझसे या बच्चों से जरा भी प्रेम नहीं है ! मैंने तो आज तक कभी तुम्हारी आँख में एक आंसू तक नहीं देखा , इससे पता चलता है कि , तुम सारे मर्द एक जैसे होते हो सिर्फ पत्थर दिल तुम्हारी आँखों में तो प्यार मुझे कभी दिखता ही नहीं ! " पत्थर दिल कहीं के " ! इस तरह की बातें जब एक पुरुष को बार-बार बोलीं जाती हैं , तो सोचिये क्या गुजरती है उसके दिल पर ? कितने आंसू वह मन ही मन रोता है ! शायद ये बात कोई नहीं जानता, सिवाय उस पुरुष के जो कभी अपने पुरुष होने का मातम मनाता है या अपने पुरुष होने पर दुखी होता है ( एक पुरुष ही पुरुष के दर्द को समझ सकता है ) क्या सिर्फ कह देने भर से पुरुष को पत्थर दिल समझ लेना चाहिए ? देखा जाय तो इंसान भावनाओं का हाड-मांस का बना एक पुतला होता है वो चाहे नर हो या नारी ! बहुत सी बातें , बहुत सी अभिव्यक्तियाँ इंसान अपनी भावनाओं के द्वारा ही हमें बताता है ! आज हम यहाँ सिर्फ पुरुष भावनाओं की बात कर रहे हैं ! हमने अपने समाज में अक्सर देखा है कि , जिस तरह लड़कियों का ठहाका लगाकर हँसना आज भी हर जगह पसंद नहीं किया जाता ! शायद ये बात हमारे संस्कारों के खिलाफ है इसलिए ऐसा समझा जाता हो , किन्तु अब ज़माना बदल गया है ! क्योंकि आज की नारी अब वो नारी नहीं रही जो परदों की चारदीवारी में कैद हो , जिसके किसी भी कार्य पर अंकुश लगाया जा सके ! ठीक उसी प्रकार किसी भी पुरुष का रोना आज हमारे समाज में, हमारे बीच में कमजोरी की निशानी माना जाता है ! क्योंकि आंसू बहाना पुरुषों का काम नहीं है ! ( मर्द होकर रोते हो ) क्योंकि हमारा देश पुरुष प्रधान देश है , यहाँ पुरुष ही सर्वस्व है , क्योंकि वो हर जिम्मेदारी को आगे बढ़कर अपने ऊपर लेता है , चाहे वो घर हो या उसका कर्म क्षेत्र हो ! एक पुरुष जिम्मेदारियों का वहन करते - करते तन और मन से मजबूत हो जाता है , इसलिए पुरुषों का रोना उनकी कमजोरी को दर्शाता है ! क्या ये सही है ? क्या पुरुषों का रोना सिर्फ कमजोरी की निशानी है ? जी नहीं पुरुष कमजोर नहीं होता ! पुरुष एक हाड -मांस का बना इंसान है और उसके अन्दर भी वही संवेदनाएं होती हैं जो एक नारी के अन्दर होती हैं ! एक पुरुष अपने जीवन में कितनी चीजों से लड़ता है इस बात को हम सब लोग बहुत अच्छे से जानते हैं ! किन्तु पुरुष हर बात पर नहीं रोता , उसके अंदर सब्र का पैमाना बहुत बड़ा होता है , वो महिलाओं की तरह व्यवहार नहीं करता ! हमारे देश में अधिकांश महिलाओं का समय सिर्फ घर की चार दिवारी में चौका बर्तन और बच्चों के पालन-पोषण में ही व्यतीत होता हैं , शायद इसलिए उन्हें इस बात का अहसास नहीं होता कि, बाहर काम करने वाले पुरुष किन - किन समस्यायों का सामना करते हैं ! पुरुष हमेशा दो पाटों के बीच में पिसता रहता है ! आज हमारे बीच का वातावरण इतना अशुद्ध हो गया है जिसमे सिर्फ परेशानिया , तनाव , काम का प्रेशर बहुत बड़ गया है ! आज पुरुष के पास कितनी समस्याएँ है यह भी हमें जानना होगा ! एक परिवार में एक शादीशुदा पुरुष की क्या स्थिती हो सकती है ? ध्यान में रखकर अंदाजा लगायी जा सकती है ! माता -पिता को लगता है कि, शादी के बाद उनका बेटा उनसे दूर हो गया है , बहन को लगता है कि , शायद अब हमे भाई का प्यार नहीं मिलेगा ! वहीँ पत्नी चाहती है कि, उसका पति सिर्फ उसका होकर रहे ! ( आजकल का माहौल लगभग ९०% घरों में है , एकल परिवार प्रणाली ) इस तरह का माहौल हमने अपने आस पास जरूर देखा होगा ! इस स्थिति में किसी भी पुरुष की क्या दशा होती होगी इसका अंदाजा सिर्फ एक पुरुष ही लगा सकता है ! मैं यहाँ सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि , अगर ऐसी स्थिती में पुरुष नहीं रोता या उसकी आँख में आंसू नहीं आते तो इसका यह अंदाजा बिलकुल भी नहीं लगाना चाहिए कि वो इन्सान नहीं पत्थर है ! वह भी महिलाओं की तरह ही एक इंसान है ! अगर इंसान नहीं होता तो क्या एक पिता का अपनी बेटी की विदाई पर रोना उसकी कमजोरी की निशानी माना जायेगा ! नहीं यह वो अभिव्यक्तियाँ हैं जो कभी भी और किसी भी तरह एक पुरुष अपने जीवन में व्यक्त करता है ! अगर पुरुष ऐसा नहीं करेगा तो उसकी सभी संवेदनाएं एक दिन धीरे-धीरे समाप्त हो जाएँगी ! अपने बुरे हालातों से लड़ते-लड़ते इंसान एक दिन टूटकर बिखर जाता है और उसकी आँखों में होते हैं सिर्फ आंसू !

इसलिए मैं कहता हूँ कि , " मैं भी एक इन्सान हूँ " एक पुरुष हूँ कोई पत्थर नहीं "

धन्यवाद

Saturday, November 5, 2011

जी हाँ ... मैं जिन्दा हूँ ...... >>> संजय कुमार

जी हाँ मैं सच कह रहा हूँ ! मैं जिन्दा हूँ और इसका प्रमाण ये है कि मैं आप लोगों के लिए ये ब्लॉग लिख रहा हूँ और जब तक साँस चलेगी पूरी कोशिश करूंगा की मैं कुछ अच्छा लिखता रहूँ ! मेरे जिन्दा होने के और भी कई प्रमाण हैं जो ये साबित करेंगे कि " मैं जिन्दा हूँ " क्योंकि इन्ही से ये प्रमाणित होगा ! जैसे मेरे पास राशन कार्ड है , पासपोर्ट है , ड्रायविंग लायसेंस है , वोटर कार्ड है , पेन कार्ड है , मेरे पास " आधार " है ( आम आदमी का अधिकार ) ये सभी पहचान पत्र सबूत हैं , जो मेरे जिन्दा होने का प्रमाण देते हैं ! यही सबूत मुझे इंसानों की श्रेणी में भी लाते हैं ! ये सभी मेरे भारतीय होने का भी प्रमाण है ! जिस किसी के पास पहचान पत्र नहीं है तो उसे हम भारतीय कैसे मानें ! क्योंकि आज पहचान सिद्ध होने पर ही हमें भारतीय समझा जायेगा ! यदि इस प्रकार का एक भी पहचान पत्र, या अपने होने का एक भी प्रमाण पत्र अगर किसी के पास ना हो तो क्या हम उस नागरिक को मृत समझेंगे या फिर जिन्दा ? ये बात भले ही लिखने और पढ़ने में अजीब लग रही हो किन्तु ये सत्य है ! आज हमारे देश में जिस किसी के पास एक भी प्रकार का कोई पहचान पत्र नहीं है तो उस इंसान को लगभग मृत माना जाता है या मृत मान लेना चाहिए ! बैंक में खाता खोलना हो तो पहचान चाहिए , राशन कार्ड बनवाना हो तो पहचान चाहिए , किसी भी तरह का पहचान पत्र बनवाना हो तो हमें अपने होने का प्रमाण देना अनिवार्य होता है ! यदि आपके पास कोई पहचान पत्र है तो ठीक , वर्ना आप अपने जिन्दा होने के प्रमाण ढूँढ़ते रहिये ! यदि कोई अधिकारी आपके जिन्दा होने का सबूत देता है तो आप अपने आप को जिन्दा मान सकते हैं ! इस देश में ऐसे लाखों लोग हैं जिनका कहीं भी कोई जिक्र नहीं है ! ना तो ये लोग वोटर लिस्ट में हैं, ना ही राशन कार्ड है , और ना ही इनका किसी भी प्रकार का कोई पहचान पत्र है ! देश में ऐसे लाखों मजदूर हैं , लाखों भिखारी हैं , बंधुआ मजदूर हैं जिनके पास ना तो सिर पर छत है और ना ही तन पर कपड़ा, फिर इनकी पहचान कौन देगा ? क्या पहचान है ऐसे लोगों की ? या सिर्फ जनसँख्या की गिनती हैं ! हमारे यहाँ जब एक आम आदमी को अपनी पहचान देने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है तो फिर आप सोच सकते हैं उस व्यक्ति को कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता होगा , अपने जिन्दा होने का प्रमाण देने में जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है ! ये हमारे देश का दुर्भाग्य ही है जहाँ गरीबों को मिलने वाली आर्थिक योजनाओं का लाभ देश के ऊंचे पदों पर बैठे पदाधिकारी उठा रहे हैं ! और बेचारा गरीब तो बस मरने के लिए पैदा हुआ है ! कई बार तो ये भी देखा और सुना गया है कि एक मृत आदमी को कागजों और फाइलों में जिन्दा कर उसका लाभ उसे मिलने वाली राशी और राशन का फायदा कई लोग वर्षों तक उठाते हैं ! यहाँ तक तो ठीक है , यह भी देखा गया है कि एक जिन्दा आदमी को फाइलों में मृत बताकर योजनाओं का लाभ कोई और बर्षों तक उठाता रहता है ! और बेचारा जिन्दा आदमी चिल्लाते-चिल्लाते एक दिन मर जाता है कि " मैं जिन्दा हूँ "
अक्सर हमें भी कई बार अपने जिन्दा होने के सबूत देने पड़ते हैं ! हम जीते-जागते इंसान , सांस लेते इंसान , रगों में दौड़ता हुआ खून इस बात की गवाही देता है कि , हम जिन्दा हैं ........... क्या वाकई में हम जिन्दा है ? या प्रमाण देने पर ही हमें जिन्दा समझा जायेगा ! ( सोच कर अवश्य बताएं )


