Tuesday, December 14, 2010

पत्ता ............... >>> संजय कुमार

डाल से छूटकर पत्ता
डगर डगर भटकता
छिना आधार उसका ,
खो वजूद अपना ,
हवा संग हो लिया ,
पवन के झोंकों को
खुद को समर्पित कर ,
परिणाम जिसका
राह-राह गिरता-पड़ता
फिर जिस डाल से छूटा था
याद करता उसको,
दूर हो उससे ,
किसी अजनबी डगर में ,
कचरे के ढेर में फंस
आंसू तो नहीं , पर
अन्दर ही अन्दर सिसकता ,
सोचता किसको दोष दूं
खुद को या नसीब को ?

( प्रिय पत्नी की कलम से )

धन्यवाद

9 comments:

  1. क्या सजीव चित्रण किया है बधाई. एक सत्य को दर्शाती पोस्ट. बड़ी शालीनता से बहुत कुछ कह गए आप

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  2. कचरे के ढेर में फंस
    आंसू तो नहीं , पर
    अन्दर ही अन्दर सिसकता ,
    सोचता किसको दोष दूं
    खुद को या नसीब को ?
    .....बहुत सुन्दर संवेदनशील प्रस्तुति

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  3. 'sochta kisko dosh doon
    khud ko ya naseeb ko '
    isi ohampoh me to zindgi toote patte ki manind bhatakti rahti hai..
    sunder aur samvedansheel rachna.

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  4. kya baat hai sanjay bhai...
    kamaal kar diya.........nya andaaj...pasand aaya

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  5. सार्थक विचार ..... सत्य का जीवंत चित्र करती रचना.....

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  6. Bahut sundar bani kavita.. Rani-Sanjay ji ko badhai.

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  7. aap sabhi ka main dhnyvaad karta hoon,
    is kavita ke liye badhai ki paatr meri patni " Gargi " hain , yah kavita unhi ki kalam se nikli hai,

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  8. अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।

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