Sunday, October 10, 2010

मंजनुओं का अड्डा , ( मंदिर और कॉलेज ) ...>>> संजय कुमार

मंजनू , नाम सुनते ही किसी सड़क छाप आशिक का नाम हमारे ध्यान में आता है ! वह युवा (लड़का ) जो आपको सड़कों पर आवारागर्दी करते नजर आयेंगे , इन्ही में से ज्यादा संख्या में सड़क छाप मंजनू होते हैं ! हिन्दुस्तान में हजारों किस्से कहानियां भरे पड़े हैं , इन मजनुओं और इनकी प्रेम कहानी से ! जैसे लैला-मंजनू , सोहनी-महिवाल , हीर-राँझा और भी बहुत हुए हैं , लेकिन हिंदुस्तान में तो यही Famous हैं , इन्ही को लेकर आज के कई युवाओं को ये मंजनू नाम दिया गया है यहाँ के प्रेमी-प्रेमिकाओं को ! ये मंजनू आपको हर देश में मिलेंगे , किन्तु भारत में इनकी संख्या लाखो-करोड़ों में है ! ये आपको कहीं भी देखने को मिल जायेंगे , स्कूल, कॉलेज , पिकनिक स्थल , शादी-पार्टी , मेले , पार्क, ट्यूशन के अन्दर कोचिंग के बाहर, लगभग सभी जगह ! कई जगह तो इन मंजनुओं के कारण ही देश में प्रसिद्ध हैं ! लेकिन एक जगह और है जहाँ आजकल इनकी संख्या आम जगह से कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रही है , और वो जगह है " मंदिर " जी हाँ यह बात बिलकुल सही है , आज कल हमारे देश में " नवरात्री " का त्यौहार पूरे जोर-शोर से मनाया जा रहा है ! और इन्ही मंदिरों कि आड़ में आज इन मंजनुओं का प्रेम , परवान चढ़ रहा है ! क्योंकि यह तो वह जगह है , जहाँ किसी के भी आने-जाने पर कोई पावंदी और रोक-टोक नहीं होती ! यहाँ जो भी ( मंजनू- टाइप ) आता है , हमें लगता है , माता की भक्ति के लिए आया है , किन्तु आप अगर गौर से देखें तो आप महसूस करेंगे , की इनकी नजरें किसी ना किसी लैला की तलाश में होती हैं ! " काश यहाँ तो कोई हमें लाइन दे दे और हमारी भी फिल्मों के जैसे "लव-स्टोरी " बन जाये ! क्योंकि इन दिनों ऐसे ऐसे युवा इन मंदिरों पर आते -जाते हैं , जिनको ना तो ईश्वर भक्ति और मंदिरों से दूर दूर तक कोई लेना देना होता है ! कुछ ऐसे भी इन मंदिरों पर देखने को मिल जायेंगे जो शायद कहीं और मंजनू गिरी करने और अपनी प्रेमी-प्रेमिकाओं से मिलने से घबराते हैं , किन्तु यहाँ पर बड़ी आसानी से मिल लेते हैं ! वह भी बिना रोक-टोक और बिना किसी के शक किये हुए ! सभी मंजनुओं के लिए ये नौ दिन नवरात्र के बहुत मायने रखते हैं ! जितना इन्तजार इनको अपनी परीक्षाओं का नहीं रहता उससे कहीं ज्यादा इन्तजार इनको इन दिनों का रहता है ! ( विशेष शारदीय नवरात्र का )

कुछ भी हो कम से कम हमारा आज का युवा , किसी बहाने मंदिर तो जाता है , भगवान् के सामने शीश झुकाता है ! वर्ना आज का युवा तो अपनी मस्ती में ही मस्त है ! वह पूरी तरह अपने आस-पास के माहौल और समाज की गतिविधियों से दूर हैं ! आज के युवा एक ऐसे दुनिया में जीते है ! जहाँ ना तो प्रेम - स्नेह, संस्कार और अपनेपन का कोई महत्त्व है ! इन युवाओं ने ना तो अपने जीवन में कोई सिद्धांत बनाये हैं और ना ही कोई लक्ष्य ! बस चकाचौंध भरी दुनिया को ही अपना भविष्य समझ रहे हैं ! इस चकाचौंध भरी दुनिया में कई युवा अपना भविष्य बिगाड़ रहे हैं ! सिगरेट , शराब , शबाब इनके मुख्य शौक के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं ! यह बात अब छोटे छोटे गाँव , कस्बों , शहरों और महानगर में किसी संक्रामक बीमारी के जैसे फ़ैल रही है , या फ़ैल चुकी है !