धन्यवाद

Tuesday, November 1, 2011

छोटी सी उम्र पर है , जिम्मेदारी भारी .......>>> संजय कुमार

कहा जाता है कि , एक जिम्मेदार इंसान अपने घर-परिवार की देखभाल , भरण-पोषण की जिम्मेदारी , अपना उत्तरदायित्व बहुत अच्छे से निभाता है ! किसी भी इंसान के ऊपर जिम्मेदारी का भार एक निश्चित उम्र के बाद ही आता है या फिर एक उम्र होती है जिसमे इंसान को हम जिम्मेदार कह सकते हैं ! ( फिर भले ही कुछ लोग शायद उम्र भर जिम्मेदार नहीं बन पाते ) मैं बात कर रहा हूँ उन छोटे छोटे बच्चों की जो खेलने कून्दने और पढ़ने-लिखने की उम्र में अपने परिवार की रोजी-रोटी की जिम्मेदारी का भार आज बड़ी ही कुशलता के साथ उठा रहे हैं ! छोटे-बड़े होटलों , ढावों, भोजनालयों पर काम करने वाले बच्चे , बंधुआ मजदूर की तरह घरों में नौकरी करने वाले बच्चे , किराना -परचून की दुकान पर काम करने वाले बच्चे , भगवान् के नाम पर किसी निश्चित दिन ( मंगलवार -शनिवार ) भिक्षा मागने वाले बच्चे , बस , ट्रेन और फुटपाथ पर भीख मांगने वाले ये बच्चे , सब कुछ अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए छोटी सी उम्र में कठिन परिश्रम करते हैं ! इन बच्चों के सिर पर भी कहीं ना कहीं एक जिम्मेदारी होती है जिसे निभाने के लिए वो कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहते हैं ! यहाँ पर हम यदि जिम्मेदारी को मजबूरी या मजबूरी को जिम्मेदारी कहें तो गलत नहीं होगा ( ऐसा नजरिया कुछ लोगों का हो सकता है ) ऐसे बच्चों का जीवन बड़ा ही कष्टमय होता है ! ऐसे बच्चों से खुशियाँ हमेशा हजारों कोस दूर होती हैं ! जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर इनका बचपन कब निकल जाता है और ये कब बड़े हो जाते हैं इस बात का अहसास शायद ही इन बच्चों को कभी हो पाता हो क्योंकि ऐसे बच्चों का बचपन जब कष्ट में गुजरा हुआ होता है तो ये उसे याद करना भी नहीं चाहते ! जिम्मेदारियों के बोझ तले कुछ बच्चे शिक्षा से भी महरूम रह जाते हैं ! कुछ पढ़ना - लिखना चाहते भी हैं तो उनकी मजबूरियां उन्हें पीछे धकेल देती हैं ! कुछ बच्चों पर माँ-बाप की जिम्मेदारी होती है तो कुछ भाई-बहनों की जिम्मेदारी को अपने कन्धों पर लेते हैं ! और इस तरह के बच्चे बड़ी खूबी के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भी करते हैं ! और जीवन पर्यंत तक इन जिम्मेदारियों से ना कभी भागते हैं और ना ही पीछे हटते हैं ! जब ये बच्चे अपने परिवार के बारे में सोचते हैं और उनकी खुशियों के लिए दिन रात मेहनत करते हैं , तो इन्हें अपने बारे में सोचने का कभी समय ही नहीं मिलता ! ऐसे बच्चों की संख्या आज देश में बहुत है ! आज जिस दौर में हम लोग अपना जीवनयापन कर रहे हैं उस दौर में इंसान की आवश्यकताएं जरूरत से ज्यादा और और उन्हें पूरा करने के साधन बहुत कम ! कुछ आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है तो कुछ जरूरत से ज्यादा ! आज देखा गया है कि , ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले परिवार अपने बच्चों को शहरी वातावरण में भेज देते हैं कि कहीं कुछ सीख ले जो उसे उसके भविष्य में काम आये ! ऐसी स्थति में देखा गया है बच्चे किसी शराबखाने में काम करते मिल जायेंगे या किसी मंत्री या व्यवसायी की कोठियों पर झाड़ू-पौंछे का काम करते मिल जायेंगे ! सही दिशा और मार्ग-दर्शन यदि मिल गया तो ठीक वर्ना जीवन किस ओर जायेगा नहीं मालूम ! आज छोटी सी उम्र पर जिम्मेदारी बड़ी भारी है ! आज जिम्मेदारियों का बोझ हमारे देश के नौनिहाल उठा रहे हैं ! आज जिम्मेदारियों के बोझ तले बच्चों का वर्तमान निकल रहा है ! क्या भविष्य है ऐसे बच्चों का ?

धन्यवाद

Tuesday, October 25, 2011

दीपावली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं ....... >>> संजय कुमार










आप सभी ब्लौगर साथियों एवं परिवार के समस्त सदस्यों को पावन पर्व दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभ-कामनाएं , यह पर्व आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लाये , आप सभी परिवार सहित हर्ष-उल्लास के साथ यह पर्व मनाएं , यह पर्व आपके अंधकारमय जीवन में प्रकाश लाये , आप स्वस्थ्य रहें , मस्त रहें , धन की देवी " माँ लक्ष्मी " आप पर सदा महरबान रहें ! देवी " माँ सरस्वती " की असीम कृपा आप पर बनी रहे ! " श्री गजानन " आपको बल बुद्धि प्रदान करें ! आपका अपने परिवार के साथ असीम प्रेम और स्नेह का भाव जीवन भर बना रहे !


दीपावली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं ............दीपावली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं


शुभ-कामनाओं सहित
संजय कुमार चौरसिया


शिवपुरी ( मध्य-प्रदेश ) 09993228299


धन्यवाद

Saturday, October 22, 2011

आज मेरे सीने में दर्द है ! क्या आपके भी ? .....>>> संजय कुमार

अरे नहीं...... नहीं...... नहीं ..... भई , मुझे ना तो हार्ट अटैक आया है और ना ही मैं कोई ब्लड प्रेसर का मरीज हूँ और ना ही मैं बीमार हूँ ! दर्द मेरे सीने में नहीं है, ये तो मैं आजकल हमारे देश के नेताओं की हालत को देखते हुए लिख रहा हूँ ! हाँ भई आजकल हमारे देश के सभी छोटे - बड़े राजनेताओं को सीने में दर्द की शिकायत है ! ( सीने में दर्द की शिकायत है , या फिर जेल में ना रहने की शिकायत है ) " २ जी " घोटालेबाज , राष्ट्रमंडल खेल आयोजन कर्ता घोटालेबाज , जमीन घोटालेबाज , संसद में वोट के बदले नोट , में शामिल घोटालेबाज , कर्णाटक में जमीन और खदान में शामिल घोटालेबाज , सोने की कुर्सियों पर बैठने वाले बंधू , सत्यम कंप्यूटर का घोटालेबाज , ऐसे हजारों घोटालेबाज हैं ! अब मैं थक गया हूँ और घोटालेबाजों का नाम लिखते लिखते , अगर मैं सभी का नाम लिखने बैठूंगा तो शायद २-३ दिन और लग जाए और लिखते - लिखते कहीं मेरे सीने में ही दर्द ना होने लगे ! क्योंकि अब तो हर दिन एक नया घोटाला हमारे सामने उजागर हो रहा है ! हाँ मैं बात कर रहा था सीने में दर्द की शिकायत का , ये देश के सभी नेताओं में पाया जाता है ! आज तक जो भी बड़ी हस्ती जेल गयी है उसे जेल जाते वक़्त या फिर जेल में पहुँचने के साथ ही ये शिकायत १०० % हुई है ! पिछले ५-१० सालों का रिकार्ड उठाकर देख लीजिये हर बड़ा राजनेता , आला अधिकारी , या फिर इस देश का सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी जो भी हो , जब पहली बार जेल गया तो उसे सीने में दर्द अवश्य हुआ है ! देश के छोटे-मोटे गुनाहगार ( विचाराधीन कैदी ) जो जेल में बर्षों से सड़ रहे हैं , शायद ही उन्हें कोई शिकायत हुई हो या उनके सीने में भी कभी दर्द हुआ हो , किन्तु हमारे देश के भ्रष्टाचारी अरबों - खरबों का घोटाला करने वाले , गुनाह करने वाले , गुनाह करने के बाद यदि एक बार पकडे जाते हैं और उन्हें जेल जाना पड़ता है तो कुछ को तो जेल ले जाते वक़्त ही और ही और कुछ को जेल पहुंचकर , उनके सीने में दर्द होना शुरू हो ही जाता है ! जेल से बचने का ये राम बाण देश के हर बड़े नेता को मालूम है ! इसके विपरीत अगर दर्द की परिभाषा पर थोडा सा गौर कीजिए ! आज दर्द तो देश की आम जनता की सीने में है जो देश के भ्रष्टाचारियों से पीड़ित है ! आज दर्द तो गरीब जनता के सीने में है जिनका हक जिनके लिए चलाई जाने वाली सेंकडों योजनाओं का फायदा देश के छोटे - बड़े नेता और आला-अधिकारी उठा रहे हैं ! गरीबों को मिलने वाला अनाज आज देश के साहूकारों के गोदामों में भरा पड़ा है ! आज लाखों टन अनाज बिना बात के सड़ रहा है और दूसरी ओर देश में कुपोषण के शिकार मासूम दिन -प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं ! दर्द तो देश की रक्षा में शहीद जवानों की बिधवाओं के सीने में है , जो हमारे देश के नेताओं द्वारा ही दिया गया है ! ( आदर्श सोसायटी ) फिर भी एक आस लगाये बैठीं हैं ! दर्द तो देश के युवाओं के सीने में है जो गन्दी राजनीति का शिकार होकर अपने लक्ष्य से भटक कर गलत राह पर चल पड़े हैं ! दर्द तो उन ठुकराए हुए माँ-बाप के सीने में है जिन्होंने हर दुःख उठा कर अपने बच्चों का भविष्य बनाया और उन्ही बच्चों के कारण आज दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं ! इंसानी दर्द के किस्से अनेक हैं जो सच्चे हैं ! इस दर्द की दवा शायद किसी के पास नहीं है ! इस भ्रष्ट मायानगरी में , भ्रष्ट राजनीति में अभी अनेकों दर्द के किस्से सुनने को मिलेंगे ! और हम सब उस दर्द की सच्चाई से भलीभांति परिचित हैं !


आज मेरे सीने में दर्द है ! क्या आपके भी ?


धन्यवाद

Sunday, October 16, 2011

क्या आप दबंग हैं ? क्या आप दबंग बनना चाहते हैं ? ....>>> संजय कुमार

जब हम दबंग नाम सुनते हैं तो हमारे दिमाग में किसी हट्टे-कट्टे , चौड़ी छाती वाले रौबदार इन्सान का चेहरा याद आता है ! दबंग नाम सुनते ही हमें किसी रसूखदार या किसी उच्च जाति या किसी गुंडे - मवाली , तेज- तर्रार व्यक्ति का ध्यान आता है ! क्योंकि आज तक हमने ऐसे ही दबंगों के बारे में सुना है , जो किसी निम्न जाति को अपना रुतबा दिखाते हैं या किसी अबला को सरे राह बेइज्जत करते हैं ! किसी कमजोर पर अपनी ताक़त आजमाते हैं ! क्योंकि कई बार मैंने इसी तरह की दबंगियाई अखबारों में पढ़ी है ! क्या ऐसे लोगों को दबंग कहेंगे ! देखा जाय तो ये सब तो नाम के दबंग हैं ! दबंगियाई, किसी निर्धन की निर्धनता का मजाक उड़ाना नहीं होता और ना ही किसी निम्न जाति के इन्सान पर अपना बिना बात का रौब झाड़ना ! बिना बात किसी को परेशान करना भी दबंगता की निशानी नहीं है ! असली दबंग तो वो होता है जो अपना और अपने घर-परिवार , समाज और देश का नाम रौशन करता हैं ! आज मैं जिन दबंगों की बात कर रहा हूँ , ये वो दबंग हैं जिनकी दबंगियाई का लोहा आज पूरे देश ने माना है ! देश के ऐसे दबंग जिन्होंने देश का नाम विश्व स्तर पर ऊंचा किया हैं ! राष्ट्रमंडल खेलों में हुए अरबों रूपए के भ्रष्टाचार के बावजूद देश के सभी खिलाडियों ने अपनी असली दबंगता पूरे विश्व को अपने खेलों में दिखाई , उन्होंने यह साबित कर दिया की हम अगर अपनी पर आ जाएँ तो हम से बड़ा कोई दबंग नहीं है ! २०११ विश्व कप क्रिकेट में भारतीय खिलाडियों ने अपनी दबंगता का लोहा मनवा लिया भारतीय क्रिकेट खिलाडियों की दबंगता आज पूरे विश्व ने देख ली है ! जिस ऑस्ट्रेलिया को अपने आप पर इतना गुरुर था उस गुरुर को हमारे खिलाडियों ने अपनी दबंगता से चकनाचूर कर दिया ! आज इनकी दबंगता ने देश का नाम रौशन किया है ! ऐसे दबंगों को देश का सलाम ................... ऐसा नहीं है कि सिर्फ खेल में ही हमारे देश ने, और देश के खिलाडियों ने अपना परचम लहराया है ! बल्कि और भी लम्बी सूची है , उन लोगों की जो आज देश में असली दबंग होने का माद्दा रखते हैं ! समस्त जवान जो देश की सुरक्षा में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हैं ! समस्त ईमानदार पुलिस अधिकारी जो आज समाज को असामाजिक तत्वों और बुरी ताक़तों से हमें बचाते हमारी रक्षा करते हैं और अपनी जान की परवाह नहीं करते ! देश के समस्त डॉक्टर , जो नयी नयी तकनीक का ईजाद कर आम इन्सान की जान बचाते हैं फिर चाहे वह अपना पडौसी मुल्क पाकिस्तान हो या किसी अन्य देश का ! समस्त इंजिनियर जो देश का नाम रौशन कर रहे हैं और जो देश की जनता को सेंकडों आधुनिक साधन उपलब्ध करवा रहे हैं ! " अन्ना हजारे " जी को हम सबसे बड़ा दबंग कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है , भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई ने ये साबित कर दिया है ! अमिताभ बच्चन , लता मंगेशकर , रतन टाटा , अजीम प्रेमजी , अब्दुल कलाम आजाद , ये सभी लोग अपने आप में असली दबंग हैं , जो इस उम्र में भी , जब इन्सान आराम करना चाहता हैं , ये लोग आज भी अपने अपने क्षेत्रों में सक्रीय है , और देश का नाम कहीं ना कहीं रौशन कर रहे हैं ! जिनका लोहा आज पूरा देश मानता है ! दबंगता का असली अर्थ दूसरों की मदद करना ! बेसहारा को सहारा देना ! राष्ट्रहित की बात करना , कर्म के प्रति ईमानदार होना ! अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ना की अन्याय करना ! अपने आपको श्रेष्ठ नागरिक बनाना भी दबंगता की सच्ची निशानी है !
क्या आप असली दबंग हैं ? क्या आप भी दबंग बनना चाहते हैं ?

तो सोचिये ........ और कीजिये

धन्यवाद

Thursday, October 13, 2011

बस बहुत हुआ .............>>> संजय कुमार

बस बहुत हुआ
अब तो कुछ करना होगा
अभी नहीं तो कभी नहीं
अब तो हर दुसरे इंसान की
रगों में
दौड़ रहा है , खून की तरह ही
आपको नहीं लगता
ये भी तो बाधक है
हमारे स्वस्थ्य जीवन की राह में
और वो
क्या दिशा निर्देशन करेगा ?
अपने बच्चों का
जो खुद भ्रष्ट है
इसके लिए तो ,
अनिवार्य विषय की तरह
ज्ञान देना चाहिए
स्कूल में ,
पता है मुझे कि ,
एकदम से कुछ नहीं हो सकता
पर धैर्य के साथ
स्वस्थ्य सोच के
बीजारोपण का
प्रयास करना चाहिए
तभी कर पायेगा
हर आने वाला व्यक्ति
पूर्णता स्वस्थ्य
दाम्पत्य जीवन का निर्माण
तभी होगा
" पूर्ण "
खुशहाल जीवन
खुशहाल परिवार
और एक
यौन अपराध मुक्त समाज

( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )

धन्यवाद

Saturday, October 8, 2011

हम भूल चुके हैं संजीवनी को , अगर समय मिले तो याद कर लीजिये ..... >>>> संजय कुमार

आज का इंसान जीवन की भागदौड़ में इतना व्यस्त हो गया है कि उसे अपने स्वास्थय तक की भी परवाह नहीं होती है उस पर उसका खान-पान , रहन -सहन , प्रदुषण इतना है कि किसी भी इंसान का स्वस्थ्य रहना बहुत मुश्किल है , और जो स्वस्थ्य है वो कहीं ना कहीं दवाओं पर निर्भर है ! आज देश के लगभग बहुत से घरों में अंग्रेजी दवाओं का उपयोग लगभग होता है ! क्योंकि आज अंग्रेजी दवाओं के बिना रहना तो इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता ! नवजात शिशु से लेकर 90 बर्षीय बुजुर्ग तक कहीं ना कहीं इसी पर आश्रित हैं ! आज छोटी - छोटी उम्र के युवाओं को ब्लड प्रेसर जैसी बीमारियाँ हो रही है हालांकि इस बीमारी से आज तक कोई नहीं बच पाया ! जरा जरा सी बात पर जब हम जरुरत से ज्यादा उत्तेजित होने लगेंगे तो ऐसा ही होगा ! कुछ लोग अंग्रेजी दवाओं के सेवन को अच्छा मानते हैं तो कुछ लोग गलत , कुछ देशी दवा का सुझाव देते हैं तो कुछ होम्योपैथिक की सलाह देते हैं ! कुछ दवा का असर तुरंत चाहते हैं और रोग से तुरंत मुक्ति भी , कुछ लोग मध्यम इलाज चाहते हैं जो धीरे -धीरे असर करे और हमेशा के लिए बीमारी को खत्म कर दे ! " संजीवनी " बूटी का नाम ध्यान में आते ही हमें सर्वप्रथम पौराणिक कथा " रामायण " की याद आती है और ध्यान में आता है कि, किस तरह " बजरंगबली " ने युद्ध के दौरान मूर्छित " लक्ष्मण " के प्राण संजीवनी बूटी द्वारा बचाए थे ! इसलिए आज जब भी हमें किसी रोग से तुरंत राहत चाहिए होती है, तो हमें अक्सर संजीवनी बूटी का नाम ध्यान में आता है ! क्योंकि हम आज तक उस संजीवनी बूटी के महत्व को जानते हैं और उसके साथ-साथ जान पाए हमारे आयुर्वेद औषधियों के गुण ! जी हाँ मैं उस देशी नुस्खे की बात कर रहा हूँ जिन्हें हम सब लगभग भूल चुके हैं , और भूल चुके हैं उनकी तासीर को भी ! आयुर्वेद औषधियां हमारे देश में पिछले कई युगों से चली आ रहीं हैं ! हम सब आज भी इनकी महत्ता को जानते हैं , किन्तु ये सब आज हमारे द्रश्य पटल से हमारे बीच से पूरी तरह ओझल हो गयी हैं ! जैसे जैसे समय गुजरता गया धीरे धीरे अंग्रेजी दवाओं ने इंसान के बीच अपना घर बना लिया और हम भी पूरी तरह इन पर निर्भर हो गए ! पुरातन में जो लोग देशी दवाओं और जड़ी-बूटियों का उपयोग अपनी बीमारी में करते थे वह जल्द ही निरोगी और पूरी तरह स्वस्थ्य हो जाते थे और उनकी बीमारी भी जड़ से खत्म हो जाती थी जिस कारण से इंसान जीता था लम्बी और निरोगी आयु ! आज के दूषित वातावरण में इन्सान को शुद्ध ओक्सिजन तो मिलती नहीं , अगर मिलती है तो दूषित और इन्सान को बीमार करने वाली वायु , और उस पर अंग्रेजी दवाओं का ज्यादा से ज्यादा उपयोग ! इन्सान ने अपने आप को इन दवाओं का इतना आदि बना लिया है कि इन्सान कभी कभी बिना बात के भी दवा का उपयोग करता रहता है ! इन्सान को लगता है कि वह निरोगी हो रहा है किन्तु वास्तविकता कुछ और ही होती होती है ! इन्सान कुछ क्षण को तो ठीक होता है पर पूरी तरह से नहीं और इन्सान धीरे -धीरे आदि हो जाता है इन दवाओं का , या फिर ये दवाएं इन्सान को इतना मजबूर बना देती हैं या फिर इंसान मजबूर हो जाता है यह दवा लेने के लिए ! थोड़ी सी सर्दी हुई तो दवा , थोड़ी सी गर्मी हुई तो दवा , थोडा सा सर दर्द , थोड़ी कमजोरी , थोडा बुखार , हर बात में अपने घर पर रखा हुआ बीमारियों भरा दवा का डिब्बा उठाया और मिल गया आराम ! आज के भागदौड भरे जीवन में व्यक्ति की शारीरिक रूप से लड़ने की क्षमताएं इतनी कम हो गयी हैं कि , उसे आराम करने के लिए भी अंग्रेजी दवाओं का उपयोग करना पड़ता है ! आजकल तो स्थिति इतनी ख़राब हो गई है कि , इन्सान जरूरत से ज्यादा थकने के बावजूद भी आज नींद की गोलियां खा रहा है , और आदि हो रहा है इस जहर का जो इन्सान को अन्दर ही अंदर खोखला कर रहा है ! अब इस जहर की लत हमारी युवा पीड़ी को भी लग चुकी है ! शरीर को स्वस्थ्य रखने के सारे देशी नियम तो वो कब के भूल गए हैं ! माफ़ करना देशी नियम हम लोगों ने कभी अपनाए ही नहीं तो ध्यान कहाँ से रखेंगे ! अगर हम रोज रोज होने वाली छोटी मोटी बीमारियों में अंग्रेजी दवाओं का उपयोग बंद कर अगर अपने देशी नुस्खे और आयुर्वेद औषधियों का प्रयोग करें तो हम यूँ बार बार बीमार नहीं पड़ेंगे और हमारे अंदर वह ताक़त आएगी जो इन बीमारियों से लड़ने में हमारी मदद करेगी ! हिंदुस्तान में हजारों लाखों प्रकार की जड़ी बूटियाँ हैं जिनमे ताक़त है हर बीमारी से लड़ने की और जिनके उपयोग से इंसान लम्बी आयु तक निरोगी जीवन व्यतीत करता है ! आज अंग्रेजी दवाओं से हम सब इतना घिर गए हैं कि, छोटी मोटी बीमारियों को सही करने के लिए हम दुनिया भर में विचरण करते रहते हैं और उसका पक्का इलाज हमारे अपने आस पास ही होता है और वो है हमारा अपना आयुर्वेद ! आज जिस आयुर्वेद को जानने और उसका पूरा लाभ लेने के लिए विदेशों से लोग आते हैं ! और हम सब आज उन्ही से पीछा छुड़ा कर भाग रहे हैं ! सच हैं आज अंग्रेजी दवाओं के बीच में हम अपने आयुर्वेद को भूल चुके हैं , भूल चुके हैं अपनी संजीवनी बूटी को !