हमें आज ध्यान देना होगा अपने बच्चों पर की आज वह क्या कर रहे हैं ? किस हालात में जी रहे हैं ? उन्हें क्या चाहिए ? और उन्हें हम क्या दे रहे हैं ? या उन्हें क्या मिल रहा है ? आज हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ सच्चा प्रेम कम ही देखने को मिलता है ! यदि आपके बच्चे किसी से सच्चा प्रेम करते हैं और यदि आपको लगता है कि , आपके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हांथों में है ! तो अंतिम निर्णय आपका होगा !

मेरी इस बात से कई सड़क छाप मंजनू मुझे गलियां भी देना चाह रहे होंगे , किन्तु में खुश हूँ , कि कभी हम भी उनकी तरह मदिरों पर किसी लैला की तलाश में गए थे ! वहां लैला तो नहीं मिली , परन्तु ईश्वर का आशीर्वाद जरूर मिला !
जय माता दी ............ जय माता दी .............जय माता दी ..........जय माता दी

धन्यवाद

11 comments:

  1. ... क्या बात है ... जय माता दी !

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  2. बहुत ही विचारणीय बात कही आपने..

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  3. .सच में आज ऐसे द्रश्य देखकर बहुत दुःख होता है ... .. आज जिस तरह से जगह जगह युवा वर्ग नशीले पदार्थों की गिरफ्त में आ रहा है वह बेहद चिन्ताप्रद है .. लेकिन अफ़सोस होता है कि ऐसे लोगों को समझना बेहद मुश्किल और कभी कभी नामुमकिन सा हो जाता है... आज नशे के कारण बहुत से युवा ३०-३२ वर्ष की अल्पायु में ही जब संसार छोड़ चल देती हैं तो बहुत दुःख होता है .. लेकिन बहुत अफ़सोस की बात यह है कि इससे दुसरे लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता वे इसे सामान्य घटना का नाम देकर इतिश्री कर लेते है...
    बहुत जागरूकता भरी सार्थक प्रस्तुति .... ऐसे ही हर किसी को आगे बढ़कर पहल करने की जरुरत है...
    ..
    आपको और आपके परिवार को नवरात्र के बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ

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  4. भाई - समय हमेशा बदलाव मांगता है और जो बदल जाए वो समय के साथ है - जो न बदल पाया वो मन मो़स कर रह जाता है. मजनूओं की पुरानी परिपाटी है : क्या मंदिर और क्या टूशन सेंटर. अब तो मेट्रो के स्टशन भी इनके ठिकाने बन गए हैं .

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (11/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  6. kya bat hai bahut khub
    mere blog par aakar mera magdarsan karne ko dhanvad
    kripya aage bhi yuhi margdarasan karte rahe
    or kripya blog ko join kar mera hosla badaye

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  7. जहाँ ना तो प्रेम - स्नेह, संस्कार और अपनेपन का कोई महत्त्व है !
    इन युवाओं ने ना तो अपने जीवन में कोई सिद्धांत बनाये हैं और ना ही कोई लक्ष्य !

    इनसे बुरी हालत संस्कारी लोगों की है ना तो "लडकियां" दीदी शब्द पसंद करती है न लड़के "भैया"

    आधुनिकता के नाम पर ऐसी ऐसी एजुकेशन शुरू करवाएंगे समझदार लोग जिससे बड़े बड़े मजनू और लैलाएं तैयार होंगे

    अभी तो बस देखिये आगे क्या क्या करवाते हैं दोहरी मानसिकता के अस्थिर युवा

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  8. और ये मत सोचिये इन्हें धर्म का ज्ञान नहीं है .. फुल ज्ञान है .... बस एडिशन वो पढ़े हैं जो इन्हें भटकाने के उदेश्य से बनाये हैं
    बाकी काम इनके पूर्वाग्रह करते हैं

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  9. बड़ी विचारोत्तेजक बात कही....बधाई. कभी 'शब्द सृजन की ओर' भी आयें.

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  10. जिनको ना तो ईश्वर भक्ति और मंदिरों से दूर दूर तक कोई लेना देना होता है ! कुछ ऐसे भी इन मंदिरों पर देखने को मिल जायेंगे जो शायद कहीं और मंजनू गिरी करने और अपनी प्रेमी-प्रेमिकाओं से मिलने से घबराते हैं , किन्तु यहाँ पर बड़ी आसानी से मिल लेते हैं ! वह भी बिना रोक-टोक और बिना किसी के शक किये हुए !

    हा...हा....हा....
    आज कल कुछ टी वी सीरियलों ने भी मंदिरों की युवाओं ka rukh moda hai ....

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