धन्यवाद

Thursday, October 6, 2011

रावण , दशानन का दहन करने से पहले , अंत कीजिये .....>>> संजय कुमार

सभी ब्लौगर साथियों को विजयदशमी, दशहरा पर्व की हार्दिक शुभ-कामनाएं !
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विजयदशमी पर्व को हम सब आज असत्य पर सत्य की जीत , अधर्म पर धर्म की जीत, बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते हैं ! क्या रावण का अंत करने के साथ ही बुराई और असत्य का अंत हो गया ? आज भी हमारे आस-पास सौ सिरों वाले अनेकों रावण उपस्थित है ! आज भी बुराई , अधर्म , झूंठ - फरेब अपने चरम पर हैं ! रावण में शायद उतनी बुराइयाँ नहीं थीं जितनी कि आज के रावणों में है ! दशानन लंकेश तो अपनी शक्ति के मद में चूर था , उसे सच का ज्ञान था उसे पता था कि राम के हांथों ही मेरा अंत होना है फिर भी उसने बुराई और अधर्म का सम्पूर्ण नाश करवाने के लिए ऐसा किया ! आज अगर हमें सही मायने में विजयदशमी का पर्व और उसकी उपयोगिता को समझना है तो हमें अपने आसपास व्याप्त झूंठ-फरेब , बुराई , असत्य , पाप-दुरचार, को मिटाना होगा ! हमें अपने आस-पास का माहौल अच्छा बनाने के लिए , अपनों की ख़ुशी के लिए , अपना जीवन सुखमय बिताने के लिए अपने अन्दर से अहम् , काम , क्रोध , लालच , मोह को पूरी तरह त्यागना होगा ! क्योंकि ये भी दशानन , रावण का ही एक रूप है ! जिस तरह प्रभु श्री राम ने रावण का अंत कर इस दुनिया से असत्य , अधर्म और बुराई का अंत किया था ठीक उसी प्रकार अब हम सबको राम बनना होगा और इस समस्त बुराइयों का अंत करना होगा ! तभी कहलायेगा सही विजयदशमी , दशहरा पर्व !
क्या आप रावण का दहन करने से पहले अपने अन्दर के रावण का दहन करेंगे ! यदि करेंगे तो सच में आप कहलायेंगे विश्वविजेता ! इसलिए कहता हूँ रावण दहन से पहले अंत कीजिये ..........
विजयदशमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं ढेरों शुभ-कामनाएं
जय श्रीराम ------ जय श्रीराम ----------- जय श्रीराम


धन्यवाद

Saturday, October 1, 2011

अब कहना भूल जायेंगे .... ये जी , ओ जी , सुनो जी ......>>> संजय कुमार

अक्सर हमारे माता-पिता , बड़े बुजुर्ग हम सबको एक ही सीख देते और बर्षों से देते आये हैं जिसे हम आज भी मानते हैं कि , हमें हमेशा अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए , हमेशा उनके नाम के साथ " जी " शब्द अवश्य जोड़ना चाहिए क्योंकि ये " जी " शब्द बड़ा ही आदरसूचक शब्द है और यदि हम इसका इस्तेमाल करते हैं तो इस समाज में हमें सभ्य और संस्कारी समझा जाता है ! जैसे माताजी - पिताजी , चाचाजी-चाचीजी , दादाजी-दादीजी , नेताजी, मंत्रीजी , महात्माजी , और आजकल प्रतिदिन की चर्चा में हमारा सबका प्यारा " २ जी " ! इस देश में हिंदी बोलने वाले लगभग सभी घरों में ये शब्द " जी " हमने कई बार या हमेशा सुना है जैसे पत्नियाँ अपने पति को , ये जी सुनते हो , ओ जी सुनते हो , बगैरह - बगैरह कह कर पुकारती हैं ! इस " जी " में एक अपनापन और अपनों के लिए कहीं ना कहीं प्रेम छुपा हुआ होता है जो प्रतिदिन की बोलचाल की भाषा में उपयोग होता है ! किन्तु अब इस आदरसूचक " जी " के बारे में इस देश का बच्चा - बच्चा जानता है ! जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ उस " जी " की जिसने आज हमारे देश की सरकार का और सरकार के सहयोगियों के कारण सरकार चलाना मुश्किल कर दिया है ! इस " जी " ने इस देश के बड़े बड़े राजाओं , महाराजाओं , मंत्री - संत्री , आला-अफसर , बड़े बड़े उद्योगपतियों को जेल की सलाखों तक पहुंचा दिया है ! इस देश में अब " जी " का नाम लेते ही अच्छे - अच्छों के छक्के छुट जाते हैं , अगर किसी के नाम के साथ ये " जी " लगा दिया जाय तो फिर ऐसा लगता है जैसे पैरों तले जमीन खिसक गयी हो ! इस देश में कोई सरकार , कोई भी पार्टी , कोई भी उद्योगपति अब ये नहीं चाहता कि कोई भी उसके सामने और उसके नाम के साथ " जी " का नाम भी ले , अब यदि कोई इस " जी " का नाम लेता भी है तो वो उसका सबसे बड़ा दुश्मन होता है ! अब आप बताएं कि , भविष्य में क्या होगा ? जब इस " जी " नाम की इस बला का इतना खौफ आज अच्छे - अच्छों की नींद उड़ा रहा है ! इस " जी " ने तो हमारे प्रधानमंत्री " श्री मनमोहन सिंह जी " का तो बुरा हाल कर रखा है अब उन्हें भी डर लगने लगा है कि कोई उन्हें " प्रधानमंत्रीजी " तो नहीं कह रहा है ! पी चिदम्वरम , प्रणव मुखर्जी भी आजकल " जी " के मारे इधर-उधर घूम रहे हैं पता नहीं कि, कहीं ये " जी " उनको भी औरों की तरह जेल की सलाखों के पीछे ना पहुंचा दे , वैसे भी आज सरकार की स्थति हमारे देश की क्रिकेट टीम के जैसी ही है " तू चल मैं तेरे पीछे पीछे आया " ! अब क्या होगा ? क्या हमारे बड़े बुजुर्ग अब हमें " जी " का संबोधन करने से मना करेंगे ? क्या हम अपने बच्चों को इस तरह के संस्कार देंगे जहाँ आदरसूचक " जी " को जिसे आज पूरा देश नफरत और बुरी द्रष्टि से देख रहा है ! क्या पति - पत्नि के आपस का प्रेम इस " जी " की बजह से खत्म हो जायेगा ? आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है कि जब इस " २ जी " ने इस देश में इतनी उथल -पुथल मचा रखी है तो आगे क्या होगा ? क्योंकि आजकल तो हमारे दिलो दिमाग पर जल्द ही " ३ जी " छाने वाला है !
क्या हम " २ जी " और " ३ जी " के इस मायाजाल से बाहर निकल पाएंगे ..........


धन्यवाद

Wednesday, September 28, 2011

नवरात्रि - मौसम और जीवन में बदलाव की घड़ी ( जय मातादी .. जय मातादी ) .... >>> संजय कुमार

सभी ब्लोगर साथियों को परिवार सहित नवरात्र पर्व की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं

हिन्दू पंचांग के आश्विन माह की नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाती है। विज्ञान की दृष्टि से शारदीय नवरात्र में शरद ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि बड़ी। वहीं चैत्र नवरात्र में दिन बड़े होने लगते हैं और रात्रि घटती है, ऋतुओं के परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर न पड़े, इसीलिए साधना के बहाने हमारे ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान किया।संभवत: इसीलिए कि ऋतु के बदलाव के इस काल में मनुष्य खान-पान के संयम और श्रेष्ठ आध्यात्मिक चिंतन कर स्वयं को भीतर से सबल बना सके, ताकि मौसम के बदलाव का असर हम पर न पड़े। इसीलिए इसे शक्ति की आराधना का पर्व भी कहा गया। यही कारण है कि भिन्न स्वरूपों में इसी अवधि में जगत जननी की आराधना-उपासना की जाती है।नवरात्रि पर्व के समय प्राकृतिक सौंदर्य भी बढ़ जाता है। ऐसा लगता है जैसे ईश्वर का साक्षात् रूप यही है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ वातावरण सुखद होता है। आश्विन मास में मौसम में न अधिक ठंड रहती है न अधिक गर्मी। प्रकृति का यह रूप सभी के मन को उत्साहित कर देता है । जिससे नवरात्रि का समय शक्ति साधकों के लिए अनुकूल हो जाता है। तब नियमपूर्वक साधना व अनुष्ठान करते हैं, व्रत-उपवास, हवन और नियम-संयम से उनकी शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक शक्ति जागती है, जो उनको ऊर्जावान बनाती है।इस काल में लौकिक उत्सव के साथ ही प्राकृतिक रूप से ऋतु परिवर्तन होता है। शरद ऋतु की शुरुआत होती है, बारिश का मौसम बिदा होने लगता है। इस कारण बना सुखद वातावरण यह संदेश देता है कि जीवन के संघर्ष और बीते समय की असफलताओं को पीछें छोड़ मानसिक रूप से सशक्त एवं ऊर्जावान बनकर नई आशा और उम्मीदों के साथ आगे बढ़े।
जय मातादी ............. जय मातादी ...................... जय मातादी
( जानकारी गूगल से )
धन्यवाद

Wednesday, September 21, 2011

मैं अचेत ......>>>> संजय कुमार

हे पिता अनुभूति शक्ति
मैं अचेत
लडखडा रहे है मेरे पैर
आकर थाम लो हाँथ
अशांति , बैचैनी
और हताशा है छायी
अँधेरे के सिवा
और कोई नहीं है
पास मेरे
आके पिता
दो मुझको
प्रकाश , प्रेम का आधार
पाने को तेरा प्रत्यक्ष वात्सल्य
कब से लालायित है
मेरा मन
इसी इक्षा के सहारे ही
शायद अभी तक जीवित है
मेरा अंतर मन !


( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद

Sunday, September 18, 2011

जल्द ही गधों की बुकिंग कराइये ......>>> संजय कुमार

जिस तरह से हमारे देश में मंहगाई अपनी सभी सीमायें तोड़ चुकी है , सारी हदें पार कर चुकी है , डीजल - पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं , रसोई गैस , राशन , सब्जियां , फल सभी इतने मंहगे है कि एक दिन सिर्फ अमीर ही इनको इस्तेमाल कर पाएंगे ! आज इस मंहगाई रुपी दानव के आतंक से आम जनता त्राहि-त्राहि कर रही है ! मंहगाई को देखकर अब ऐसा लगने लगा है कि आम आदमी तो सिर्फ तिल - तिल कर मरने के लिए ही पैदा हुआ है ! आज उसके चूल्हे में आग तो जल जाती है किन्तु उसमे पकाने को कुछ नहीं होता ! जिस तरह चूल्हे में जल रही लकड़ी जलकर राख हो जाएगी ठीक उसी तरह आम आदमी इस मंहगाई से तिल - तिल कर मर जायेगा ! मंहगाई से एक फायदा अवश्य होगा , हमारे पुराने दिन जल्द ही बापस आ जायेंगे ! जल्द ही हम लोग कार , मोटरसाइकल , चलाना भूल जायेंगे या ये सब गुजरे जमाने की बात हो जाएँगी ! इस तरह के सभी वाहन संग्रहालय की सोभा बढायेंगे या फिर हमारे वाहनों को हम लोगों को गधों से खिंचवाने पड़ेंगे ! क्योंकि वाहन तो हमारे पास होंगे किन्तु उनमें डीजल-पेट्रोल नहीं होगा , जिनकी गाड़ियाँ डीजल-पेट्रोल से चलेंगी वो देश के ऊंचे पदों पर बैठे हुए नेता और अफसर होंगे ! मंहगाई का असर उन पर कभी नहीं पड़ेगा जिसके पास भ्रष्टाचार और बेईमानी का पैसा आ रहा है उसे किसी भी मंहगाई का कोई फर्क नहीं पड़ता वो अपना कमीशन थोडा सा और बड़ा देगा ! ( आज पूरा देश कमीशन पर ही तो चल रहा है ) मरना तो हम लोगों का जिनके पास आय के सीमित साधन के रूप में महीने की पहली तारीख को मिलने वाला पैसा है, जो १० तारीख तक समाप्त हो जाता है ! आम आदमी या सीमित आय वाला इंसान तो जीवन भर उधारी की जिंदगी जीता है ! इससे लिया उसको दिया , उससे लिया इसको दिया बस यही करता है जीवन भर ! उसके पास एक साधन और बचता है और वो है बेईमानी का किन्तु ये भी आसान नहीं है ! खैर इस मंहगाई से विलुप्त होती गधों की प्रजाति को काम अवश्य मिल जायेगा ! क्योंकि आज का आदमी पैदल चलना तो कबका भूल चुका है ! जब हम ये सोचने बैठेंगे कि हम कब से पैदल नहीं चले तो आपको अपने आलसी होने का अहसास तुरंत हो जायेगा ! इसलिए कहता हूँ डीजल -पेट्रोल के दाम बढ़ने पर इतनी हाय - तौबा अच्छी नहीं है ! आज ही गधा मालिकों के साथ अनुबंध कीजिये और कई गधे बुक करवा लीजिये ! यही एक रास्ता है अब हमारे पास ! जल्द ही गधों की बुकिंग कराइये .... क्योंकि अब गधे हमारे वाहन खींचेंगे .........

धन्यवाद

Wednesday, September 14, 2011

सबसे पहले आप हिंदी का ज्ञान लीजिये ... ...( हिंदी दिवस ) ....>>> संजय कुमार

इंसान हमेशा विपरीत दिशाओं के प्रति ज्यादा आकर्षित होता है ! रूप , रंग , लिंग , पैसा और आजकल भाषा के प्रति , और आज की भाषा है अंग्रेजी ! भले ही आपको हिंदी का ज्ञान हो ना हो किन्तु अंग्रेजी अवश्य आनी चाहिए ! क्या आपको हिंदी आती है ? क्या आपको है हिंदी का पूर्ण ज्ञान ? यदि नहीं , तो सबसे पहले आप हिंदी सीखें ! अगर आप हैं हिंदी के असली ज्ञाता और जानकार , तो आप फक्र कर सकते हैं अपने आप पर कि , आप है असली हिंदी भाषी , और यदि आपको नहीं हैं हिंदी का पूर्ण ज्ञान , तो सबसे पहले हिंदी सीखो , और फिर सीखो अंग्रेजी, क्योंकि हिंदी आपकी अपनी मात्रभाषा - राष्ट्रभाषा है ! माना अंग्रेजी भाषा आज हमारी जरुरत है ! माना आज अंग्रेजी भाषा के बिना हम अधूरे से लगते हैं ! भले ही आज अंग्रेजी भाषा को एक स्टेट सिम्बल के रूप में मान्यता मिली हो या हमने ही उसे ये मान्यता बिन मांगे दे दी हो , फिर भले ही हम ये मान्यता हिंदी को ना दे पाए हों ! चलो.... हिंदी राष्ट्र में किसी भाषा ( विदेशी ) को तो घोषित अथवा अघोषित मान्यता हम आधुनिक लोगों ने प्रदान की है ! किन्तु यह अवश्य भूल गए कि हिंदी हमारी पहचान है ! आज हम लोग विश्व में कहीं ना कहीं हिंदी भाषा के कारण ही जाने जाते हैं ! हिंदी भाषा अपने आप में बहुत महान है ! हिंदी की महानता का पता इस बात से चलता है ! कि , आज हम सब जिस अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं, वो भी अपनी हिंदी भाषा को छोड़ कर ! जिस हिंदी को विश्व में हर कोई सीखना चाहता है ! आज दूर दूर से लोग भारत में आ रहे हैं सिर्फ और सिर्फ हमारी अपनी हिंदी भाषा को सीखने और समझने ! हिंदी भाषा में जो अपनत्व और सम्मान का भाव है वो आपको कहीं किसी और भाषा में सुनने को नहीं मिलेगा ! जिस हिंदी भाषा के बड़े बड़े विद्यालय हमारे हिंदुस्तान में हैं और आज बड़े बड़े विद्वान सिर्फ हिंदी को बचाने में लगे हुए हैं ! वहीँ हम लोग आज अपनी ही मात्र भाषा को भूलकर अंग्रेजी भाषा के पीछे भाग रहे हैं वह भी बिना कुछ सोचे समझे ! क्योंकि हम अपनी मात्र भाषा हिंदी के बढ़ावे के लिए भले ही कुछ ना कर रहे हों किन्तु अंग्रेजी सीखने के लिए हम अपनी युवा पीढ़ी और बच्चों को जरुर आगे कर रहे हैं !
ऐसा नहीं की मुझे अंग्रेजी नहीं आती इसलिए मैं अंग्रेजी को कोई गलत भाषा कह रहा हूँ , आज मुझे भी अपने कार्य क्षेत्र में अंग्रेजी की जरुरत महसूस होती है ! अगर नहीं भी आती तब भी मैं अपना काम अच्छे से चला लेता हूँ ! आज सबसे ज्यादा बुरा उस वक़्त लगता है जब आज के बच्चे जिन्हें बचपन से ही अंग्रेज बनाया जा रहा है , जब उनके द्वारा कहा जाता है की मुझे हिंदी नहीं आती ! इस तरह के वाक्य सुनकर बड़ा धक्का सा लगता है ! ये सच है, अगर नहीं तो बड़े-बड़े प्रोद्योगिक विद्यालयों में पढ़ने बाले युवाओं से पूंछ लीजिये की उनको हिंदी का कितना ज्ञान है अगर है तो ये हमारे लिए बड़े फक्र की बात है ! आज हम सभी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं या बच्चे पढ़ते भी हैं , कभी आप उनसे हिंदी के बारे में पूँछिये , आपको इस बात का आभाष अवश्य हो जाएगा की आपके बच्चे को सिर्फ अंग्रेजी आती है हिंदी नहीं , और जब आप उसके प्रश्नों का जबाब नहीं दे पाते तो उस वक़्त आप यह महसूस करते हैं या अपने आप को दोष देते हैं की आपने अंग्रेजी क्यों नहीं सीखी, काश हमने भी अंग्रेजी सीखी होती तो आज यूँ बच्चों के सामने शर्मिंदा ना होना पड़ता ! उस वक़्त आप कभी नहीं सोचते की हम अपने बच्चे को हिंदी का भी पूर्ण अध्यन करा देवें जो उसके लिए बहुत उपयोगी है ! आज जिस तरह के परिवेश में हम अपने बच्चों का भविष्य देख रहे हैं उस परिवेश में शायद हिंदी का कोई स्थान नहीं है ! और यदि ये बात सच है तो हमारा युवा या देश का भविष्य सिर्फ अंग्रेजी में ही पारंगत होगा हिंदी में नहीं ! क्यों ........? क्योंकि हम आज अंग्रेजी बोलना अपनी शान समझते हैं ! यदि आपको अंग्रेजी नहीं आती तो आप शर्म और झिझक महसूस करते हैं ! ऐसा क्यों ? यदि नहीं आती तो कोई बात नहीं हम अपनी मात्र भाषा को तो अच्छे से जानते हैं ! हमें उस पर गर्व करना चाहिए ! लेकिन आज की युवा पीढ़ी के साथ ऐसा नहीं है ! उन्हें सिर्फ अंग्रेजी ही आती है और वो अंग्रेजी ही सीखना और जानना चाहते हैं ! उनके लिए हिंदी सिर्फ कचरा भाषा लगती हैं ! शायद हिंदी बोलने से उनका स्टेटस नीचे आ जाता है ! आज तेजी से हिंदी शब्द हम सबसे दूर हो रहे हैं और अंग्रेजी दिल में बस रही है , इसका अंदाजा आप अपने आस-पास के वातावरण को देखकर लगा सकते हैं कि , अंग्रेजी का कितना बोलबाला है ! आज स्थिति बदल गयी है , आज अंग्रेजी हमारे घरों में अपनी पकड़ दिन प्रति -दिन इतनी मजबूत करती जा रही है , जिसके घातक या बुरे परिणाम हम लोगों को भविष्य में देखने को मिलेंगे ! आज जिस तरह के परिवेश में हम सब जी रहे हैं उस परिवेश को आधुनिकता का युग कहते हैं और जब से इन्सान ने अपने आप को इस आधुनिकता की दौड़ में अपने आपको सबसे आगे करने का ढोंग करने लगा तब से इंसान ऐसी चीजों को अपनाने लगा जो कभी उसकी थी ही नहीं ! आज कई लोग भले ही हिंदी स्पष्ट ना बोल पायें इस बात का उन्हें जरा भी गम नहीं होता , लेकिन उनसे कहीं अंग्रेजी बोलने में कहीं कोई गलती हो जाये तो वह अपने आपको शर्मिंदा सा महसूस करते हैं ! ऐसा नहीं होना चाहिए !
इसलिए मैं जानना चाहता हूँ उन लोगों से जो अंग्रेजी को ही सब कुछ समझते हैं , अंग्रेजी ही उनके लिए सब कुछ है ! क्या आपको हिंदी आती है ? यदि नहीं तो सबसे पहले आप हिंदी का ज्ञान लीजिये और फिर सीखें अंग्रेजी .............

धन्यवाद

Saturday, September 10, 2011

भूत हमें रोटी देता है , और आपको .....>>> संजय कुमार

अरे भई डरिये नहीं मैं कोई त्नंत्र मन्त्र की बात नहीं कर रहा हूँ ! और ना ही मैं आपको भूत - प्रेत की कहानियां सुना रहा हूँ ! मैं बात कर रहा हूँ उस भूत की जो चौबीस घंटे हमारे और आपके शरीर , दिमाग और हमारी नस में खून बनकर दौड़ता है ! इस भूत का कमाल हमने पिछले दिनों देखा जब उसने " अन्ना हजारे " को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ! अब आप सोच रहे होंगे कि अन्ना का भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन का भूत से क्या लेना देना ! अरे भई लेना-देना तो है अगर ये भूत नहीं होता तो शायद आज , यूँ ही अन्ना जी को इतना बड़ा जन समर्थन नहीं मिलता ! मैं पहले कुछ बातों पर आप लोगों को गौर करने के लिए कह रहा हूँ ! हम अक्सर अपने मिलने वाले लोगों से , अपने परिवार के सदस्यों से , पत्नि पति से , पति पत्नि से , यार दोस्तों से अक्सर कहते सुना है ! अक्सर पत्नियाँ पति से यही कहती हैं कि तुम्हारे ऊपर तो जैसे काम का भूत सवार है , बस चौबीस घंटे काम और सिर्फ काम , जैसे युवाओं को कहते सुना है , तेरे ऊपर तो प्रेम का भूत सवार है , बच्चों के साथ , बच्चों के ऊपर सिर्फ खेल का भूत सवार होता है ! किसी के ऊपर पढ़ाई का भूत सवार , किसी को गाने का भूत सवार , किसी को नाचने का भूत सवार , किसी को ब्लॉग लिखने का भूत सवार , किसी को रोने का , किसी को सफाई का , किसी को देश भक्ति का भूत सवार , इस तरह देखा जाये तो ये भूत लगभग हज़ार तरह का होता है और लगभग हर इंसान के अन्दर होता है ! इस भूत को हम " जुनून " के नाम से भी जानते हैं ! जब हमारे ऊपर काम का भूत सवार नहीं होगा तो क्या हम तरक्की कर सकते हैं ? हम तरक्की पाने के लिए , सफलता हासिल करने के लिए इस भूत को अपने अन्दर ग्रहण करते हैं तब जाकर हम सफल होते हैं ! " सच कहूँ तो यही भूत हमें रोटी देता है " खुशियाँ देता है , ऊंचे पायदान पर पहुंचाता है ! भूत शब्द का उपयोग हम लोग अक्सर छोटे बच्चों को डराने के लिए करते हैं ! बच्चों सो जाओ वर्ना भूत आ जायेगा , और बच्चा भी डर के मारे सो जाता है ! मेरा सभी माता-पिता से अनुरोध है कि आप बच्चों को भूत का नाम लेकर डराएँ नहीं बल्कि उसे जीवन में ग्रहण करने के लिए कहें वो भी सिर्फ अच्छी चीजों के लिए ! पिछले १० सालों में हमारे देश में जो संचार क्रांति आई है , जिस तरह से हमारे देश में प्रतिभाएं उभर कर सामने आई हैं। हमने विश्व स्तर पर बहुत नाम कमाया हो चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो वो सब इसी भूत की बजह से ससिल किया है ! अगर आज का युवा इस भूत को धारण कर सफलता के लिए प्रयास नहीं करेगा तो शायद ही कभी वह सफलता हासिल कर पाए ! आज हमने देखा है बचपन से ही कई बच्चों पर बहुत कुछ करने का भूत सवार होता है ! कोई खिलाडी बनने के लिए , कोई गायक बानने के लिए , कोई डांसर बनने के लिए , कोई IAS , IPS, MBBS, ENGINEERING, NAVY, POLICE बनने के लिए बचपन से ही मेहनत करता है ! और जब तक उसके सिर पर भूत सवार नहीं होगा तब तक शायद ही वो सफलता हासिल कर सके ! भूत होना बहुत जरुरी है ! अगर देश के सीमाओं पर खड़े जवानों के दिलों में , सिर पर देश भक्ति का भूत सवार ना हो तो ये देश कब का दुश्मनों के हांथों तबाह और बर्बाद हो गया होता , जवान तो अपना काम ईमानदारी से करते हैं आज भी उनके सिर पर भूत सवार है ! किन्तु हमारे देश के भ्रष्ट नेताओं पर कभी भी ईमानदारी और देश भक्ति का भूत सवार नहीं हुआ ! अगर हुआ है तो देश को लूटने , बड़े -बड़े घोटाले करने , भ्रष्टाचार फ़ैलाने जैसे गंदे भूत सवार हुए हैं जो सिर्फ आम जनता का खून चूस रहे हैं ! हम नहीं चाहते ऐसे भूत जो इंसान को और इंसानियत को खत्म कर रहे हों !


गुजारिश :---- जीवन में सफलता हासिल करने के लिए हम सभी को इस भूत को अपने अन्दर ग्रहण करना होगा ! वैसे तो भूत हमेशा हमारे शरीर के अन्दर होता है ! जरुरत है उसे जगाने की , तो सोते हुए भूत को जगाइए और सफलता के ऊंचे पायदान पर बढ़ते चले जाइये !


धन्यवाद

Saturday, September 3, 2011

लोग मुझे नास्तिक कहते हैं ....>>>> संजय कुमार

मैं नास्तिक हूँ लोग कहते हैं
हाँ , अगर आडम्बर के बोझिल गहनों से

अपने और परमपिता
के प्रेम को ना सजाना नास्तिक होना है
तो मुझे ये पहचान कुबूल है ,
क्योंकि कोई भी शब्द
घ्रणा या प्रेम का का पात्र ,
नहीं होता
उस शब्द के प्रति भाव का निर्धारण तो
हम करते हैं जैसे " हाय ये चाँद "
अब इस वाक्य में आह भी है और ओह भी
ऐसे ही कोई प्रभु को आडंबरों के साथ अपनाता
और कोई आडम्बर के बिना
मैं नास्तिक अपने पिता से
मूक वार्ता करती हूँ
जब कोई सवाल मुझे परेशान कर देता है
तो पिता से ही
उसका जबाब देने को , कहती हूँ
और कोई यकीन करे ना करे
मेरे पिता प्रत्यक्ष जबाब देते हैं
पर अप्रत्यक्ष और मूक रहकर
एक बार पूरी श्रद्धा से
विना आडम्बर के
आप भी करके देखिये
यकीन हो जायेगा

( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )

धन्यवाद

Thursday, September 1, 2011

दाग अच्छे हैं, या बुरे .....>>> संजय कुमार



सर्वप्रथम समस्त ब्लोगर साथियों को प्रथम पूज्य " श्री गणेश " चतुर्थी की बहुत बहुत बधाई एवं ढेरों शुभ-कामनाएं ! " श्री जी " की स्थापना कर सदा उनका प्रेम और आशीर्वाद पायें ! ------------------------------------------------------------------- जब हम सब छोटे थे तो हमारी माँ अक्सर एक बात अवश्य बोलतीं थीं और डांटती भी थीं कि , बेटा ऐसे मत खेलना की कपडे गंदे हो जाएँ या फिर उन पर कोई दाग लग जाये ! जब हम स्कूल जाते थे तब भी " माँ " एक बात विशेष रूप से बोलती थी समझाती थी " बेटा सड़क पर ठीक ढंग से चलना , कपड़ों पर धुल - मिटटी का दाग ना लग पाए वर्ना मास्टरजी बहुत डांटेंगे , और अगर गलती से सफ़ेद शर्ट पर कोई दाग लग जाता था तो " मास्टरजी " बहुत डांटते थे ! घर आने पर " माँ " भी जब कपड़ों पर दाग देखती थीं तो वो भी डांटा करती थी ! और कहती थी " बेटा दाग अच्छे नहीं होते वो हमको असंस्कारी बनाते हैं ! एक बात हमेशा याद रखना की तुम पर जीवन में कभी कोई दाग ना लगे ! उस वक़्त हम सब माँ की बात को अनसुना कर देते थे और बचपन की मस्ती में मस्त होकर खूब खेला करते थे और धूल- मिटटी से अपने कपड़ों पर कई बार दाग भी लगा लेते थे ! युवावस्था में भी माँ - बाप हमको यही समझाते रहते हैं , कि , बेटा ऐसा कोई काम मत करना जिससे तुम्हारी बदनामी हो या हमें शर्मिंदगी उठानी पड़े , ऐसा कोई काम मत करना कि , जीवनभर के लिए हमारे दामन पर कोई दाग लग जाये ! क्योंकि बिना दाग वाले इंसान की पहचान सभ्य लोगों में होती है और दागदार दामन वाले इंसान को हम सभी बुरी नज़र से देखते हैं ! " माँ " ठीक भी कहती थी दाग अगर आपके कपड़ों पर लग जाये तो सब आपको बुरी नजर से देखते हैं कि , कैसा लड़का है इसके कपड़ों पर लगा दाग कितना भद्दा लग रहा है ! किन्तु बचपन में जो दाग कपड़ों और शरीर पर लगते थे तो वो दाग पानी से साफ़ भी हो जाते थे ! जब हम बड़े हुए तो दाग लगने का महत्त्व भी अच्छे से जानने लगे ! शरीर या बाहरी आवरणों या कपड़ों पर लगा हुआ दाग तो आसानी से धुल जाता है और निशान भी एक समय के बाद चला जाता है ! किन्तु इंसान के चरित्र पर जब कोई दाग लगता है तो वो दाग इंसान के जीवन पर्यंत तक बना रहता है ! जब तक इंसान की सांस चलती है तब तक चरित्र पर लगा हुआ दाग इंसान का पीछा नहीं छोड़ता ! इंसान की सौ अच्छाइयों पर जिस तरह एक बुराई भारी पड़ जाती है ! ठीक उसी प्रकार भगवान् की तरह पूजे जाने वाले महात्मा पुरुष के चरित्र पर जब कोई दाग लगता है तो वो, महात्मा से शैतान बन जाता है , वो कितनी भी सफाई दे उसके चरित्र पर लगा दाग उसे जल्द मुक्त नहीं करता ! शायद ही इस प्रथ्वी पर कोई ऐसा इंसान हो जिसके जीवन में उसके चरित्र पर उसके दामन पर कोई दाग ना लगा हो , ( जिनके चरित्र पर दामन पर आज तक कोई दाग नहीं लगा वो आज अपवाद है ) क्योंकि इंसान को उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक एक लम्बा और कठिनाइयों भरा जीवन जीना होता है और जाने अनजाने उसके साथ बहुत कुछ अच्छा - बुरा भी होता है ! कई बार जाने अनजाने इंसान बड़ी - बड़ी गलतियाँ कर बैठता है ! कुछ याद रखते हैं कुछ भूल जाते हैं ! ये सब जानकार सुनकर लगता है कि , दाग बुरे होते हैं !


किन्तु आज मैं अपने चारों तरफ जब देखता हूँ तो हर जगह मुझे ऐसे ही लोग दिखते हैं जिनके दामन पर कई दाग हैं और इन दागों के साथ वो आज सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते चले जा रहे हैं ! आज देश में ऐसे लोगों की संख्या बहुत है जिनका दामन कहीं ना कहीं दागदार है और यही दाग उनको सफलता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं ! आज हर क्षेत्र में ऐसे लोगों का बोलबाला है ! राजनीति आज पहले पायदान पर है ! जिस नेता पर जितने दाग उसकी प्रसिद्धि उससे कहीं ज्यादा ! आज धर्म का प्रचार करने वाले साधू-संत भी कहीं ना कहीं इस दौड़ में शामिल हैं ! यदा कदा उनके चरित्र भी दागदार हुए हैं ! आज देश में भ्रष्टाचारी , घोटालेबाज , बड़े - बड़े अफसर , मंत्री - संत्री , जज , वकील , डॉक्टर , शिक्षक सभी के दामन पर दाग हैं ! शायद दामन पर लगे हुए दाग ही इनकी मुख्य पहचान हैं ! आज लगता है सफलता पाने का ये नया फार्मूला अपने चरम पर है ! जब तक आपके दामन पर कोई दाग ना लगा हो तब तक शायद आपकी कोई पहचान ना हो ! अब आप ही बताएं की सफलता पाने के लिए दामन पर दाग लगा होना क्या आवश्यक है ?


दाग अच्छे हैं या बुरे .......... ( एक छोटी सी बात )


धन्यवाद

Saturday, August 27, 2011

नेताओं से कुछ नहीं होगा ..... ( २०० बी पोस्ट पर हार्दिक धन्यवाद ) ...>>> संजय कुमार

मैं पिछले डेढ़ बर्ष से इस ब्लॉग लेखन में हूँ ! इन डेढ़ बर्षों में मुझे बहुत सारे अच्छे अनुभव हुए , कई बरिष्ठ लेखकों का मार्गदर्शन मिला , साथ ही कई नवीन ब्लोगर्स का प्रेम और स्नेह मिला जो मुझे आगे लिखने के लिए प्रेरित करता रहा ! आज उसी प्रेम-स्नेह और मार्गदर्शन से प्रेरित होकर में आप सभी के समक्ष छोटी-मोटी रचनाएँ लिखता रहता हूँ ! में कोई लेखक नहीं हूँ फिर आप सभी ने मुझे जो आशीष प्रदान किया है उसका में बहुत आभारी हूँ ! मेरे ब्लॉग लेखन में मेरी पत्नि " गार्गी " का भी बहुत योगदान रहा है ! उनकी कई कवितायेँ में आप सभी के समक्ष कई बार प्रस्तुत कर चुका हूँ ! जिन पर आप सभी की उत्साहवर्धक टिप्पणियों ने मेरा होंसला बड़ाया आज मैं अपनी २०० बी पोस्ट आपके समक्ष रख रहा हूँ ! २०० बी पोस्ट पर मैं सभी ब्लोगर साथियों का धन्यवाद करना चाहता हूँ , और चाहता हूँ आप सभी का मार्ग-दर्शन जिससे मुझे लिखने की प्रेरणा मिले !

आज जो रचना मैं आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ ! वो मेरे आदरणीय " श्री विनय बहादुर सक्सेना जी " की कलम से है ! जो उन्होंने आज देश के बुरे हालातों के मद्देनजर देखते हुए प्रस्तुत की है !
आज के इन नेताओं से कुछ नहीं होगा
सब के सब बुजुर्ग हो गए हैं
कोई ६५ का तो कोई ७५ का
इनके साथ ही युवा नेता भी
बुजुर्ग हो गए हैं !
अब तो आतंकवाद को
खत्म करने के लिए
खौलते खून की जरुरत है
जो हर तरह से तैयार हो
मिटने व मिटाने के लिए
जैसे को तैसा देने के लिए
जरुरत है ,
एक क्रांतिकारी की
जो देश के प्रत्येक
युवा के खून को
क्रांति से भर दे
आतंवादियों को
उन्ही के , शस्त्र से
समाप्त कर सकते हैं
और फिर शांति से
रह सकते हैं

२०० बी पोस्ट पर हार्दिक धन्यवाद

Monday, August 22, 2011

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी .... प्रेम का सच्चा पर्व , परिवार के साथ मनाएं ....>>> संजय कुमार


भगवान श्रीकृष्ण को प्रेम का अवतार माना जाता है ! उन्होंने इस दुनिया को प्रेम का सच्चा पाठ पढ़ाया ! जब-जब भी असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया। चूँकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अतः इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झाँकियाँ सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। प्रेम के प्रतीक भगवान् के जन्मदिन को सच्ची लगन एवं प्रेम भावना के साथ अपने पूरे परिवार के साथ मनाएं !


जय श्रीकृष्ण ........ जय श्रीकृष्ण.........जय श्रीकृष्ण........जय श्रीकृष्ण



माखन चुराकर जिसने खाया

बंशी बजाकर जिसने नचाया

खुशियाँ मनाओ उस कान्हा के जन्मदिन की

जिसने इस विश्व को "प्रेम का पाठ पढ़ाया"



आप सभी ब्लोगर साथियों को एवं परिवार के सभी सदस्यों को " श्रीकृष्ण जन्माष्टमी " के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं ढेरों शुभ-कामनाएं




धन्यवाद

संजय - गार्गी

देव - कुणाल

Saturday, August 20, 2011

देखा अजीव एक द्रष्य ........>>> संजय कुमार

देखा अजीव एक द्रष्य
कुचले पड़े मानव के दिल ,
टुकड़े - टुकड़े पड़ी , कराहती आत्मा ,
स्वपन आश्चर्य तले दवे थे,
खीझ में सने थे ,
वह दिल नासूर बन चुका था ,
क्योंकि उसको अपनों ने कुचला था ,
वह उनकी प्रतिष्ठा का रास्ता था ,
जिसको पैरों से रौंधता ' वह अपना ' चला था
दुःख नहीं हुआ जब दुश्मनों ने दुश्मनों की ,
अवाक ताकते रह गए हम
जब अपनों ने स्वार्थ में रंगी
चाल चली ...........

( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )

धन्यवाद

Thursday, August 18, 2011

रिश्वत ......... ( व्यंग्य ) ......>>>> संजय कुमार

मैंने कहा ऑफिस के बाबू से ,
कि , मेरा काम ये कर दो ,
बाबू बोला बड़े प्यार से
फाइल पर वजन तुम धर दो
वजन धरते ही समझ लो , हो गया तुम्हारा काम
रिश्वत मत समझना इसे , ये तो है बस मेरा ईनाम ,
मुझे समझते देर ना लगी , कि , बाबू है पक्का रिश्वतखोर
इसलिए मैं चला गया अधिकारी के कमरे की ओर
जैसे ही पहुंचा गेट पर , चपरासी बोला
मुझे खुश किये बिना साहब से मिलना ना होगा ईजी ( आसान )
लाओ पान , बीडी - सिगरेट वर्ना साहब हैं बिजी
मैं समझ चुका था कि ,
इस ऑफिस का सारा स्टाफ ही भ्रष्ट है
तभी तो इस ऑफिस से सारे शहर को कष्ट है
मैंने भी सोच लिया था कि ,
इस बाबु को रंगे हाँथ पकड्वाऊंगा
सीबीआई में जाऊं या संसद - विधानसभा में, प्रश्न उठ्वाऊंगा
फिर मैंने की शिकवा -शिकायत बहुत
जब एक महीना बीत गया
एक दिन अखबार में पढ़ा मैंने कि ,
रिश्वत लेने वाला , रिश्वत देकर छूट गया


( मित्र मुकेश बंसल की कलम से )

धन्यवाद


Sunday, August 14, 2011

क्या आप आजाद हैं ? .......>>> संजय कुमार

सर्वप्रथम सभी भारतियों को और सभी भारतवासियों को ६४ वे स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं ढेरों शुभ-कामनाएं
------------------------------------------------------------------------------------------------आज हमारे देश को आजाद हुए ६४ बर्ष पूरे हो चुके हैं ! इन चौंसठ बर्षों में हम हिन्दुस्तानियों ने सही मायने में आजादी का मतलब जाना ! इन चौंसठ बर्षों में देश ने बहुत तरक्की की है और आज भी प्रगति कर रहा है ! आज भारत का नाम विश्व स्तर पर छाया हुआ है जिसे देख कर आज हर भारतीय गर्व महसूस करता है ! एक आजाद इंसान वो सब कुछ कर सकता है जो एक आदमी गुलाम होकर नहीं कर पाता ! एक आजाद इंसान को अपनी बात सभी के समक्ष रखने की आजादी होती है ! आजादी का मतलब बही लोग जानते हैं जो अंग्रेजों के अधीन थे ! आजादी के इतने बर्षों के बाद भी एक सवाल हमारे जेहन में दौड़ता है ! क्या हम वाकई में आजाद हो चुके हैं ? इस सवाल के जबाब में लगभग सभी लोगों का मत ये है कि हम आजाद हो चुके हैं ! ये सच भी है क्योंकि आजाद होकर ही हमने अपने देश का नाम विश्व स्तर पर ऊंचा किया है ! कहने को तो हम सब आजाद हैं , वो भी सिर्फ अंग्रेजों की गुलामी से , किन्तु आज भी इस देश में एक बड़ा तबका ऐसा है जो किसी ना किसी रूप में किसी ना किसी का गुलाम है ! आज अभी इस देश में लाखों मजदूर , गरीब परिवार ऐसे हैं जिन्हें आजादी का असली मतलब तक नहीं मालूम ! आज आजादी के दिन भी देश में लाखों मजदूर गुलाम बनकर बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं ! आज भी हमारा देश साहूकारी जैसी कुरीतियों से आजाद नहीं हो पाया , आज भी खाप पंचायतों जैसी प्रथाएं हमारे देश में हैं , ये वो प्रथाएं हैं जिसमें माँ-बाप अपने ही बच्चों के खून से अपने हाँथ रंग रहे हैं ! आज भी पढ़ा - लिखा समाज समाज उंच-नीच , जातिवाद , दहेज़ प्रथा जैसी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है ! आज भी हजारों दुल्हन परम्परा के नाम पर अपने घरों में कैद हैं ! आज भी देश में लाखों लोग गुलामी की मानसिकता में जी रहे हैं ! और शायद ऐसे ही मर जायेंगे ! हम आजाद जरुर हुए हैं वो सब कुछ करने के लिए जिस पर अंकुश लगना चाहिए था ! किन्तु हमने आजादी का गलत फायदा ही उठाया ! आज हमने अपने बच्चों को आजादी दी तो उन्होंने कई ऐसे काम कर डाले जिनसे माँ-बाप का सिर शर्म से झुक गया ! आज हर कोई आजाद है , किसी की जुबान पर आज कोई ताला नहीं है जिसको जो बकना है सो बक रहा है वो भी पूरी आजादी के साथ बंधनमुक्त होकर ! आज जिसे देखो सब कुछ खुल्लम- खुल्ला कर रहा है और हम मूक बन देख रहे हैं ! देश में ढोंगी, साधू-महात्मा धर्म के नाम पर, आध्यात्म के नाम पर भगवान् को बेच रहे हैं , गरीबों की मेहनत की कमाई से अपनी तिजोरियां भर रहे हैं ! वहीँ कुछ धर्मात्मा बनकर अबलाओं की इज्जत नीलाम कर रहे हैं ! देश के बड़े बड़े राजनीतिज्ञ, मंत्री -संत्री पूरी तरह आजाद हैं देश को बेचने के लिए और ये सभी आजादी के साथ अपना ईमान बेच रहे हैं , देश में भ्रष्टाचार, घूसखोरी, और रिश्वतखोरी , घोटाले कर रहे हैं ! इंसानों का सौदा उनको खरीदने -बेचने का काम कर रहे हैं वो भी आजादी के साथ ! कभी खेल के नाम पर, कभी मनोरंजन और रियलिटी शो के नाम पर हमारी संस्कृति को नीलाम कर रहे हैं वो भी सब कुछ पूरी आजादी के साथ ! आज हम सब आजाद हैं वो सब कुछ करने के लिए जिसे रोकने -टोकने की हिम्मत शायद किसी में भी नहीं है ! आज हम फिर से धीरे -धीरे पश्चिमी सभ्यता के गुलाम होते जा रहे हैं ! पूरी आजादी के साथ हम अपनी सभ्यता छोड़ विदेशी कल्चर अपना रहे हैं ! आज हमारे बच्चे पूरी तरह आजाद हैं अपने माँ-बाप का अपमान करने के लिए ! आजाद हैं नशे की दुनिया में जाने के लिए, आजाद हैं अपना भविष्य बनाने और बिगड़ने के लिए ! आज आतंकवाद आजाद है पूरी तरह अपने पैर पसारने के लिए ! आज हजारों बीमारियाँ पूरी तरह आजाद हैं इन्सान को अपनी गिरफ्त में लेने के लिए ! आज देश में वो सब लोग पूरी तरह से आजाद हैं , जो इंसानियत, समाज, और राष्ट्र को डुबोने के लिए पूरी तरह और हमेशा तैयार रहते हैं ! असलियत में आजादी का असली मतलब तो यही लोग जानते हैं ! और इस देश में यही लोग आज पूरी तरह से आजाद हैं ! हम सब तो कहीं ना कहीं गुलाम और कैद हैं अपनी परिस्थितियों और हालातों से मजबूर होकर , आज देश में आम इन्सान आजाद नहीं हैं ! आम इन्सान कैद है अपनी समस्याओं में , गुलाम है दकियानूसी प्रथा और रीति -रिवाजों का ! आज भी इंसान आजाद नहीं हुआ है अपनी विकृत मानसिकता से जो इंसानियत पर एक बदनुमा दाग लगाती हैं ! आज भी आजाद नहीं है वो औरतें जो दहेज़ लोभी घरों में कैद हैं, सिर्फ किसी के लालच के कारण ! इस दूषित वातावरण में आम आदमी आजाद नहीं है ! आम इन्सान लगभग भूल गया अपनी आजादी का असली मतलब !
क्या आप आजाद हैं ?

जब मेरे वतन को मेरे चाहने वाले होंगे
कौन कहता है मेरे पाँव में छाले होंगे
स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत हार्दिक बधाई एवं ढेरों शुभ-कामनाएं


संजय - गार्गी
देव कुणाल

धन्यवाद

Sunday, August 7, 2011

एक शाम मित्रता के नाम ... ( हमारे अभिन्न मित्र ) " Friend-ship Day " .......>>> संजय कुमार

किसी भी इन्सान के जीवन में एक दोस्त की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं ! सच्चा दोस्त वह होता है जो इन्सान के किसी भी रिश्ते पर भारी पड़ सकता है ! माता-पिता का रिश्ता हो या भाई-बहन का रिश्ता , या फिर पति-पत्नि का रिश्ता हो ! कई बार यह देखा गया है कि, एक सच्चे दोस्त को इन सब रिश्तों में कहीं ज्यादा मान सम्मान दिया गया है ! इसलिए इस रिश्ते को सबसे बड़ा माना जाता है ! यह जरूरी नहीं कि, दोस्त कोई आपके घर से बाहर का हो ! वह दोस्त आपके परिवार का कोई सदस्य भी हो सकता है ! जैसे एक माँ अपने बच्चे की सबसे अच्छी दोस्त होती है जो उसका हमेशा ध्यान रखती है , उसको गलत राह पर जाने से रोकती है, अच्छे संस्कारों का बीज रोपित करती है , अच्छे बुरे का ज्ञान कराती है , हर वक़्त उसका ध्यान रखती है ! और बच्चा भी माँ को एक दोस्त के रूप में लेता हैं और अपनी सारी परेशानी और समस्याएं अपनी माँ के साथ बांटता है ! और यह दोस्ती का रिश्ता माँ-बेटे के रिश्ते से कहीं बड़ा होता है ! अगर बचपन में माँ बेटे का रिश्ता एक दोस्त के रूप में बनता है तो यह रिश्ता जीवन भर चलता है ! बच्चा बड़ा होकर भी अपनी बहुत सारी बातें माँ के सामने रखता है और माँ भी उसे सही राह बताती है ! एक पिता भी अपने बच्चे का अच्छा दोस्त होता है वह अपने बच्चे को बाहर की दुनिया के बारे में बताता हैं ! वह बताता है बाहर की दुनिया का सच और करता हैं उसकी रक्षा उन सभी बुराइयों से जो उसके बच्चे के लिए हानिकारक हैं ! परिवार के सदस्यों के अलावा बाहर की दुनिया में भी इंसान के पास एक अच्छा दोस्त होना बहुत आवश्यक होता है ! आज इन्सान का जीवन एक दोस्त के बिना अधूरा है ! आज जिस तरह का वातावरण हमारे आस-पास निर्मित हैं , जहाँ एक-दूसरे पर विश्वास करना बड़ा मुश्किल हैं, जहाँ कोई किसी को कभी भी धोखा दे सकता है , अपना बन पीठ में छुरा घोंप सकता हो , ऐसे लोग फिर चाहे हमारे अपने सगी सम्बन्धी ही क्यों ना हों ! ऐसे जटिल समय में हम सभी को एक सच्चे दोस्त की आवश्यकता होती है जो किसी भी हालात और परिस्थियों में हमारी मदद करने को तैयार रहता है ! हमें गलत राह पर जाने से रोकता है ! सच्चा दोस्त बही होता है जो बिना किसी मतलब के अपनी दोस्ती को निभाता है ! आज जिन लोगों के पास कोई सच्चा मित्र नहीं हैं वह इन्सान इस भीड़ भरी दुनिया का सबसे अकेला प्राणी हैं और उसके लिए दुनिया की कोई भी ख़ुशी बिना दोस्त के अधूरी हैं ! आज हम अपने जीवन में ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकते जिसमें हमारा कोई मित्र ना हो ! जिस तरह शुद्ध वायु इन्सान के जीवन के लिए अमृत है ठीक उसी प्रकार एक सच्चा मित्र भी किसी जीवनदायक अमृत से कम नहीं है ! एक सच्चा मित्र अपनी सूझ-बूझ से हर वक़्त हमें गलत राह पर जाने से रोकता है, मुसीबत के समय ढाल बनकर हमारी रक्षा करता हैं ! आपके जीवन में अगर अच्छा दोस्त नहीं तो कुछ भी नहीं है ! हम सभी ने दोस्ती और मित्रता के सेकड़ों किस्से और कहानियां सुनी हैं ! " राम-सुग्रीव " की मित्रता " कृष्ण -सुदामा " की मित्रता , जिसमे मित्रता के लिए सच्चे समर्पण को देखा गया है ! जहाँ उंच-नीच, जात-पात, छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, राजा-रंक जैसी छोटी सोच का कोई स्थान नहीं था ! किन्तु जैसे -जैसे कलियुग की शुरुआत हुई , इन्सान के दिलों में नफरत की भावना ने जन्म लिया, बुराइयाँ अपने चरम पर पहुंची , जहाँ मित्र की पहचान अपने बराबर के लोगों में की गयी , उंच-नीच का भाव दिलों में भरा गया , जब से हम अमीर-गरीब का फर्क देखने लगे तब से मित्रता का सच्चा स्वरुप कहीं खो गया या पूरी तरह बदल गया ! वर्तमान परिवेश में लगता है सच्ची मित्रता कहीं खो गयी हो , इसके पीछे हम इन्सान ही हैं जो शायद सही मित्र की पहचान नहीं कर पाते , यदि करते भी हैं तो सच्ची मित्रता निभा नहीं पाते और जिसका खामियाजा भी हम लोगों को ही उठाना पढ़ता है ! आज ऐसे कई लोग हैं जो सही मित्र और मार्गदर्शक ना मिल पाने के कारण अपनी सही राह से भटक गए हैं और बुराई के उस मुकाम तक पहुँच गए जहाँ कोई भी आम इन्सान जाना नहीं चाहता ! क्योंकि एक सच्चा मित्र हमारा बहुत बड़ा शुभचिंतक और मार्गदर्शक होता है ! एक इंसान के जीवन के साथ कई लोग जुड़े होते हैं वो मित्र, शत्रु कोई भी हो सकता है ! किन्तु मैं आपको इंसान के उन अभिन्न मित्रों के बारे में बता रहा हूँ जो सिर्फ इंसान के सच्चे मित्र होते हैं जो हर स्थिती परिस्थिति में सिर्फ इंसान का भला ही करते हैं किन्तु इंसान उनके साथ कभी भी सच्ची मित्रता नहीं निभाता इसलिए मजबूर होकर ये आज इंसान से बदला ले रहे हैं ! जी हाँ हम बात कर रहे हैं हमारे सच्चे दोस्त की जी हाँ हमारे सच्चे दोस्त हैं " प्रक्रति और पर्यावरण " जो सिर्फ हम इंसानों और इस पूरी कायनात की भलाई के लिए बने हैं , जो हर वक़्त हमारा भला करते हैं ! पेड़ - पौधे , नदियाँ , तालाब , पर्वत , घने जंगल - वन और सभी प्राकृतिक चीजें जो लाखों -करोड़ों बर्षों से एक सच्चे मित्र के रूप में हमारी सहायता कर रहे हैं ! किन्तु हम आज भी सच्ची मित्रता में बहुत पीछे हैं ! अगर हम इनकी मित्रता का १०% भी बापस करदें तो शायद हम सच्चे मित्र कहलायेंगे !

क्या आप सच्ची मित्रता निभाएंगे ?
क्या आप सच्ची मित्रता का मोल चुकायेंगे ? यदि हाँ तो आप कहलायेंगे सच्चे मित्र ! आगे बढ़िये और निभाइए सच्ची मित्रता का फर्ज
आप सभी को मित्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएं
( Happy-Friend-Ship Day )

धन्यवाद

Thursday, August 4, 2011

गुजरा ज़माना .........>>>> संजय कुमार

मुददतों से उनकी सूरत नहीं देखी
एक बार देखी थी बस
वहीआँखों से ओझल नहीं होती
हाँ घुलते रहे शब्द , तुम्हारे महीनों
कानों में मेरे
पर अब वो कानों से बहजाने का
नाम नहीं लेते
हाल जो अपने दिल का तुमने
उतारा था दिल में मेरे
निशां अब वो मिटने का
नाम नहीं लेता
दर्द के कफ़न में कबसे
लिपटा है वो गुजरा जमाना
वक़्त उसको दाग देने का
नाम नहीं लेता !


( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )
धन्यवाद